शनिवार, 18 अप्रैल 2020

बुद्ध धम्म और हिंदू विचारों की घुसपैठ



     किसी भी शब्द का अर्थ वर्तमान में जैसा लिया जाता वैसा ही लेना चाहिएभगवान शब्द को वर्तमान में ईश्वर लिया जा रहा है। इतिहास में उसका अर्थ कुछ और होगा तो वह अर्थ अभी लेना ग़लत है, नागपुर में स्त्री के लिए बाई यह शब्द है पर वह शब्द पूना में लेना गुनाह साबित होता है, बाई को मावसी कहना उचित है। पाली साहित्य में काफ़ी घुसपेठ हुयी है, क्या क्या घुसपेठ हुयी? इसका जाएजा लिया गया तो यह पता चलता है की बुद्ध विचारों के विप्रतित अर्थ दर्शक शब्द वापर करना, का मा करना। उससे क्या साबित होगा? पढ़नेवाले नए पाठकों को ब्रम में डालना।

         बुद्ध ने त्रिपिटक की रचना नही की है, उनके शिष्यों ने की है जो ब्राह्मण भी थे, सम्राट अशोक ने छद्म भिक्षुओं को बाहर निकाला था पर पूरे लोग नही निकले थे। बुद्ध के समय भी ब्राह्मण भिक्षु महाकश्यप क्षत्रिय आनंद के विरोध में क्या क्या करते रहे यह सभी को पता है। यानी ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय में वर्ण संघर्ष दिखाई देता है। हीनयान और महायान की निर्मिती यह क्या दर्शाती है? पहले संगिति में सिर्फ़ पिटको का ही पठन हुआ, पिटक मौखिक रहे। हीनयान भिक्षुओं द्वारा प्रथम सदी में त्रिपिटक लिखा गया। महायानी भी सीलोन गए उन्होंने भी अपना साहित्य संस्कृत में लिखना सुरु किया। क्या संकृत लोकभाषा थी? घुसपेठ को छुपाने ने लिए ही संस्कृत में लिखा गया।

          राजा बृहदरथ हत्या के बाद महायान प्रचार के द्वार खुल गए। सुत्त पिटक के हर पन्ने पर घुसपेठ हुयी है ऐसा बाबा साहब अम्बेडकर ने भी स्वीकार किया।अगर सुत्त पिटक में घुसपेठ हुयी है तो अन्य जगह में नही हुयी होगी क्या? दुश्मन आपके साथ रहते है और पता भी नही चलने देते और वार करते है, बौद्धिक उलझन में डालने के लिए महायानी भिक्षुओं ने जो ज़्यादातर महायानी रहे, धम्म में / बुद्ध वचनो में घुसपेट की। इस घुसपेठ को अलग करने का कार्य ज़रूरी है इसे भी बाबा साहब अम्बेडकर मान्य करते है।

         जो भी लोग बुद्ध धम्म को ब्राह्मणी घुसपेट अलग करने का कार्य करेंगे उसे नवाजने की भी बात उन्होंने कही है। बुद्ध को भगवान गाथाओं में लगाया गया, ज़्यादातर गाथा महायानी कवि वृत्ति के ब्राह्मण भिक्षुओं ने लिखी है। कवि कल्पना विलासी होता है, असली विचार कम और नक़ली विचार ज़्यादा होते है। गाथाओं में भगवान अगर आया है तो उसकी ज़रूरत थी क्या? क्या वह तत्वज्ञान वाचक शब्द है? बुद्ध आदर दर्शक शब्दों के भूखे थे? इस शब्द की पाली साहित्य में क्या ज़रूरत थी?

         बाबा साहब अम्बेडकर ने ख़ुद को बुद्ध धम्म संशोधक होने से इंकार किया है, मै सिर्फ़ बुद्ध धम्म का प्रचारक हूँ कहा है। पर बौद्ध लोग उन्हें संशोधक समजकर " बुद्ध एंड हींज़ धम्म " सर पर उठाते है।बाबा साहब अपने हर ग्रंथो में संदर्भ देते रहे है पर यह ग्रंथ संदर्भ लेकर नही लिखा गया। आख़िर क्यों? उसका कारण यह है उन्हें बायबल जैसा बनाना है, बाइबल ईश्वर द्वारा बताई गई कृति होने से उसे संदर्भ की ज़रूरी नही है, पर धम्म भी ईश्वर की कृति थी? ज़्यादातर साहित्य महायानी पढ़ने से उसके उनके साहित्य के संदर्भ देने से वे बचते रहे। जितनी घुसपेठ त्रिपिटक में हुयी है उतनी ही चाहते हुए भी " बुद्ध एंड हिज़ धम्म" में भी उतरी है। यह धम्म की सुधारित आवर्ती नही है। जिसका प्रतिफल यह हुआ की जो बातें इस ग्रंथ में आयी है उसके कुछ अंश उनके आचरण में भी दिखते है।

          बुद्ध तत्वज्ञान क्या है? उसका प्रचार अगर भिक्षु कर रहे है तो विश्व बहुजन-हित/सुख से वंचित क्यू? त्रिपिटक में ९०% घुसपेठ हुयी है, उसे जैसा का वैसा ही हमें बाबा साहब ने एक ग्रंथ में दिया। भिक्षु चन्द्रमणि ने बाबा साहब को बोधिसत्व से सम्बोधित किया और उन्होंने उसे स्वीकार नही किया, क्यूँकि उसे पहले ही अपने धम्म ग्रंथ में सम्मिलित किया गया था।मुझे ब्राह्मण भिक्षुओं से परहेज़ नही है और अगर उनके विचार ग़लत है तो मै उसे ग़लत बोलने में कोई कंजूसी नही करूँगा। बोधिसत्व क्या है? बुद्धत्व प्राप्ति के पहले की अवस्था है, क्या यह सम्बोधन महायानी संप्रदाय के विचारों से मेल नही खाता?

         बाबा साहब को व्यक्ति पूजक/हीरो वरशिपर की ज़रूरत नही थी। धर्मानंद कोसंबी, आनंद कौशल्यायन, राहुल सांस्कृत्यायन और संघरक्षित महास्थविर बहुजन हिताय के अंबेडकरी आंदोलन से दूरी क्यूँ बनाए बैठे थे? वे सचमुच महान होने अगर उनके ज़रिए भारत में बौद्धों की संख्या में बदौती होती। यह लोग अछूतों से दूर भाग रहे थे, महात्मा गांधी के साथ दोस्ती निभा रहे थे।नए युग में " बुद्ध एंड हिज़ धम्म " का अनुवाद "भगवान बुद्ध और उनका धर्म" किसने किया? जब की उसी ग्रंथ में बाबा साहब ने धम्म को रिलीजन मानने से इंकार किया, पाली शब्द कोश के अनुसार धम्म का धर्म ठीक है पर बाबा साहब जब यह अर्थ नही लेते तो उसे जानबुज्कर क्यू लिया?