बुधवार, 6 मई 2020

शिवधर्म _एक अफ़ीम


हर व्यक्ति को अपनी परिभाषा करनी चाहिए, कोई उसे कार्यकर्ता भी कह सकता है, तो कोई महा पुरुष। हिंदू धर्म के अनुसार ब्राह्मण लोग ही महापुरुष हो सकते है, चमार जाती का राजा, वह भी दत्तक और ख़ुद को वर्ण व्यवस्था में "क्षत्रिय" पद हासिल करने के लिए प्रयास करे तो उन्हें हिंदू ही कहना चाहिए या बौद्ध? जो लोग हिंदू रहकर भी कितनी भी क्रांति करे, शूद्र ही है, और शूद्र महान ही नही है तो उन्हें महापुरुष क्यू कहना चाहिए?

केवल जातिवादी लोग हीं जातियों के पुतले बनाते है और उन्हें महापुरुष का दर्जा दे देते है, हिंदू धर्म में चार वर्ण है, राजा होने के बावजूद भी उन्हें शूद्र ही समझा जाता रहा, शूद्र से "क्षत्रिय" बनने के लिए उपनयन विधि की थी, क्या यह महान कार्य हो सकता है? पेशवाई तो अछूतों को जीना हराम कर रही थी, इस महाशय का राज्य चलते हुए इन्होंने क्या किया? अछूत मुक्त कोल्हापुर हुआ? राजे शाही किसी की भी रहे जनतंत्र का सुकून नही दे सकती। वर्णवादी राजा को ब्राह्मण कितना महत्व दे ? यह उनकी मर्ज़ी है।

आपका अध्ययन करने का उद्धेश क्या है? इसपर निर्भर करता है की आप अपने अद्ययन से क्या हासिल करे, आपको वर्ण व्यवस्था निर्मूलन के लिए धम्म नज़र आया, क्यूँकि अभी वर्ण पालन के दुस्परिणाम आप महसूस कर रहे हो। अगर धम्म केवल वर्ण निर्मूलन के लिए ही है तो दूसरे देशों ने उन्हें अपनाने की ज़रूरत नही थी, पूजापाठ के लिए उनके भी अपने पुराने देवता थे।

जातिगत आरक्षण माँग के अब हमने समीक्षा करनी चाहिए, देखा यह गया की केवल १०% पिछड़ो के लिए फ़ायदा और ९०% पिछड़ों का नुक़सान हुआ, क्या यह बहुसंख्यंक पिछड़ो पर अन्याय नही है? अन्याय की परम्परा हमने कबतक चलानी चाहिए?
ओबिसी की वकालत करते हुए आपको क़रीब २० साल हुए है, पर आपका धम्म ज्ञान बिलकुल नही बढ़ा, न कभी बढ़ाने का प्रयास भी किया, आपके इस विचार से यह अंदेशा आता है की बुद्ध धम्म से "शिव धर्म" अच्छा है। क्यूँकि उसमें शिव का लिंग पूजने से आपको कोई रखावट नही है। जो बौद्ध लोग ओबीसी के हितो की वकालत करते आए है उनके बारे में आपके दिमाग़ में कितनी नफ़रत है ?इसकी बू आ रही है, आपके दिमाग़ में जातिवाद का ज़हर ज़िंदा है।

"शिव धर्म" आ ह सालुंखे ने परोसा, वह हिंदूधर्म की एक शाखा के रूप में धर्मांतर के गति को रोखने के लिए लगाया गया छोटासा रोड़ा है, उसे पार कर के भी काफ़ी लोग बौद्ध हो रहे है पर आप लोगों ने तो ओबिसी के केवल धार्मिक ही नही तो आर्थिक विकास के लिए भी रोड़े साबित हो चुके हो।न फुले के साथ गए और न अम्बेडकर के साथ पर आपकी आनेवाली पीढ़ी रुकनेवाली नही है_उन्हें शिवधर्म एक पाखंड लगने लगेगा, और वे बौद्ध बनाना पसंद करेंगे। सूरज की रोशनी हर अंधेरों को प्रभावित करती है।

बुद्ध धम्म और महायान

भिक्षु संघ से निष्कशित ख़ुद को "महायानी"कहते है।जिन्होंने उन्हें निष्कशित किया उन्हें इन्होंने "हिनयानी" (नीच विचार वाहक) कहना सुरु किया, दोनो संप्रदायों ने संगतिया लगायी और धम्म के नामपर अपने विचार त्रिपिटक में सम्मिलित किए, उसी को आधार बनाकर बाबा साहब अम्बेडकर ने "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" की रचना की, उसके उपरांत परिणाम क्या हुए?

