भारत मे जो सुख शान्ति हम चाहते है, बुद्ध चाहते थे वे वंशवाद से परे है, वह वंशवाद से भी मीठा सकते है, गुलाम भारत मे जिन्होंने वंशवादी विचारों का संवर्धन और बीजारोपण किया वह गलत और मनगढंत विचारों का परिणाम है, उसे ना बुद्ध, कबीर, अम्बेडकर साहब ने उचित माना था और ना सावित्रीबाई फुले ने.
वंश, जाती, भाषा, वर्ण से कोई भला या बुरा नही होता, जिनके विचार अमानवीय और भेदभावपूर्ण है वे बुरे है.देशी-विदेशी संकल्पना अनुचित और भारतीय जनतंत्र के खिलाफ है, वंशवाद का जो प्रचार करते है वे भारतीय सुख शान्ति के दुश्मन है, उनपर कड़ी से कड़ी कारवाही होनी चाहिए, ऐसी मै जनता से आशा रखता हूँ।
इसके पहले ब्राह्मणों की स्वदेशी संकल्पना आयी थी वह गयी है तेल लेने और अब यह हरिजनों के वंशज़ मुलनिवाशी आए है।
|| नाना वरन है गाय, एक रंग है दूध, तुम कैसे ब्राह्मण, और हम कैसे सूद?||
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