सर्व-सामान्य लोग शब्द का अर्थ क्या लेते है, उस अर्थ को हमने मानना चाहिए. भारत में "आचार्य रजनीश" को "भगवान रजनीश" वापरने को आपत्ति जताई तब उसने जापानी 'भगवान' के अर्थ वाला शब्द 'ओशो' वापरना सुरु किया. उसका अर्थ सामान्य भारतीय लोगों को मालूम नहीं हुआ इसलिए इस शब्द को विरोध नहीं हुआ था.
आचार्य रजनीश खुद को "भगवान" का 'अवतार' या "भगवान'' समझते थे. यह तो "ईश्वरवाद" का समर्थन और प्रचार-प्रसार है. तो क्या ओशो रजनीश को 'ईश्वरवादी' नहीं समझना चाहिए? सामान्य जापानी लोग 'ओशो' का अर्थ 'भगवान' लेते है और भारतीय सामान्य लोग भगवान का अर्थ हिन्दू 'ईश्वर' लेते तो मुस्लिम 'अल्ला' लेते है.
सामान्य लोग विशिष्ठ शब्द का अर्थ जो लेते है उसी अर्थ को हमने लेना चाहिए. क्या किसी ईश्वरवादी व्यक्ति को निरीश्वरवादी बुद्ध का समर्थक या "बुद्ध पुरुष" के रूप में स्विकारना सही है? ईश्वरवाद से जनतंत्र / जनतांत्रिक लोगों का कुछ फ़ायदा / कल्याण है?
क्या ईश्वरवादी जनतंत्र की धज्जिया उड़ाने में समर्थन नहीं करते? ओशो भक्तों ने सामान्य जनसमस्या हल करने में कौनसा आन्दोलन चलाया है? "खाओ, पीओ और मौज करो" का भौतिकवादी, पूंजीवादी नारा "व्यक्तिवाद" का समर्थक है "समाजवाद" का नहीं. जो लोग सामाजिक नहीं है वे राष्ट्रिय कैसे हो सकते?
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