बाबा साहब अम्बेडकर ने "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म"में पुनर्जन्म की तारीफ़ की, कहा की जिन से हम बने है वे भौतिक पदार्थों का पुनर्जन्म होता है। जबतक हम ज़िंदा है तबतक हम है।मरने के बाद "मै/हम" नही रहता तो पुनर्जन्म को स्वीकारने की कोशिस क्यूँ की? उसका एक ही कारण है, महायानी ग्रंथो का अंधानुकरन। जातक कथा जन्म-जन्मो की सृंखला समझाती है।

बोधिसत्व की महिमा समझाती है, बोधिसत्व के लालच जाकर १९३५ की घोषणा को १९५६ में पूरी किया, हम तो व्यक्तिपूजक है, जिनकी पूजा करते है, उनकी आलोचना करने से बचते है, सफलता के लिए आलोचना से बचना कोई सही इलाज नही है, आलोचना से कुछ सबक़ लेकर हम आगे बढ़ सकते है,पर आलोचक को भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है, आलोचना करने का फल साक्रेटिस और संत कबीर साहब जैसे कही लोगों को अपने जानो की क़ुरबानी देनी पढ़ी इसलिए आलोचक भी डरते रहते है।

बुद्ध धम्म का उद्धेश “बहुजन हित-सुख-कल्याण” है, उसके लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग और आदर्श जनतंत्र के लिए "भिक्षु संघ" का संविधान बना, जिसका प्रयोग "वज्जि"लोग उनके जीते जी करते थे। वर्ण निर्मूलन के बाद समाज में सुख-शांति बनाए रखने के लिए हमने हमारे आचार-विचार कैसे वैज्ञानिक होने चाहिए इसलिए उन्होंने कभी कर्मकांडो की वकालत नही की थी।

बाबा साहब अम्बेडकर ने "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" लिखा यह अच्छी बात है, सिद्धार्थ बुद्ध कोई काल्पनिक पात्र नही है, इसके पहले जो भी ग्रंथ लिखा उसके संदर्भ देते रहे परंतु इस ग्रंथ के अंत या अंदर में नही दिए, आख़िर क्यू? उन्हें पता था, की बुद्ध त्रिपिटक में भारी मिलावट हुयी है। अगर संदर्भ दिए गए तो उसके विश्वास पात्रता पर संदेह किया जाएगा और यह ग्रंथ "मतभेद" का विषय बनेगा।___ हिंदू धर्म का गंधा पानी बुद्ध धम्म के शुद्ध पानी में आकर मिला है, अब वह गंदगी दूर करने की ज़रूरत है, जो इस गंधगी को साफ़ करेगा उसे मै नवाजूँगा, अब मेरे पास वक़्त नही है,___मै बौद्ध धम्म का प्रसंसक हूँ, चाहता हूँ, संशोधक नही हूँ। इसप्रकार बयान देने के बाद हमारी क्या ज़िम्मेवारी है? गंन्दगी साफ़ करने के लिए उसकी आलोचना करे या उससे बचे?

निर्वाण भी महायानी भिक्षुओं की गंधी खोपड़ी की उपज है, जिस के हमले से ख़ुद बाबा साहब अम्बेडकर नही बच पाए तो आप और हम किस गली की पत्तियाँ है? धम्म उद्धेश के पूर्ति के लिए जो विचार पूरक है वे धम्म का अंग हो सकते और जो विचार पूरक नही हो सकते वे घातक ज़रूर होते है।निर्वाण बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय, आदि कल्याण-मध्य कल्याण-अंत्य कल्याण कर रहा है क्या? अगर नही तो उसे स्वीकार करने से हमारी/समाज की कोनसी तरक़्क़ी है?

व्यक्ति जबतक ज़िंदा रहेगा उसमें इच्छाएँ रहेगी, उसका परित्याग करना से शांति ज़रूर मिलेगी पर शमशान में, ख़ुशी तो मिल ही नही शकती, दुःख मिलेगा,बताने वाले बताते जाते और हम उनका अंधनुकरन करते जाते, निर्वाण = ना + वान = शरीर/काया। निर्वाण = काया नही है। इसमें उपलब्धि क्या है? "निर्वाण" की गरिमा क्या है?_महायानी/ब्राह्मण भिक्षुओं को भिक्षु संघ ने निस्कासित किया था वे लोग ख़ुद की टोली चलाने लगे वे धम्म के दुश्मन थे, धम्म अवरोध के लिए उन्होंने क्या क्या नही किया?