शनिवार, 12 सितंबर 2020

दिशाहीन आम्बेडकरी समाज

अगर आप आम्बेडकरी समाज में पैदा हुए पर आम्बेडकरी साहित्य से वाकिब नही हो इसलिए यह सवाल - संदेह आपके दिमाग़ में आए है। सवाल पर टिप्पणी १) यह भी बाबा साहब का काम करता और वह भी बाबा साहब का काम करता यह ऐसा आपको लगता यह बाद ग़लत है। सबसे पहले हमने आम्बेडकरी इझम क्या है इसे देखना चाहिए, मेरे दृष्टि से बुद्धीइझम ही आम्बेडकरी इसम है

बुद्धिइसम क्या है? बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय के उद्धेश पूर्ति के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग का पालन करना या आदर्श जनतंत्र का पालन करना। क्या कांशीराम, मायावती, वामन मेश्राम और उनके संघटन में जनतंत्र या बुद्धी इसम दिखायी देता है? जनतंत्र का मतलब न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा और समता है, क्या यह जनतंत्रांतिक ४ नैतिक मूल्य बिएसपी या बामसेफ के अंदर दिखाई देते है?

अगर यह मूल्य होते तो उन्मे विभिन्न गुट क्यूँ बने होते? दोनो सघटनो में अध्यक्ष पद का चुनाव संदेहास्पद ढंग से होता है। पुराने ही व्यक्ति को क्यू चुना जाता? इसी के कारण हीरो वर्शिप का उदय हुआ, पहले कांशीराम और अब वामन हीरो बने_बनने के लिए वे वैसी स्थिथि संघटन में पैदा करते है, किसका यह नतीजा होता है की जनतंत्र की हत्या की जाती है।

जो भी व्यक्ति अपने आचरण से ४ नैतिक मूल्यों का पालन करता है उसके विरोधक बन ही नही सकते_कांशीराम के विरोधक डी के खापरडे, वामन मेश्राम और बि ड़ी बोरकर रहे, क्यू? बाद में वामन मेश्राम के विरोध में ड़ी के खापरडे, बि ड़ी बोरकर, एस के पाटिल रहे, क्यूँ ? मै ख़ुद ४ साल बामसेफ में फुलटैम काम किया, वामन मुझे जानता है, क्यूँकि नागपुर विभाग का कार्य मै देखता था, मैंने त्यागपत्र दिया और कारण बताया, बामसेफ में जनतंत्रिक मूल्यों का अभाव होने से मै तानाशाही संघटन का त्याग करता हूँ। रजिस्टर पोस्ट द्वारा त्यागपत्र मुंबई के आफिस के भेजा लेकिन उसका जवाब नही आया।इसका मतलब बामसेफ पर मैंने जो आरोप लगाए वह सही है।

मेरे बाद में राजरत्न अम्बेडकर का बामसेफ में आगमन हुआ, उन्हें भी यह स्थिति नज़र आयी होगी इसलिए उन्होंने बामसेफ का त्याग कर बुद्ध धम्म प्रचार, बौद्ध आंदोलन में ख़ुद को झोंक दिया। रज़रतन्न विदेश में बामसेफ की असलियत बताता है इसलिए वामन मेश्राम को विदेश चाहने वाले लोगों की कमी नज़र दिखाई दी होगी। जो भी व्यक्ति वामन मेश्राम के लिए प्रतिस्पर्धी नज़र आता है, उसका चरित्र हरण करने के लिए उनपर ग़लत आरोप लगाना का उनका पुराना इतिहास रहा है।

उनके आरोप में अगर सच्चाई है तो उनके ख़ुद के पाक्षिक/साप्ताहिक/दैनिक में क्यूँ नही छपवाता? लोग तय करेंगे की वामन सही है या राजरत्न? बामसेफ ने बुद्ध को धार्मिक पुरुष माना, क्या बाबा साहब भी बुद्ध को धार्मिक पुरुष मानते है? बुद्ध धार्मिक नही तो नैतिक पुरुष थे, जनतंत्र की निव रखनेवाले पहले पुरुष थे। अलग अलग जातियों के लोगों को उनके बनर पर जगह मिलती है पर बुद्ध को क्यू नही? बुद्ध को जो लोग धार्मिक पुरुष मानते है वे बुद्धिसम के जानकार नही है, जो लोग जानकार नही है वे बुद्धिसम के प्रचारक कैसे हो सकते?

