भारतीय मज़दूरों के कल्याण का राश्ता कार्ल मार्क्स के पास नही है, उनके भरोसे मज़दूर बनकर जन्मे है और मज़दूर बनकर ही मरेंगे_ मज़दूर हिंदू/मुस्लिम के ईश्वर/अल्ला के झुट मानसिकता में अटका हुआ है, उनके दुश्मन पंडित/मुल्हा है, इनसे कैसे निपटा जाए इसका इलाज सिर्फ़ गौतम बुद्ध के पास है, उसी को सही ढंग से समझो -समझाओ और जंग जीतो नही ही अंधेरे / दुःख के काल कोठरी में मरो। भारतीय मज़दूरों के उद्धार के लिए न पंडित आएँगे, न मुल्ला आएँगे और न कार्ल मार्क्स आएँगे _चाहे कितने भी समय तक इंतज़ार करे, भारतीय मज़दूरों के लिए एक मात्र रोशनी है, बुद्ध धम्म।
सवर्ण हिंदुओ के ख़िलाफ़ जंग जितने के लिए खुला युद्ध बौद्धिक हो तो ही हम जीत सकते, शक्ति के साधनो के द्वारा हमारा पराजय निश्चित है। सवर्ण हिंदू क्या चाहते है? क्या उनकी माँग न्यायपूर्ण है? अगर हाँ जवाब है तो उसकी पूर्ति करो नही तो ग़ैर ज़रूरी, फ़ालतू कहकर उसके दुस्परिणाम गिनाओ तो वे मान सकते है, नही समज सके तो उदाहरण देकर समजाओ वे न समज़ने के लिए भगवान/ईश्वर तो नही है। एक पत्तर तबियत से उच्छालो ज़रा फिर देखो उसका परिणाम क्या आता है, यह कार्य करने के लिए हमें बौद्धिक परिपक्व होना जरूरी है, जो बुद्धिमत्ता हम उसे देने जा रहे है उसपर अगर अमल नही कर रहे है तो उस महान बुद्धी का विशेष असर नही होगा।
जन्म से कोई व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यानी सवर्ण नही हो सकते या अछूत - भटके अ-वर्ण नही हो सकते, पर ऐसा अगर अगर मान बैठे है तो हम ब्राह्मणवाद के शिकार है_ इस मनुवादी मानसिकता से हम अगर अलग विचार करना सुरु नही करते तो न हम "कल्याण"को प्राप्त कर सकते और न "सुख"प्राप्त कर पाएँगे। आप अच्छाई के लिए अपने पीड़ित वर्ग को जागृत करते रहेंगे और पिडक पीड़ा देने के लिए हमेशा कार्यरत रहेंगे तो पीड़ा/दुःख/शोषण से मुक्ति कभी भी नही होगी। पीड़ा उत्पन्न करनेवाले पेड़ को जड़ से काटा जाए, यानी इंसान की हत्या करो जो बुरा है, इसका ऐसा अर्थ नही है।
पीड़ा देने के विचार दिमाग़ में होते है, जिसके दिमाग़ में ऐसे विचार है उनके भी कुछ महा गुरु होते है, आप उसने जाकर शालीनता से मिलो, पीड़ा उत्पति के निजी और सामाजिक, राष्ट्रीय व वैश्विक असर-बे-असर समझाओ, विविध उदाहरणो द्वारा समझाओ, एक ही बार नही तो बारंबार समझाओ तो एक न एक दिन वह अपनी ग़लती समझ जाएगा, अगर फिर भी वह न माने तो उसके जवाब में जनता की एकता क्या क्या नही कर सकती? इसका डर बताओ तो पीड़ा का उगमस्थान सुधर सकता है।
परंतु हम इस क़दम को फ़ालतू मानकर उनके खिलाप जंग करने लगते हो, उचित साधनो के अभाव में जंग जीत नही पाते, पहले भी पीड़ा में थे और बादमे भी पीड़ा में ही रहते। यह दुःख/पीड़ा उत्पीड़न का राश्ता छोड़कर कही ब्राह्मण बुद्ध के शरण में आए। यह रास्ता कल्याणकारी है, यह बुद्ध ने साबित किया है। पीड़ा के कारण ही ख़त्म होंगे तो पीड़ा ही निर्माण नही होगी, जनता आपसी भाईचारे के साथ जीवन यापन करेगी। कोई भी व्यक्ति ख़राब नही होता, उसकी सोच ख़राब होती है, हम अगर सोच के डाक्टर है तो बीमारी का अंत ज़रूर होगा, सिर्फ़ उसका सही ढंग से इस्तेमाल करते आना चाहिए।
ग़रीबी, भुक मरी, अशिक्षा और जाती उत्पीड़न यह हिंदू धर्म के परिणाम है, परिणामों को छोड़कर कारनो की और लक्ष केंद्रित करना चाहिए, भारत की ग़रीबी धर्म की उपज है, इसलिए धर्म के ख़िलाफ़ ख़ून ज़रूर खौलना चाहिए, अगर धर्म के ज़ंजीरो से ग़रीबों की मुक्ति करने में हम कामयाब होते है तो ही हम ग़रीबी मिटाने के जंग को जीत सकते है, जबतक वह ईश्वर-आत्मा-स्वर्ग-नर्क के बौद्धिक ज़खड़न में है तबतक उनका उद्धार और दूसरा कोई भी व्यक्ति नही कर सकता। हिंदू धर्म शोषण करने की सलाह देता है, शोषण का कारोबार फल-फूल रहा है। भारत में अगर शोषण रोखना है तो हिंदू धर्म चिकित्सा सतत करते रहो।