डॉ. भीमराब आंबेडकर अर्थात बाबासाहेब अपने ऐस्तिहसिक ग्रन्थ में लिखते है, “लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का मत है कि, आर्य उत्तर ध्रुव के पास से आर्कटिक देश से आए है. (Artikc Home in the Vedas, by B.G. Tilak, Page-58, 60). यह मत भी कुछ ठीक नही जंचता, क्योंकि वेदों में और आर्यों के जीवन में ‘अश्व’ का विशेष स्थान है. तो क्या घोड़े (अश्व) भी उत्तर ध्रुव के पास पाए जाते थे? (Who Were The Shudras? - 1946, शुद्रो की खोज, अनुवादक- भदंत आनंद कौसल्यायन, समता प्रकाशन, नागपुर, प्र- १९९४, पृष्ट- २९)
दिनांक- २५/११/१९५६, काशी के हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगन में, जो भाषण डा. बाबासाहब आंबेडकर ने किया था, “जिन नाग लोगों ने आर्यों के पहले भारत में बस्ती की थी, वे आर्यों से ज्यादा सुसंकृत थे. उन्हें आर्यों ने जीता, पर इसलिए ही उनकी संस्कृति महान नही होती. आर्यों के विजय का कारण यही था की उनके पास घोड़े (अश्व) थे. आर्य घोड़ों पर सवार होकर लड़ते थे, तो नाग पैदल.” इस भाषण में बाबासाहब आंबेडकर ने नागों को सिर्फ “पहले के” कहा है, पर ‘विदेशी’ नही और न ‘देशी’ या ‘मुलनिवाशी’. आर्य किस देश से आए थे, जिस देश में घोड़े पाए जाते थे? बाबासाहब आंबेडकर के मतानुसार अगर आर्य विदेशी लोग है तो घोडा भी देशी जानवर नही है.
प्राचीन काल में घोड़ों को जिस देश में भी सबसे पहले पालतू जानवर बनाया गया था, उस देश का नाम क्या है? इसे जबतक साबित नही किया जाता, तबतक आर्यों का मूलस्थान साबित नही हो सकता. आर्य विदेशी या देशी भी हो सकते. आज देश की जो सीमाए है, यही सीमाए प्राचीन समय मे भी थी, ऐसे कैसे कह सकते? आज जनतंत्र है, उस समय राजतन्त्र हुआ करता था. आज के भारतीय सीमाओ के अन्दर कही छोटे-छोटे राजा राज्य करते थे. एक राज्य के शिमाओ को एक देश की सीमाए समझी जाती थी. किन-किन राजाओं के राज्यों को भारतीय सीमा के अंतर्गत गिना जाना चाहिए और किसे नहीं? अगर "आर्य" विदेशी है तो “नाग” भी मुलनिवाशी कैसे?
जो ‘नाग’ लोग स्वयम मुलनिवाशी नही है, सिर्फ ‘पहले के’ है, पहले आए है. (अर्थात विदेशी है) उन्हें भारतीय मूलनिवासी क्यों कहना चाहिए? उन्होंने पहले भारत से उनके अपने देश में भाग जाना चाहिए, क्यूकी वे भारतं में आर्यों के पहले (के है) आए है. जो सवाल बाबासाहब आंबेडकर ने (हु वेअर दी शुद्राज? ग्रन्थ में) बाळ गंगाधर तिलक से किया है, उसका जवाब बाद में न स्वयम बाबासाहब आंबेडकर ने दिया है, न किसी ब्राह्मणों ने भी दिया है और न बामसेफ/ बीएसपी/ एम्बस/ मुलनिवाशी के नामपर राजनीती करनेवाले छद्म सामाजिक, जातिवादी, राजकिय नेताओं ने भी दिया है. तो भारतीय आर्य (= ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र/ओबीसी) यह लोग किस देश के मुलनिवाशी है?
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “हु वेअर दी शुद्राज?” (शुद्र “आर्य” जाती के सूर्य वंश के थे. (पृष्ट- ९५) के मुताबिक चातुरवर्णीय लोग ही ‘आर्य’ है. चातुर्वर्ण में चतुर्थ वर्ण ‘शुद्र’= ओबीसी भी आते है. बाबासाहब के मुताबिक केवल “ब्राह्मण” लोग ही आर्य नही है, तो जा वैदिक चातुर्वर्ण्यं में सम्मिलित आते है, वे सभी ‘आर्य’ है. अगर बाद वाले विचार बिना सबूत के होने पर भी उसे स्वीकार करना और पहले की विचार सबूतों के आधारपर सही होने के कारण भी नकारना, इसे कोनसी सोच कहना चाहिए? मुजोरी, भावना या बुद्धिवादी?