जो लोग बामसेफ और बि एस पी को बौद्धों का संघटन मानते है उनका पहला यह कर्तव्य है की वे उसे साबित करे। बाबा साहब के नामपर राजनीति करना यानी बाबा साहब के विचारों प्रचार करना या उनके उद्धेशो की पूर्ति करना नही है। अगर ऐसा है होता तो ४० साल में भारत बुद्धमय बन चुका होता, शिवधर्म का उदय नही हुआ होता।

२) हमने हमारा नेता किसे कहना चाहिए? हमने वोट किसे देना चाहिए? यह सवाल काफ़ी बौद्धों के मन में आते है। आने भी चाहिए तभी उनका जवाब मिलेगा। बुद्ध ने धम्म का शास्था किसी व्यक्ति को रखा था। फिर हमें व्यक्ति क्यूँ चाहिए? समाज को व्यक्तिवादी बनाना है या विचारवादी? "रानाडे, गांधी और जिंहा" किताब में बाबा साहब ने व्यक्तिवाद के दुस्परिणाम बताए है, फिर भी बामसेफ ने जातिवादी विचारों के प्रचारक, तानाशाही के उपासक कांशीराम, मायावती और वामन मेश्राम दिए है। यह लोग न सच्चे आम्बेडकरी रहे है और न सच्चे बुद्धिष्ट।

बुद्ध, संत कबीर, गाडगे महाराज, बाबा साहब अम्बेडकर इन्होंने जातिवाद, वंशवाद अंध श्रद्धा का विरोध किया और बामसेफ / बीएसपी उनका प्रचार करते आ रही है फिर भी उन्हें आम्बेडकरी आंदोलन का हिस्सा समझा जा रहा है यह बड़े ताज्जुब की बात है! बुद्ध धम्म की क्या मूलभूत शिक्षा रही है_ "आर्य अष्टांगिक मार्ग" । आर्य = श्रेष्ट, महान, गुणवाचक शब्द है परंतु वामन मेश्राम में उसे वंशवाचक बना दिया।

प्राचीन भारत में "आर्य बनाम नाग वंश" का काल्पनिक संघर्ष खड़ा किया गया, आर्य वंश के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के लिए "मूलनिवाशी" (नाग) संकल्पना को उछाला गया। जयभिम के बजाए मूलनिवाशी का संबोदन करना सुरु किया, क्या यह अम्बेडकर प्रेम की निशानी है? बुद्ध के गुणवाचक शब्द को वंश वाचक क़रार देकर मेरा ही कहना सही कहना, क्या बुद्धिसम के साथ न्याय है?

३) आम्बेडकरी समाज को नेते के ज़रूरत नही है, सही विचार की ज़रूरत है, जो उन्हें अभी तक मिल नही पाए, जो नेता को पता है और न उनके अनुयायीयो को पता है क्योंकि अध्ययन का अभाव है। यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल करना यानी बुद्धिसम या आम्बेडकरी इसम की पढ़ाई करना नही है, कुछ किताबे पढ़े भी है तो उनका सही अर्थ लगाते भी आना चाहिए। ग़लत अर्थ लगाकर ग़लत नेताओं को पूजा गया है, बाद में उसने समाज को धोका दिया है।

बहुजन हित-सुख प्रदान करनेवाले विचार है हमें सुख और समृद्धि दे सकते है, न कोई दूसरा नेता या संघटन। फिर हम वोट किसे दे? जो नेता / पार्टी बहुजन हित-खुख दे सकती है उसे दे, हर समय वह बदलते रहेगी तो हमारा वोट भी बदलते रहना चाहिए। हमारे जाती/धर्म/समाज/परिवार का नेता भी ज़ालिम निकल सकता है, जो हमेशा बात तो जनतंत्र की करता है पर आचरण में जनतंत्र नही दिखाई देता, उनसे हमेशा सावधान रहना चाहिए, दूर रहना चाहिए।

जो लोग बामसेफ को चंदा दे रहे थे वे लोग अब रज़रतन्न को चंदा दे रहे है, साथ में उन्हें बड़े बड़े समारोह में बुलाते है और राजनैतिक है, बुद्ध की नैतिक शिक्षा का प्रचार कर रहे है यह बामसेफ/वामन मेश्राम के लिए दुःख की बात है इसलिए नेता लोग एक दूसरे को पानी में देखते रहते है, उससे ज़्यादा दुखी नही होना चाहिए, हमें क्या अच्छा करना जमता है? वह करते रहना चाहिए। यह मेरी आम्बेडकरी समाज को सलाह है। चाहे तो मानो नही तो जानो, उसके बाद मानो।

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