कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी में हुआ। उनका जन्म ५ में १८१८ और मृतु १४ मार्च १८८३ को हुआ यानी वे कुल ६५ साल तक ज़िंदा रहे, उन्होंने "दास क्यापिटल" महान ग्रंथ लिखा, उसपर रशिया में झार शासन चला गया, ग़ुलामों का शासन बना, लेनिन उस देश का पीएम बना जो चमार/पिछड़े वर्ग का था।
मार्क्स के विचारों को साम्य वाद कहा जाता रहा, अंग्रेज़ी में कम्मूनिस्ट कहते है, कम्मुन/कम्मूनिटी यानी विशिष्ट लोगों का समाज। मार्क्स के दृष्टि से विश्व में शोषण है, शोसक /अमीर वर्ग शोषितों/ग़रीबों का शोषण करते है।
पुरोहित शोषण को धार्मिक अंध श्रद्धा में रखते है, ग़रीबी ईश्वर की देन है उसे हमने स्वीकार करना चाहिए, उसे नकारना यानी ईश्वर का अपमान करना है, ऐशी झूटी अफ़वा फैलाते है, धर्म के आड़ में शोषण होते रहता है पर शोषित अन्याय के ख़िलाफ़ जंग नही करते, इसलिए धर्म को उन्होंने अफ़ीम कहकर उससे बचने को कहा।
मार्क्स के दृष्टि से (१) विश्व की पुनर्राचना ज़रूरी है, (२) ग़रीब और अमीर में कलह/झगड़े/संघर्ष है। (३) सम्पत्ति के निजी हक़ों के कारण अमीर वर्ग शोषण करता है, यानी पीड़ित वर्ग दुःखी है। (४) दुख़ितों को सुख प्रदान करने के लिए निजी सम्पति का राष्ट्रीयकरण होना ज़रूरी है।
विश्व में ९०% लोग कामगार/श्रमिक है, जिनका शोषण होता है, दुःख को कार्ल मार्क्स ने ख़ुद अहसास किया। वे कहते है, "मेरी पत्नी बीमार है और बच्ची भी बीमार है लेकिन दवा ख़रीदने के लिए कुछ भी पैसा नही है। घर का किराया देना बाक़ी है। घरमालक सामान फेकने की धमकी दे रहा है। कही दिन हम ब्रेड और बटाटे खाकर कैसे तो भी पेट भर रहे है, जी रहे है" (एंगल्स को ख़त)
अभी हम डाक्टर बाबा साहब अम्बेडकर (जन्म १४/४/१९९१ और मृतु- ६/१२/१९५६ यानी ६५ साल) की जीवनी पर प्रकाश डालते है तो पता चलता है की उनका जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ और ऊपर से पिछड़े जाती में।
सयाजीराव गायकवाड (बदोड़ा, गुजरात) के मदत से विदेश गए, ज्ञान अर्जित किया, उनकी पूरी पढ़ाई अर्थ शास्त्र यानी आर्थिक /पैसा विषय में हुयी, उस समय कार्ल मार्क्स के विचारों से नए पीढ़ी के लोग/ छात्र-छात्राएँ दीवाने थे।विदेश में ही उन्हें मार्क्स का साम्यवाद पढ़ने को मिला।
भारत आकर २७/७१९२४ को "बहिस्कृत हितकारिणी सभा" शापित की। उसके कार्यकारी अध्यक्ष बाबा साहब ख़ुद थे, १३/३/१९२७ को समता सैनिक दल स्थापित किया, ४/९/१९२७ को समाज समता संघ को जन्म दिया।१९३६ में स्वतंत्र मजूर पक्ष बनाया। पक्ष का उद्धेश रहा उद्धोग और "भूमि का राष्ट्रीयकरण" हो। सन १९४२ में शेड़ुल्ड कास्ट फ़ेडरेशन की निव रखी।
३ गोलमेज़ परिषदे हुयी उन्मे भी वे शोषित-पीड़ित-दुखी लोगों के हितो की पेशकश करते रहे। आझाद भारत में वंचित / शोषित वर्ग सुखी कैसे हो सकता है, इसका वे हमेशा चिंतन करते रहे, शेकाप के द्वारा १९४६ में "राज्य समाजवाद" यानी भूमि, उद्धोग व बीमा के राष्ट्रीयकरण आझाद भारत को कैसे फ़ायदे का रहेगा इसे समझाया। कांग्रेस को यह निवेदन दिया, लेकिन कचरे का डब्बे में डाला गया।
संविधान बनाने के कार्य में जाने का अवसर वे तलास ही रहे थे, तो कांग्रेस का विरोध था, अंग्रेज़ सरकार को अर्ज़ी की तो उन्होंने कांग्रेसियों को फटकार लगाई तब मार्ग खुला, उसमें "जातिगत आरक्षण", प्रौढ़ मताधिकार, हिंदू कोड बिल, और बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय संविधान कांग्रेसी बहुमतों से बनाया।
