हर व्यक्ति को अपनी परिभाषा करनी चाहिए, कोई उसे कार्यकर्ता भी कह सकता है, तो कोई महा पुरुष। हिंदू धर्म के अनुसार ब्राह्मण लोग ही महापुरुष हो सकते है, चमार जाती का राजा, वह भी दत्तक और ख़ुद को वर्ण व्यवस्था में "क्षत्रिय" पद हासिल करने के लिए प्रयास करे तो उन्हें हिंदू ही कहना चाहिए या बौद्ध? जो लोग हिंदू रहकर भी कितनी भी क्रांति करे, शूद्र ही है, और शूद्र महान ही नही है तो उन्हें महापुरुष क्यू कहना चाहिए?
केवल जातिवादी लोग हीं जातियों के पुतले बनाते है और उन्हें महापुरुष का दर्जा दे देते है, हिंदू धर्म में चार वर्ण है, राजा होने के बावजूद भी उन्हें शूद्र ही समझा जाता रहा, शूद्र से "क्षत्रिय" बनने के लिए उपनयन विधि की थी, क्या यह महान कार्य हो सकता है? पेशवाई तो अछूतों को जीना हराम कर रही थी, इस महाशय का राज्य चलते हुए इन्होंने क्या किया? अछूत मुक्त कोल्हापुर हुआ? राजे शाही किसी की भी रहे जनतंत्र का सुकून नही दे सकती। वर्णवादी राजा को ब्राह्मण कितना महत्व दे ? यह उनकी मर्ज़ी है।
आपका अध्ययन करने का उद्धेश क्या है? इसपर निर्भर करता है की आप अपने अद्ययन से क्या हासिल करे, आपको वर्ण व्यवस्था निर्मूलन के लिए धम्म नज़र आया, क्यूँकि अभी वर्ण पालन के दुस्परिणाम आप महसूस कर रहे हो। अगर धम्म केवल वर्ण निर्मूलन के लिए ही है तो दूसरे देशों ने उन्हें अपनाने की ज़रूरत नही थी, पूजापाठ के लिए उनके भी अपने पुराने देवता थे।
जातिगत आरक्षण माँग के अब हमने समीक्षा करनी चाहिए, देखा यह गया की केवल १०% पिछड़ो के लिए फ़ायदा और ९०% पिछड़ों का नुक़सान हुआ, क्या यह बहुसंख्यंक पिछड़ो पर अन्याय नही है? अन्याय की परम्परा हमने कबतक चलानी चाहिए?
ओबिसी की वकालत करते हुए आपको क़रीब २० साल हुए है, पर आपका धम्म ज्ञान बिलकुल नही बढ़ा, न कभी बढ़ाने का प्रयास भी किया, आपके इस विचार से यह अंदेशा आता है की बुद्ध धम्म से "शिव धर्म" अच्छा है। क्यूँकि उसमें शिव का लिंग पूजने से आपको कोई रखावट नही है। जो बौद्ध लोग ओबीसी के हितो की वकालत करते आए है उनके बारे में आपके दिमाग़ में कितनी नफ़रत है ?इसकी बू आ रही है, आपके दिमाग़ में जातिवाद का ज़हर ज़िंदा है।
"शिव धर्म" आ ह सालुंखे ने परोसा, वह हिंदूधर्म की एक शाखा के रूप में धर्मांतर के गति को रोखने के लिए लगाया गया छोटासा रोड़ा है, उसे पार कर के भी काफ़ी लोग बौद्ध हो रहे है पर आप लोगों ने तो ओबिसी के केवल धार्मिक ही नही तो आर्थिक विकास के लिए भी रोड़े साबित हो चुके हो।न फुले के साथ गए और न अम्बेडकर के साथ पर आपकी आनेवाली पीढ़ी रुकनेवाली नही है_उन्हें शिवधर्म एक पाखंड लगने लगेगा, और वे बौद्ध बनाना पसंद करेंगे। सूरज की रोशनी हर अंधेरों को प्रभावित करती है।