शनिवार, 30 मई 2020

जनतंत्र के लिए खतरा

पिछले सदी में २ विश्व महायुद्ध हुए. काफी जानमाल का नुकसान हुआ. तानाशाही के खिलाफ विश्व के कही देश एक हुए, जिससे विश्व के काफी देश तानाशाही से मुक्त हुए, जहाँ पर जनतंत्र बहल किया गया. भारत में अंग्रेजों के गुलामी से आझादी पाने के लिए संघर्ष चालू थे, भारत आझाद हुआ और भारत में भी राजकीय जनतंत्र बहाल किया गया.
डॉ बाबासाहब आंबेडकर महान बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में वे उभरकर आये. आझाद भारत का संविधान लिखने के लिए उनका भी काफी समय व्यतीत हुआ, २ साल, ११ माह और १८ दिन में भारत का संविधान कांग्रेस के नेताओं के बहुमतों से बना. मगर बाबासाहब के मतानुसार उसमे कुछ खामिया रही. वह राजकीय जनतंत्र बहाली के योग्य रहा पर आर्थिक जनतंत्र बहाल करने में यह संविधान असफल रहा. जिसके वजह से गरीब और अमिर ऐसे दो गुठों में जनता विभक्त हुयी.
गरीब लोगों ने अपने विकास के लिए जातिगत आरक्षण को अपना हक समझकर स्वीकार किया पर उससे सभी गरीबों का विकाश नहीं हुआ. अभी भी भारत में गरीबों की हालात बहुत दयनीय है. कुछ लोगों ने आंबेडकर साहब के साथ बौद्ध धम्म को अपनाया, पर उससे भी गरीबी दूर करने के लिए कुछ मदत नहीं हुयी. कुछ लोग अपना जनतांत्रिक रास्ता भूल गए.
कुछ लोग जातियों के तानाशाही को अपने विकाश का रास्ता समझकर "बहुजन", व् "मुल्निवाशी" लहर में बह गए. कुछ लोगों को वह कम बिचमे ही छोड़ना पड़ा, क्योंकि उनमे तानाशाही हावी हुयी, संघटन में तानाशाही के काफी लोग शिकार हुए. और कुछ लोग मार्क्स वाद के माध्यम से अपनी गरीबी भगाने लगे, वे माओवादी नक्शली बने.
बहुजन लहर जातिवादी बनी तो कुछ लोग बगावती बने जिसमे से कुछ लोग माओवाद को बुद्ध धम्म समझ बैठे. हकीकत यह है की बुद्ध का रास्ता न जातिवाद का है और न मार्क्सवाद का. बाबासाहब ने जातिवाद और मार्क्सवाद से दूर रहने की हमेशा हिदायत दी थी.
बाबासाहब ने भाषण में स्पष्ट कहा था," विश्व के सामने, विशेषतः आशिया खंड में आज दो ही रास्ते बाकि है, एक बुद्ध का रास्ता और दूसरा मार्क्स का रास्ता. बुद्ध तत्वज्ञान का विश्व ने समय रहते हुए अंगीकार नही किया तो, कम्मुनिष्ट तत्वज्ञान का विजय होना तय है. बुद्ध का तत्वज्ञान यही विश्व को एकमेव आधार है. उसका प्रचार जितना ज्यादा होगा उतना ही विश्व युद्ध से वंचित रहेगा और शांति के करीब जायेगा."
मार्क्सवाद एक प्रकार की गरीबों की, मजदूरों की तानाशाही है. तानाशाही जनतंत्र के खिलाफ है, यह सोचकर बाबासाहब ने जनतंत्र के हिमायती बुद्ध को अपनाया, अपना गुरु कहा. तानाशाही फिर जाती की रहे या वर्ग की वह इंसानी हिंसा को बढ़ावा देती है, इसलिए बाबासाहब आंबेडकर ने हमेशा ब्राह्मणवाद और कम्मुनिष्ट विचारों का जमकर विरोध किया है.
जो लोग जनतंत्र में विश्वास करते है, उन्होंने जनतंत्र के रक्षा के लिए हमेशा आगे रहना चाहिए. काठमांडू, नेपाल के अपने प्रसिद्ध भाषण में भी उन्होंने "बुद्ध बनाम मार्क्स" साबित किया और भिक्षुओं को हिदायत दी थी की अगर विश्व में कम्मुनिस्ट (माओवाद) फैला तो उसके जिम्मेदार भिक्षु ही रहेंगे, ऐसा स्पस्ट कहा था.
न जातिवाद धम्म विचार है और न कम्मुनिस्ट विचार धम्म विचार है. जातिवादी लोगों और कम्मुनिस्ट द्वारा धम्म या आंबेडकर साहब से अपना रिश्ता बताने का प्रयास करना यानी उनका अपमान करना है. भारत सरकार ने भी जातिवाद के प्रचार को तथा कम्मुनिसटों  के विचारों को आतंकवादी विचार घोषित करना चाहिए, तभी ही देश में जनतंत्र की उचित रक्षा होगी.