देखीए बाबासाहब आंबेडकर ने अपने पहलेवाले विचारों में आर्य विषयक क्या कहा था, “आर्य तथा दासों और दस्युओं में जातीय भिन्नता न थी, दास तथा दस्यु, आर्य तथा दासो और दस्युओं में जातीय भिन्नता न थी. दास तथा दस्यु आर्य हो सकते थे. आर्य एक जाती है, यह एक मनगड़ंत बात है. इसका आधार डॉ. बाप की पुस्तक “Comperative Grammar” है. ... वेदों से यह सिद्ध नही होता कि आर्य कोई जाती थी या नही. तथा आर्यों ने भारत पर हमला किया और दासो और दस्युओ पर विजय प्राप्त की. इसका कोई प्रमाण नही है की आर्य, दास तथा भिन्न-भिन्न जाती के थे. (शुद्रो की खोज, समता प्रकाशन, नागपुर, प्रकाशन- १९९४, पृष्ट-३०-३१)
अगर आर्य वंश के लोग विदेशी है तो नाग वंश के लोग भी विदेशी ही है. फर्क इतनाही है की नाग पहले आहे और आर्य बाद में. अगर बाद में आनेवाले विदेशी है तो पहले आनेवाले देशी या मूलनिवासी कैसे? नाग लोग भारत से भागने के बाद जो लोग बाकि रहेंगे, उनकी ‘देशी या विदेशी’ इस विषय पर जाँच की जाएगी, उसके बाद उन्हें रखना चाहिए या नही? इस विषय पर विचार, चर्चा, बहुमत होगा. उसके बाद विचार किया जाएगा. लेकिन इस विषय पर ‘आर्यों के साथ-साथ नागों’ को भी बोलने का कोई नैतिक हक़ नहीं है. तर्क यह भी लगाया जा सकता है, तो क्या उसपर अमल ही करना चाहिए?
अगर भारत में कोई भी गुट या पार्टी हो जो जाती, जन्म, नस्ल, धर्म के आधारपर झगडे/संघर्ष खडे करने के उद्धेश से कार्य करते है, उन्हें जल्दी से जल्दी नहीं रोका गया, उनपर पाबंधी नही लगायी गयी, तो आगे, भविष्य में वंशवादी जंग जरुर होगी, उसमे देशी लोग ही देशी लोगों के लिए घातक/दुश्मन साबित होंगे. जिसमे महान, विश्व विख्यात राजकीय जनतंत्र की भी धज्जीया उड़ेगी. भारत का नाम काले अक्षरों में विश्व के नक्से पर पाकी जैसा ही लिखा जायेगा. देश के गृहमंत्री का यह कार्य है की भविष्य में होनेवाले झगड़ो के कारण वर्तमान में ही कैसे क्या ख़त्म करे.
दिनांक- २५/११/१९५६, काशी के हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगन में, जो भाषण डा. बाबासाहब आंबेडकर ने किया था, “जिन नाग लोगों ने आर्यों के पहले भारत में बस्ती की थी, वे आर्यों से ज्यादा सुसंकृत थे. उन्हें आर्यों ने जीता, पर इसलिए ही उनकी संस्कृति महान नही होती. आर्यों के विजय का कारण यही था की उनके पास घोड़े (अश्व) थे. आर्य घोड़ों पर सवार होकर लड़ते थे, तो नाग पैदल.” इस भाषण में बाबासाहब आंबेडकर ने नागों को सिर्फ “पहले के” कहा है, पर ‘विदेशी’ नही और न ‘देशी’ या ‘मुलनिवाशी’. आर्य किस देश से आए थे, जिस देश में घोड़े पाए जाते थे? बाबासाहब आंबेडकर के मतानुसार अगर आर्य विदेशी लोग है तो घोडा भी देशी जानवर नही है.
प्राचीन काल में घोड़ों को जिस देश में भी सबसे पहले पालतू जानवर बनाया गया था, उस देश का नाम क्या है? इसे जबतक साबित नही किया जाता, तबतक आर्यों का मूलस्थान साबित नही हो सकता. आर्य विदेशी या देशी भी हो सकते. आज देश की जो सीमाए है, यही सीमाए प्राचीन समय मे भी थी, ऐसे कैसे कह सकते? आज जनतंत्र है, उस समय राजतन्त्र हुआ करता था. आज के भारतीय सीमाओ के अन्दर कही छोटे-छोटे राजा राज्य करते थे. एक राज्य के शिमाओ को एक देश की सीमाए समझी जाती थी. किन-किन राजाओं के राज्यों को भारतीय सीमा के अंतर्गत गिना जाना चाहिए और किसे नहीं? अगर "आर्य" विदेशी है तो “नाग” भी मुलनिवाशी कैसे?
