बुद्धिजम की कमी दिखाने के लिए "अविद्या" का उगम बताने में बुद्ध असमर्थ रहे, यानी बुद्ध बुद्धिमान नही तो बुद्धू साबित हुए है। तथा यह सिद्धांत भी उपनिषद से लिया गया है, यह अगर आरोप दूसरे ने लगाया है तो उसका खंडन करने की ज़िम्मेवारी आपकी है, परंतु उसे आपने नही निभाया। क्यूँकि एक तो उसकी जानकारी आपके पास नही है या आप जानबूझकर दर्शकों को गुमराह करना चाहते है।
सम्यक् दृष्टि का महत्वपूर्ण ज्ञान १२ अँगो से युक्त कार्य कारण सिद्धांत यानी प्रतित्य समुत्पाद से होता है। प्रतित्य सम्मुत्पाद का अर्थ है, प्रत्यय = कारण, सम्मु = समुदाय, समूह और त्पाद = निर्मिती। अनेक करणो से कार्य या घटना की निर्मिती होती है, बिना कारणों के समूह से कार्य / घटना नही होती। अविद्या से ज़रा-मरण तक १२ अंग है। अविद्या वह है जो हमें पता नही है, हम नही थे तो भी हमारे माँ -बाप थे, उनके संतान प्राप्ति के इच्छाओं से मिलन / संबोग़ हुआ, वीर्य माँ के गर्भ में गिरा उसपर संस्कार हुए, विज्ञान (चेतना) आयी, उसके बाद हमारे दिमाग़ में हर बात /घटना प्रिंट होने लगी।
जब हमें चेतना ही नही थी तब माँ -बाप के सम्भोग से विज्ञान प्राप्ति के पहले के अवस्था तक यानी संस्कार तक की जानकारी हमें कैसे हो सकती? हमारे माँ -बाप ने भी सिर्फ़ सम्भोग किया, पर उन्हें भी पता नही था की वीर्य से संतान होगी या नही होगी? ज़िंदा निकलेगी या मुर्दा? पुत्री होगी या पुत्र? काली रहेगी या गोरी? तो वे भी अज्ञान साबित होते है। संतान नाम की घटना घटी पर ना हमारे पूर्वज (माँ -बाप) जानकार थे इसलिए वे भी हमें जानकारी यानी ज्ञान दे सकते है की हमने सम्भोग के बाद गर्भ में इस ढंग से तुम्हें आकर दिया।
जब संतान को जन्म देनेवाले भी नही जानते है की उसकी आँख पहले बनी या बाँहें तो वह घटना की जानकारी हमें या बुद्ध को कैसे होगी? हर व्यक्ति इतना ही बता सकता है की हमें हमारे माँ -बाप ने निर्माण किया, हमारे निर्मिती के कारण वे है। बुद्ध ने यह ज़रूर सवीयर किया की हमारे माँ -बाप ने हमें जन्म दिया है, निर्माण किया है, इसमें किसी ईश्वर का हात नही है। इंसान (संतान) को इंसान (माँ -बाप) ने जन्म दिया, जन्म के लिए कारण साबित हुए, न की ईश्वर। बिना माँ -बाप के ईश्वर कभी भी किसी जीव जो जन्म दिया नही, बनाया नही। संक्षिप्त में ईश्वर है अज्ञान है, ईश्वरवाद अज्ञान है। ईश्वर की पूजा करना अज्ञान है।
वीर्य में जीवाणु होते है, वह हमारे गुणसूत्रो से भी बनते है। इसलिए हमारे वीर्य से निर्माण हुयी संताने हमसे मेल खाती है। हमारी संताने किसी ईश्वर के गुणसूत्रों से मेल नही खाती। माँ -बाप हमें शारीरिक रचना वाला शरीर तो देते है पर वह मुर्दा नही होता, जीवित होता है, वीर्य में से वही जीव गर्भाशय में प्रवेश करता है जो शक्तिशाली और जीवन जीने की चाहत भारी मात्रा में होती है, इसलिए वह अपनी हलचल जारी रखता है और काफ़ी प्रयास के बाद वह गर्भ में अपनी जगह बना लेता है। वीर्य में आत्मा डालने के लिए ईश्वर की कोई भूमिका नही है। इसलिए बुद्ध के सिद्धांत में अनिश्वरवाद के साथ अनात्मवाद को भी जगह मिली है। हमें हमारे म-बाप के कर्मों से जन्म मिला है।
अज्ञान वह है जो पता नही है। जो पता होता है वह ज्ञान है। पता न होना अज्ञान है। हमारे जम के लिए एक कारण बाप है, दूसरा कारण माँ है, तीसरा कारण संसार के प्राणवायु का होना है, चौथा कारण संसार में पानी का होना है, पाँचवा कारण सूर्य किरण/गरमी का होना है, छटा कारण भोजन का होना है, सातवाँ कारण इसे लेने की माँ की इच्छा भी है। संतान नामक घटना के पीछे अनेक कारण जरिरी है किसी एक (ईश्वर) कारण से कोई भी घटना नही घटती। हम बच्चे से वृद्ध होते है, हमेशा आकार बदलता है, इसलिए हम सनातन, नित्य नही है_ अनित्य है, सभी चीज़ें अनित्य है। जीव तथा चीज़ों को सनातन मानना मूर्खता है, अज्ञान है।
उपनिषद में क्या प्रतित्य समुत्पाद का सिद्धांत का उल्लेख है? अगर है तो उसे सबूत के रूप में बताना ज़रूरी था, मगर नही बताया गया, इसलिए उस आरोप को निराधार कहने के सिवाय दूसरा रास्ता नही है। जिन्होंने विषमता वादी वेद, उपनिषद के सिद्धांत को ललकारा उनका नाम गौतम बुद्ध है, इनके वजह से यज्ञ में मिलने वाली दक्षिणा बंद हुयी, सामान्य जनता को ठगना बंद हो गया इसी वजह से ब्राह्मण लोग बुद्ध को और उनके विचारों को गालियाँ बकने में कसर नही करते। बुद्ध के महान बुद्धिमान शिष्य महा मोगलयन के सामने हार बरदास्त नही कर सके तो उनकी दिन-दहाड़े हत्या की गयी थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें