गुरुवार, 20 जून 2013

गरीबी हटाओ, अमीरी हटाओ !

न २०१४ का राजनैतिक बुखार भारत में चालू हो चूका है, एक दुसरे पार्टीयों पर आरोप करना चालू है, पर अपना कार्यक्रम रखने में कोई भी छोटी-बड़ी पार्टिया तयार नहीं. चुनाव में कोई तो भी जीतनेवाला है, पर वह क्या करेगा? कैसे करेगा? यह तो जानने का अधिकार मतदाताओं को है, अगर मतदाता उसे जानना नहीं चाहता और वोट दे देता है तो उनके जरिए बहुत बड़ी भूल हो सकती है, जैसे की हमेशा होते रही है, कोई मायावती ने जाती के गुणवत्ता के ऊपर उत्तर भारत में प्रचार सुरु किया तो वह जाएज है, की अगर वह चुनकर आती है तो जातिवाद को कायम करने के लिए भरपूर प्रयास करेगी, जातिवाद यानि ब्राह्मणवाद, भेदभाव, पवित्र-अपवित्रता.

माया कहती है,"मै दलित की बेटी हूँ, मुझे मत दो" उसी ढंग से बीजेपी ने भी नरेंद्र मोदी को पिछड़े/ओबीसी घोषित किया, जातिवाद के मुद्धेपर वोटों को अगर माँगा जायेगा तो जातिवाद और भी बढेगा? क्या जातिवाद यह गुणवत्ता के सामने सचमुच बौना हुआ है? बीएसपी जातिवादी और बीजेपी भी जातिवादी विचारो का प्रचार करती है तो दोनों भी हिन्दुधर्म के जातिवाद को बढ़ावा करना चाहते है, हिंदूवादी है, जाती के नामपर अगर कोई नेता वोटों को मांगे तो उसे चुनाव से बेदखल करना चाहिए.
दूसरा मुद्दा है अमीरों का,अमीर लोग आझादी के बाद हमेशा चुनाव में विजयी होते हुआ पाया गया है, उन्ही के वजह से भारत देश की अर्थनीति अमेरिका के अर्थनीति की शिकार हुयी है, इतना ही नही तो उनपर हर निर्णय के लिए निर्भर है, कुछ भी करने जाए तो उनकी राय लेना भारतीय नेता लोग उचित समझते है, पर देश के ९०% लोग जो गरीब है उनकी राय नहीं ली जाती है, इसलिए अमीरों को चुनाव में खड़ा होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. अमीर लोगों के पास अतिरिक्त धन होने से वे दारू, नशा, मस्ती और छेड़-छाड़ के मामलो में व्यस्त होते है, उन्ही के वजह से देश में व्यश्यावृत्ति, सार्वजानिक योनाचार देश में पनप रहा है.
अमीर हमेशा अमीरों के ही हितो में संविधान की धारा को तब्दील करते हुए पाए गए है. जो लोग सच्चे बीपीएल धारक है, उन्हें ही संसद में चुनके देना जरुरी है, जो अपने गरीब भाइयों की लिए उचित लाभ करवा सकते है. निर्वाचन आयोग को मेरी गुजारिश है की उन्होंने २०१४ के चुनाव में जातिवादी, गुंडे, बल्त्कारी, आरोपी और अमीर लोगों को चुनाव में खड़े रहने की अनुमति न दे.अन्यथा चुनाव होते रहेंगें, गुंडे-अमीर-जातिवादी लोग जीतते रहेंगे, पर गरीबों के जीवन में सुख कभी नही आएगा.

पूंजीवादी लोग भ्रष्ट्राचार करके, अनाफ सनाफ़ तरीके से मुनाफा इतके देश के भोली भाली जनता को लुटे जा रहे है. उनकी गैर तरीके से लुटी हुयी संपत्ति का राष्ट्रीकरण करना चाहिए, तथा भविष्य में अपने लिए किसी को भी लुटने का मौका न मिले इसलिए अधिकतम संपत्ति धारण कानून पास हो. देश में अगर सीमा से अधिक संपत्ति किसी के पास है तो उसे जप्त करने का अधिकार सरपंच, तहसीलदार, जिलाधिकारी को हो. अन्यथा एक तरफ पुलिस पूंजीवादियों को पकड़ते रहेंगे और दूसरी ओर पूंजीवादी निजीकरण के अधिकार के कारण सामान्य गरीब जनता का दोहन करते रहेंगे. कुत्ता बिल्ली का खेल हमेशा चलता रहेगा. अमीर अपनी संपत्ति के रक्षा के लिए बैंक में धन जमा करेंगे और गरीब उनके धन को छिनने के लिए बैंक को लुटते रहेंगे. निजीकरण से महंगाई.बढती है, अधिक मुनाफा कमाने के लालच में उसे अमीर लोग ही बढ़ाते रहते है, अमीर गरीबों के दुश्मन होते है, उनमे गरीबों के प्रति कोई भी दया नहीं होती.  रही भी तो वह किसी काम की नही होती, क्योंकि दया कोई धन नही है, जो सतत बढ़ते महंगाई के साथ संघर्ष कर सकती है. अमीरी हटाए बिना गरीबी को नष्ट नहीं किया जा सकता, इसलिए हमारी मांग है की अमीरी हटाओ, गरीबी हटाओ.