"ज्ञानी को ज्ञानी मिले तो रस की लयलुट और ज्ञानी को अज्ञानी मिले तो माथा कूटा-कूट"
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आम्बेडकरी विचारवंतो, सप्रेम जयभिम! आपके दिल में अम्बेडकर और उनके विचारों के बारे में हमदर्दी है, यह भी बहुत अच्छी बात है, मेरे भी दिल/दिमाग़ में है। मेरे अध्ययन में अंबेडकरवादी वह है जो वर्ण, वर्ग, जाती, पंथ, भाषा, लिंग जैसे भेदभाव से मुक्ति दिलाने का काम है फिर उसके लिए काम कोई भी करे। हर महान व्यक्ति पिछड़ो को समता के रेखा तक ऊपर उठाने के लिए काम करते है, इसलिए उन्हें हमें भेदभाव के करने दायरे से छोड़ना चाहिए।
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आम्बेडकरी विचारवंतो, सप्रेम जयभिम! आपके दिल में अम्बेडकर और उनके विचारों के बारे में हमदर्दी है, यह भी बहुत अच्छी बात है, मेरे भी दिल/दिमाग़ में है। मेरे अध्ययन में अंबेडकरवादी वह है जो वर्ण, वर्ग, जाती, पंथ, भाषा, लिंग जैसे भेदभाव से मुक्ति दिलाने का काम है फिर उसके लिए काम कोई भी करे। हर महान व्यक्ति पिछड़ो को समता के रेखा तक ऊपर उठाने के लिए काम करते है, इसलिए उन्हें हमें भेदभाव के करने दायरे से छोड़ना चाहिए।
भारत में बाबा साहब अम्बेडकर ने जाती अंत और वर्ग अंत करने का लक्ष रखकर कार्य किया पर वह हासिल नही हुआ, इसलिए आज भी भारत में जातिगत भेदभाव के सिकार लोग दिखाई देते है, उसी प्रकार ग़रीब लोग भी भूँक के बीमारी से ग्रस्त है। वर्ग वाद मिटा नही है। अगर इस बात को हम स्वीकार करते है तो बाबा साहब ने जो कार्य किया उसमें वे कितने प्रतिशत सफल रहे?
अगर बाबा साहब अपने उद्धेशों को हासिल करने में सफल रहे होते तो उन्होंने दिनांक २५ नव्मबर १९४९ को सूचना क्यू की थी? अगर भारत सरकार ग़रीबों की ग़रीबी (आर्थिक विषमता) मिटाने में सफल नही रहे तो वे राजकीय जनतंत्र के महल की धज्जियाँ उड़ा देंगे, संविधान का शासन ख़त्म करेंगे वह दिन भारतीय इतिहास में दुःख दायीं होगा।___ अगर ग़रीबों की ग़रीबी सरकार नही मिटा सके तो अंतिम रास्ता साम्यवादी होगा।___ आज हम धम्म द्वारा अगर ग़रीबों के दुःखों को हटा नही पा रहे तो हमें और कोंसा रास्ता है?
ग़रीबी अपना आंदोलन ख़ुद नही चला सकते क्यूँकि उसे डर है की हम अगर जेल गए तो रात में बच्चे क्या खाएँगे? उनके नाम पर दयालु लोग आंदोलन चला रहे है पर उन्हें भी "शहरी नक्सली" का सिक्का लगाया जा रहा है, क्या ठीक है? अगर ग़लत है तो हम उसके विरोध में क्या कार्य कर रहे है?
धार्मिक अंध श्रद्धा को अफ़ीम कहना और ग़रीबों को अमीरों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए किसी ने कार्य किया है तो इसमें बुराई क्या है? क्या यह कार्य अंबेडकरी/धम्म में सरिक नही हो सकता? यही तो कार्य करने के लिए आनंद तेलतुम्बले ने क़लम और ज़ुबान चलाई थी, क्या बुरा किया था?
तेलतुम्बले साहब का कहना इतना ही है की अम्बेडकर साहब अपना उद्धिष्ट हासिल करने में विफल रहे और हम कहते है अम्बेडकर साहब का सपना अधूरा है, उसे पूरा करना है। उन्होंने "विफल" कहा और हमने "अधूरा" कहा इसमें फ़र्क़ क्या है? यह बात आम्बेडकरी प्राध्यापक / बुद्धिजीवी समझने में चूक कर बैठे। उपेक्षितों के हितो में कार्य करने का लक्ष रखना और उसे पुरने के लिए भरपूर/लगातार प्रयास करना फिर भी लक्ष हासिल नही होना तो कहिंपर रुककर 'चिंतन' तो किसी ने करना चाहिए।
जातिगत आरक्षण दिलवाना यह बाबा साहब अम्बेडकर का लक्ष नही था, पर भारत में "राज्य समजवाद" क़ायम करने में सफलता नही मिली तो इसे अपनाना पड़ा, यह जातियों का इलाज जाती से करना है, जो सफल नही हुआ, विफल रहा। यह आरक्षण "जाती अंत" के लक्ष के बिलकुल विपरीत है, बाधा है। जातिगत जन संख्या के अनुपात में लागू हुआ।उससे सिर्फ़ १०% लोग लाभान्वित हुए, ९०% लाभ से वंचित रहे है, यह लोग अभाव में कबतक जी पाएँगे? इसलिए तेलतुम्बले साहब ने कहा है की आरक्षण से ग़रीबों का स्वरक्षण शंभव नही है, इसमें उनकी या उनके विचारों में ख़ामी क्या है?
