सोमवार, 11 मई 2020

धार्मिक भावना : अफ़ीम


हमारी धार्मिक भावना आहत हो गयी, हमें बचाओ की गुहार सरकार से लगायी जाती है, सरकार अगर इन पापियों के साथ खड़ी हुयी तो वह कबतक खुर्ची पर रहेगी? इसका विचार सरकार ने करना चाहिए, धर्म के नामपर अन्याय स्वीकार करने के दिन गए, भारत में अंध:श्रद्धा प्रतिबंधक क़ानून लागू हो चुका है।

छद्म भिक्षुओं को यह साबित करना होगा की उनके मंदिर में पूजा कितने लोगों ने की थी? क्यूँ की थी? किस उद्धेश से की थी? और क्या उनका उद्धेश पूरा हुआ क्या? प्रोडक्ट बेस कम्पनी मनी बैक गारंटी देती है, उसी तौर पर भक्तों को दान मनी बैक मिलना चाहिए, नही तो इनके तिजोरी पर धावा बोला जाएगा, आख़िर धर्म के नाम पर भक्तों को लूटा जा रहा है, लूट के ख़िलाफ़ आवाज़ तेज़ करनी चाहिए, यह हमारा जनतंत्रिक अधिकार है।

महायान नीच है, वह ब्राह्मणो का दलाल है, उन्होंने ही धम्म को पलिद करने का काम किया है, इन लोगों ने बुद्ध की प्रतिमा/मूर्तियाँ बनायी, उसकी पूजा को पवित्रता कहा और उसे पूजने के लिए मठों का निर्माण किया, जबतक बौद्ध लोग बुद्ध प्रतिमा को देखकर खिंचते गए और दान पेठी भरते गयी, भक्त किस मुसीबत में है इसके और पुजारियों का कोई ध्यान नही रहा।यह महायानी सम्प्रदाय ब्राह्मण वर्चस्व का पैलु रहा। जब इन्हें टोकने वाले थेर भिक्षु भारत से लुप्त हुए है तो उसके लिए महायानी कूटनीति रही है।

भारत से बौद्ध विचारों का प्रभाव कन करने के लिए उन्होंने भरपूर कोसिस की उसे हिंदू धर्म का एक नया अंग साबित किया, जब इस कार्य में वे सफल रहे तो बुद्ध मूर्तियों को इन्होंने ने कपड़ों से ढकना सुरु किया, उस पर नाना रंग लगाए गए और पहले वह मूर्ति बुद्ध की थी ही नही, बह हिंदू मठ है और हम ब्राह्मण पंडित है, यह साबित करने में कोई कसर नही छोड़ी। गिरगिट के माफ़िक़ इन्होंने बुद्ध मूर्तियों और ख़ुद के चिवर को बदला है। यह लोग न्याय के पात्र नही है, इनके साथ अन्याय होना बहुत ज़रूरी है। जैसे को वैसा।बुद्ध के नाम पर ग़रीब भक्तों को धोका देने का काम यह जल्दी से जल्दी बंद करे।

अमीरों/पिड़कों को "धन संचय"की पूरी छूट/लूट करने की शिक्षा देना और ग़रीबों को शोषण को सहन करने के लिए सहनसिलता बढ़ाने की शिक्षा देना, धर्म का उपयोग पंडित/पोप/मुल्लहा/मुनि और भिक्षु यही काम करते रहे है इसलिए विश्व में अमीर और अमीर होते गए और ग़रीब और ग़रीब होते गए। इसे अगर रोखना है तो अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करनी होगी, पिडक/अमीरों की दलाली करनी भिक्षुओं ने छोड़नी होगी। यह नीच कार्य महायानी भिक्षुओं ने हमेशा किया है, उन्हें अच्छी सबक़ सिखाना ज़रूरी है।

शांति और सहनशीलता परम तप और निर्वाण उनका उद्धेश > अन्यायी अन्याय करते रहे और अन्याय से पीड़ित व्यक्ति उसे सहन करते रहे तो पिडक को शांति मिलेगी, न की पीड़ित को_बुद्ध धम्म पीड़ितों के लिए था या पिडक के लिए? बुद्ध धम्म बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय का संदेश देता है, बहु = अधिक लोग पीड़ित होते है।

अगर बुद्ध ग़रीबों को सुख दिलाने के लिए उसे पिडक/अमीर को दया और दान का पाठ सिखाते है, पर वह यह पाठ न पढ़े तो पीड़ित ने कबतक पिडक के दया में इंतज़ार करना चाहिए? उसकी सीमा रेखा तय की गयी क्या? पिडक दान करने के बजाए "धन संचय" करने में लगे है, इसमें धम्म शिक्षा की ज़रूरत अमीरों को है की ग़रीबों को? ग़रीबों के हितों के लिए अमीरों/पिड़कों को धम्म धम्म देना ज़रूरी है पर भिक्षु लोग ग़रीबों को उनके ग़रीबी को बरदास्त करने की शिक्षा दे रहे है, जो ग़लत है। भावना केवल धार्मिक ही होती है? आर्थिक या राजकीय नही होती?

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