गुरुवार, 17 सितंबर 2020
मूलनिवासी पागलपण है।
मूर्तिपूजा और आर्थिक जनतंत्र
बुद्ध और आंबेडकर की मूर्तियों की पूजा करने और करवानेवाले लोगों को कैसा "बुद्धमय भारत" अभिप्रेत है वह मुझे नहीं पता, मगर मूर्ति-पूजक भारत बनाना बाबासाहब आम्बेडकर को पसंद नहीं था, इतना मुझे पता है.
अपने "रानडे, गाँधी और जिन्हा" (डाक्टर अम्बेडकर) किताब में स्पष्ट लिख चुके है, "I am no worshiper of idols. I believe in breaking them." क्या पूजापाठ करना या करवाना यही शिख थी उनकी?
जहाँ-वहाँ मूर्तियाँ की स्थापना करने के बजाय भारत में "आर्थिक जनतंत्र" लाने के लिए प्रयास होने चाहिए. उससे न केवल लोग बुद्धिस्ट बनेंगे बल्कि लोग भी सुखी बनेंगे. लोगों को बुद्धिस्ट बनाने के बजाय सुखी बनाना अधिक अच्छा होगा.
भूखे बुद्धिस्ट क्या बुद्धधम्म का पालन कर पायंगे? भारत में हजारो सालों से पूजापाठ होते आये है उससे अगर कल्याण होता तो अब कोई समस्या ही नहीं रहनी चाहिए. क्या बौद्ध लोगोंकी सभी समस्या हल हो चुकी? फिर "पूजापाठ" को बुद्धधम्म का अंग क्यों बनाया जा रहा है?
क्या पूजापाठ बुद्धिसंगत विचार है? क्या बुद्ध व्दारा त्रिपिटक में कही मूर्तिपूजा का आदेश दिया है? यह तो सही र1स्ते से भटकाने के प्रयास है, बुद्ध-आम्बेडकर की विचारधारा को ख़तम करने के प्रयास है. क्या "सच्चे आम्बेडकरवादी" लोगोने मूर्तिपूजा करनी चाहिए?
जनतंत्र के लिए ख़तरा बना है ईश्वर, अल्लाह, भगवान
सर्व-सामान्य लोग शब्द का अर्थ क्या लेते है, उस अर्थ को हमने मानना चाहिए. भारत में "आचार्य रजनीश" को "भगवान रजनीश" वापरने को आपत्ति जताई तब उसने जापानी 'भगवान' के अर्थ वाला शब्द 'ओशो' वापरना सुरु किया. उसका अर्थ सामान्य भारतीय लोगों को मालूम नहीं हुआ इसलिए इस शब्द को विरोध नहीं हुआ था.
आचार्य रजनीश खुद को "भगवान" का 'अवतार' या "भगवान'' समझते थे. यह तो "ईश्वरवाद" का समर्थन और प्रचार-प्रसार है. तो क्या ओशो रजनीश को 'ईश्वरवादी' नहीं समझना चाहिए? सामान्य जापानी लोग 'ओशो' का अर्थ 'भगवान' लेते है और भारतीय सामान्य लोग भगवान का अर्थ हिन्दू 'ईश्वर' लेते तो मुस्लिम 'अल्ला' लेते है.
सामान्य लोग विशिष्ठ शब्द का अर्थ जो लेते है उसी अर्थ को हमने लेना चाहिए. क्या किसी ईश्वरवादी व्यक्ति को निरीश्वरवादी बुद्ध का समर्थक या "बुद्ध पुरुष" के रूप में स्विकारना सही है? ईश्वरवाद से जनतंत्र / जनतांत्रिक लोगों का कुछ फ़ायदा / कल्याण है?
क्या ईश्वरवादी जनतंत्र की धज्जिया उड़ाने में समर्थन नहीं करते? ओशो भक्तों ने सामान्य जनसमस्या हल करने में कौनसा आन्दोलन चलाया है? "खाओ, पीओ और मौज करो" का भौतिकवादी, पूंजीवादी नारा "व्यक्तिवाद" का समर्थक है "समाजवाद" का नहीं. जो लोग सामाजिक नहीं है वे राष्ट्रिय कैसे हो सकते?