तेलतुम्बले अगर मार्क्स वादी है तो बौद्धों का क्या नुक़सान है? उनके कार्य से सबसे ज़्यादा चोट ब्राह्मणवादी लोगों को हुयी इसलिए उनके ख़िलाफ़ पुलिस में ग़लत आरोप लगाए गए। कनय्या कुमार जनतंत्र की बात करता है तो वह बौद्ध लोगों के ख़िलाफ़ कैसे हो गया? तेलतुम्बले ने कभी जनतंत्र के ख़िलाफ़ बात की है क्या? व्यक्तिपूजक आम्बेडकरी लोग जनतंत्र के लिए ख़तरा है।
सुप्रसिद्ध पत्रकार, विचारवंत, लेखक और जूझरू आम्बेडकरी कहा जाता है जिन्हें देश/दुनिया में पहचाना जाता है, उन्होंने अम्बेडकर जयंती के सुनहरे अवसर पर जालंधर में आनंद तेलतुम्बले को निमंत्रित किया, वह गए, उद्धेश यही था की बौद्ध लोगों में ९०% ग़रीबी में जीवन यापन कर रहे है, अगर "श्रमिक" लोगों के नेता एक होकर कार्य करते है तो भारत से पूँजीवाद को मिटाया जा सकता है।
एल आर बाली साहब उस जयंती कार्यक्रम के आयोजक थे, उन्हें इतना भी ज्ञान नही हो सकता की हमने जयंती अवसर पर किसे बुलाना चाहिए और किसे नही? उन्होंने आनंद तेलतुम्बले के विचार सुनने के बाद उन्हें कोई ख़ामी क्यू नज़र नही आयी? और महाराष्ट्र के जातिवादी लोगों को ही ख़ामी क्यू नज़र आती है?
स्पष्ट है की आनंद तेलतुम्बले आरक्षण विरोधी भूमिका रखते थे इसलिए कांशीराम भक्त और आरक्षण लाभान्वित लोगों को उनके भूमिका पर संदेह होता है, उन्हें सिर्फ़ मार्क्सवादी कहकर विरोध करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के अलावा और कुछ नही। बौद्ध विचारवंत किताबों के बाहर निकलते नही और जो निकलते है उसमें ख़ामियाँ निकालने के लिए तयार रहते है। कार्य करेंगे तो उनकी चिकित्सा होगी पर आम्बेडकरी बिचारवंतो ने कार्य ही नही किए तो उनकी चिकित्सा कैसी की जा सकती है?
कार्य करनेवाला व्यक्ति किसी जाती, धर्म या नेता का रिस्ते में आता यह विचार नही करना चाहिए, उनके कार्य की चिकित्सा करनी चाहिए, पूँजीवादी विचार और संस्थाओ के विचारों का विरोध करना ग़रीबों के हितो में है, यह कार्य अम्बेडकर/बुद्ध विचारों के ख़िलाफ़ है ऐसा मै नही कह सकता। बाबा साहब के कार्यों की चिकित्सा करना कोई गुनाह नही है, जो लोग अपने कार्यों की चिकित्सा नही करते वे अपने उद्धेश को कभी हासिल नही कर सकते। अगर आम्बेडकरी लोगों को समाज कल्याण का कार्य करने की इच्छा है तो उन्होंने अपने कार्यों की हमेशा चिकित्सा करते रहना ज़रूरी है।
किसी भी जाती धर्म के लोग, संस्था इकट्टे होकर पूँजीवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करते है तो उनका हमने सम्मान करना चाहिए, न की विरोध। यह बात जितने जल्दी आम्बेडकरी लोग समझेंगे उतना ही अच्छा नही तो ग़रीब लोग अगर भूँक से परेशान होकर "झोंबी" बने या राजकीय जनतंत्र की धज्जियाँ उड़ाए तो न संविधान बचेगा और न संविधान की जय-जयकार करनेवाले बचेंगे। ग़रीबों का आवाज़ कही दसको से दबाया जा रहा इसकी और न सरकार का ध्यान है और न पूँजीपतियो का। जल्द सोचो, ग़रीबों के आवाज़ को बुलंद करनेवालो की क़द्र करना सीखो, यही अंबेडकरवाद है, यही धम्म है।
“जाती न पूछो साधु की पुँछ लिजिए ज्ञान - किम्मत करो तलवार की पड़ा रहन दो म्यान।"__ संत कबीर__ http://rajanandm.blogspot.com/2013/07/blog-post_18.html