गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

धार्मिक अंध:श्रद्धा और जनतंत्र


        क़ुरान न को प्रमाण मानना यानी ग्रंथ प्रमाण मानना। ग्रंथ का रचयिता कोई इंसान है, भगवान/अल्ला नही है। भारत में अंध श्रद्धा फैलना यह अंध:श्रद्धा प्रतिबंधक क़ानून अवमान है, जेल हो सकती है। 

       नमाज़ पड़ना यानी व्यायाम करना है पर ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है कहना और उसे साबित नही करना, ग़लत अफ़वा फैलाना है, इसी वजह से तो कही देशों में मुस्लिमों के रिवाजों पर पाबंधि लगी है___

        जितने कट्टर हिंदू है, उतने ही कट्टर मुस्लिम है, दोनो विज्ञान के ख़िलाफ़ है, उसे पैरों तले दबाने की बात करते है, जो की सरासर ग़लत है, इस विज्ञान युग में "सिद्ध"करके नही दिखाया जाएगा तो वह विचार कालातीत हो जाएगा, उसे जंग लग जाएगा, ख़त्म होगा।

        हिंदू/मुस्लिम विचार जनतंत्रिक नही है, जनतंत्र के ख़िलाफ़ है, यह लोग सिर्फ़ अपने धर्मों के लोगों के साथ ही भाईचारा रखना चाहते है, जो ग़ैर धर्मिय होते है, उनका तिरस्कार/द्वेष किया जाता है, इसमें भाईचारा ख़त्म होता है, भाईचारे के अभाव में जनतंत्र जीवित नही रह सकता, जनतंत्र की हत्या होती है, जो धर्म या उनके अनुयायी जनतांत्रिक मूल्यों की हत्या करते है उनपर देश-द्रोह का मुक़दमा बन सकता है।

         गौतम बुद्ध कहते आए है की भगवान/अल्ला ईश्वर नही है, उन्होंने धरती या संसार को पैदा किया, संसार प्रतित्य समुत्पन्न यानी कार्यकारण /उत्क्रांत सिद्धांत से उत्पन्न हुआ, अगर उसने सबकुछ बनाया है तो क्यू? क्या मजबूरी थी?

         ईश्वर / अल्ला है तो उसने अपने सभी पुत्रों को एक समान क्यूँ नही किया? किसी को ग़रीब, किसी को अमीर क्यूँ किया? अब कोरोना वाइरस आया तो मज्जिदों के दरवाज़े क्यू बंद किए गए? अंध/:श्रद्धा फैलाना बंद करे। क़ुरान पथविहीन रेगिस्थान है।

          वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और मनुश्मृति में अस्पृश्यता, जाती भेदभाव, वर्ण भेदभाव के अलावा कुछ भी नही है जनतंत्र के लिए किसी भी प्रकार का भेदभाव क्यू हो हानिकारक ही है, त्याज्य है।

धर्म पालन से धार्मिक कट्टरता

धर्म पालन से धार्मिक कट्टरता
================
भारतीय जनतंत्र में ख़ामियाँ है, (१) धार्मिक आझादी, (२) राज्य समाजवाद का आभाव। जिसका प्रतिफल यह है की दुनिया हमें गालियाँ दे रही है, हमारे जनतंत्र से ऊपर कोई भी धर्म नही है, फिर भी हम धर्म विचारों को संविधान से ऊपर मानते है, धर्म रीति रिवाजों का पालन करते हुए हुए यह भी भूल जाते है की इससे देश का कितना नुक़सान होगा?
धर्म निरपेक्ष की हमने ग़लत परिभाषा की है, कांग्रेस सर्वधर्म समभाव और बिजेपी धार्मिक समरचता, यह दोनो ही परिभाषा संविधान के दृष्टि से ग़लत है, संविधान के अनुसार धर्म की ज़रूरत नही यानी धर्म की अपेक्षा करना ग़लत है।
हम जब तक हिंदू धर्म प्रचार करना चाहते तबतक धर्म के नाम पर पाखंड, अंध:श्रद्धा फैलाते है, जब हम ही पाखंड फैला रहे है तो दूसरे मुस्लिम, सिख, ईसाइयों को धर्म प्रचार करने से मना नही कर सकते। धर्म अफ़ीम है, नशा है, ज़हर है, वह जनतंत्र को भुलाने के लिए ही है।
बुद्ध ने धम्म की निर्मिती किसी पाखंडवाद पर नही की, विज्ञानवाद पर की, उसका पालन करने से हमारे देस की और दूसरे देश के लोग प्यार से देख सकते है। जापान बुद्धिष्ट है, तरक़्क़ी कर रहा है, हमें उनसे सिखना चाहिए।
रामायण, महाभारत या मनुस्मृति से हमारा देश बर्बाद होगा। बुद्ध धम्म हमारे देश की प्राचीन सभ्यता है, संसदीय जनतंत्र के लिए उपयोगी है, राज्य समाजवाद पर निर्भर है, दुनिया बुद्ध की तस्वीर लगा रही है पर मनु की क्यौं नही लगा रही?
बुद्ध आशा है, मनु निराशा है, सिर्फ़ ब्राह्मण लोग ही अपनी दुकानदारी बरक़रार रखने के लिए अपने "राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ" संस्था की महानता बताने में नही सकते है, हमें उनकी बेवक़ूफ़ी को बरदास्त करने के बजाए पैरों तले रेंधना ज़रूरती है, नही तो यह प्राचीन भारत देश रहने लायक़ नही रहेगा।
इस देश को बचाना है तो अभी बचा सकते हो, २-३ साल के बाद इसे बचाना भी बहुत मुसकिल होगा, क्यूँकि बिघाड़ने कार्य ज़ोरों से चल रहा है।