जो ‘नाग’ लोग स्वयम मुलनिवाशी नही है, सिर्फ ‘पहले के’ है, पहले आए है. (अर्थात विदेशी है) उन्हें भारतीय मूलनिवासी क्यों कहना चाहिए? उन्होंने पहले भारत से उनके अपने देश में भाग जाना चाहिए, क्यूकी वे भारतं में आर्यों के पहले (के है) आए है. जो सवाल बाबासाहब आंबेडकर ने (हु वेअर दी शुद्राज? ग्रन्थ में) बाळ गंगाधर तिलक से किया है, उसका जवाब बाद में न स्वयम बाबासाहब आंबेडकर ने दिया है, न किसी ब्राह्मणों ने भी दिया है और न बामसेफ/ बीएसपी/ एम्बस/ मुलनिवाशी के नामपर राजनीती करनेवाले छद्म सामाजिक, जातिवादी, राजकिय नेताओं ने भी दिया है. तो भारतीय आर्य (= ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र/ओबीसी) यह लोग किस देश के मुलनिवाशी है?
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “हु वेअर दी शुद्राज?” (शुद्र “आर्य” जाती के सूर्य वंश के थे. (पृष्ट- ९५) के मुताबिक चातुरवर्णीय लोग ही ‘आर्य’ है. चातुर्वर्ण में चतुर्थ वर्ण ‘शुद्र’= ओबीसी भी आते है. बाबासाहब के मुताबिक केवल “ब्राह्मण” लोग ही आर्य नही है, तो जा वैदिक चातुर्वर्ण्यं में सम्मिलित आते है, वे सभी ‘आर्य’ है. अगर बाद वाले विचार बिना सबूत के होने पर भी उसे स्वीकार करना और पहले की विचार सबूतों के आधारपर सही होने के कारण भी नकारना, इसे कोनसी सोच कहना चाहिए? मुजोरी, भावना या बुद्धिवादी?
देखीए बाबासाहब आंबेडकर ने अपने पहलेवाले विचारों में आर्य विषयक क्या कहा था, “आर्य तथा दासों और दस्युओं में जातीय भिन्नता न थी, दास तथा दस्यु, आर्य तथा दासो और दस्युओं में जातीय भिन्नता न थी. दास तथा दस्यु आर्य हो सकते थे. आर्य एक जाती है, यह एक मनगड़ंत बात है. इसका आधार डॉ. बाप की पुस्तक “Comperative Grammar” है. ... वेदों से यह सिद्ध नही होता कि आर्य कोई जाती थी या नही. तथा आर्यों ने भारत पर हमला किया और दासो और दस्युओ पर विजय प्राप्त की. इसका कोई प्रमाण नही है की आर्य, दास तथा भिन्न-भिन्न जाती के थे. (शुद्रो की खोज, समता प्रकाशन, नागपुर, प्रकाशन- १९९४, पृष्ट-३०-३१)
अगर आर्य वंश के लोग विदेशी है तो नाग वंश के लोग भी विदेशी ही है. फर्क इतनाही है की नाग पहले आहे और आर्य बाद में. अगर बाद में आनेवाले विदेशी है तो पहले आनेवाले देशी या मूलनिवासी कैसे? नाग लोग भारत से भागने के बाद जो लोग बाकि रहेंगे, उनकी ‘देशी या विदेशी’ इस विषय पर जाँच की जाएगी, उसके बाद उन्हें रखना चाहिए या नही? इस विषय पर विचार, चर्चा, बहुमत होगा. उसके बाद विचार किया जाएगा. लेकिन इस विषय पर ‘आर्यों के साथ-साथ नागों’ को भी बोलने का कोई नैतिक हक़ नहीं है. तर्क यह भी लगाया जा सकता है, तो क्या उसपर अमल ही करना चाहिए?
अगर भारत में कोई भी गुट या पार्टी हो जो जाती, जन्म, नस्ल, धर्म के आधारपर झगडे/संघर्ष खडे करने के उद्धेश से कार्य करते है, उन्हें जल्दी से जल्दी नहीं रोका गया, उनपर पाबंधी नही लगायी गयी, तो आगे, भविष्य में वंशवादी जंग जरुर होगी, उसमे देशी लोग ही देशी लोगों के लिए घातक/दुश्मन साबित होंगे. जिसमे महान, विश्व विख्यात राजकीय जनतंत्र की भी धज्जीया उड़ेगी. भारत का नाम काले अक्षरों में विश्व के नक्से पर पाकी जैसा ही लिखा जायेगा. देश के गृहमंत्री का यह कार्य है की भविष्य में होनेवाले झगड़ो के कारण वर्तमान में ही कैसे क्या ख़त्म करे.