इस संविधान में क्या ख़ामियाँ रही इसे २५/११/१९४९ के अपने भाषण में बाबा साहब अम्बेडकर ने बताया उसे जल्द दूर करने के लिए कार्य करने को कहा, अन्यथा ग़रीब लोग आर्थिक जनतंत्र/राज्य समाजवाद के अभाव के दुःखों से ख़फ़ा होकर राजकीय जनतंत्र की धज्जियाँ उड़ा देंगे, भी कहा।
अपने बारे में वे कहते है, "मेरे ४ अच्छे बच्चे मै मेरे हांतो से ज़मीन में बोए, उन्हें नही बचा पाया। मेरे पत्नी और मैंने यह सब कैसे बरदास्त किए होंगे यह हमारा हमें ही पता है। मेरा काँटों से भरे जंगलो जैसा जीवन रहा। (दत्तोबा ताम्बे को ख़त)
आख़री में शेकाफ को बर्खास्त करके "रिपावलिकन पार्टी" का प्रारूप लिखा, उसके लिए प्र के अत्रे, एस एम जोशी, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण,और मधु लिमए जैसे व्यक्तीयो के साथ पत्रों द्वारा सम्पर्क किया। उसका भी उद्देश "एक व्यक्ति एक व्हलू"/आर्थिक जनतंत्र को हासिल करना था।
राज्य समाजवाद के ज़रिए ब्राह्मणवाद और पूँजीवाद को ख़त्म किया जा सकता है, इसके बहाली के लिए "हम जोतिराव फुले के रास्तों से जाएँगे, उसके साथ कार्ल मार्क्स लेंगे या अन्य किसी को भी लेंगे लेकिन हम जोतिबा फुले का (गुलानों का आसूद) रास्ता नही छोड़ेंगे"
अपने "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" में कार्ल मार्क्स का उल्लेख करना, काठमांडू धम्म परिषद में "गौतम बुद्ध और कार्ल मार्क्स" को उजागर करके साम्यता समझना इसका मतलब यह यह है की आर्थिक क्रांति में कार्ल मार्क्स हमेशा खड़े होते रहे।
५ दिसम्बर १९५६ के रात्रो काफ़ी देर तक अम्बेडकर साहब पढ़ाई कर रहे थे, तो उनके टेबल पर "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" की प्रस्तावना, "गौतम बुद्ध एंड कार्ल मार्क्स" की हस्तलिपि थी, जिसमें उन्होंने ६ दिसम्बर के प्रथम प्रहर मे कुछ दुरुस्ती की थी और सो गए तो बाद में उन्हें मृत पाया गया।
काठमांडू के भाषण को "गौतम बुद्ध एंड कार्ल मार्क्स" नाम के शीर्षक के रूप में ही पढ़ा गया था, इसमें "एंड" की जगह "आर" बाद में जोड़ा गया, सिर्फ़ शीर्षक बदला गया लेकिन मजकुर नही। स्पष्ट होता है, की अम्बेडकर और कार्ल मार्क्स के उद्धेश एक समान रहे फ़र्क़ सिर्फ़ साधनो में रहा, हिंसा या अहिंसा का।
बाबा साहब ने बुद्ध का तत्वज्ञान अपनाया उसमें मध्यम मार्ग है जिसे दुःख मुक्ति का भी मार्ग कहते है। वह जीवन के किसी भी अंत से परे है, हिंसा-अहिंसा, अति हिंसा वैदिकता में लिप्त थी और अति अहिंसा जैनों में लिप्त थी, बुद्ध ने इस दोनो के बीच का / मध्यम मार्ग अपनाया_ ज़रूरत है तो हिंसा नही तो अहिंसा।
क्या बौद्ध देश सैनिकों को अहिंसा के लिए पालते है? क्या कम्मु निष्ट देश रात/दिन हिंसा ही करते रहते है? ब्राह्मणो के दुश्मन वर्ग वाद का विरोध करनेवाले मार्क्स वादी रहै है तथा मनुवाद का विरोध करनेवाले आम्बेडकरी बौद्ध भी रहे है। यह उनके असली दुश्मन है, यह अमेडकरी और मार्क्सवादी एक न हो इसलिए वे आपस में दूरी बनाए रखने के लिए हमेशा प्रयास करते रहे है और वे उसमें सफल भी रहे।
राज्य समाजवाद यानी आर्थिक जनतंत्र है यह बाबा साहब का लक्ष रहा है इसमें कार्ल मार्क्स के विचारों का विरोध नही है, न ग़रीबों का विरोध है, सभी का विकास ही विकास है, एक जुटता से शक्ति बनती है, हौशला बढ़ता है, लक्ष क़रीब आने लगता है और पूरा भी जल्दी किया जा सकता है।