रविवार, 20 सितंबर 2020

बुद्ध धम्म और उनका उद्धेश


बुद्ध धम्म का मुख्य उद्धेश बहुजन हिताय बहुजन सुखाय है, इसे पूरा करने के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग दिया, ४ आर्य सत्य महायानी भिक्षुओं ने घुसदा, जिसकी कोई ज़रूरत नही थी, आशावादी अष्टांगिक मार्ग के सामने निराशा वादी ४ आर्य सत्य लगाना सुरु किया, लोग इसी में संतुष्टि मानते है, आर्य अष्टांगिक मार्ग तक नही पहुँच पाते। आर्य अष्टांगिक मार्ग को भी प्रज्ञा-शील-समाधि में विभक्त किया। लोग बुद्धा धम्म को समझने के बजाए समाधि=विपस्सना की और बढ़ते है। अभी तक किसी को समाधि =विपस्सना द्वारा बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय का लक्ष प्राप्त नही हुआ।

जो लोग आर्य अष्टांगिक मार्ग उद्धेश पूर्ति के लिए कैसे प्रयोग में लाए इसे समझते है वे ४ आर्य सत्य, विपस्सना के चक्कर नही काटते। आर्य अष्टांगिक मार्ग में पहला मार्ग है सम्यक् दृष्टि - सम्यक् दर्शन/तत्वज्ञान है। जो इसे नही जानते वे धम्म को नही समझ सकते। सम्यक् दर्शन यानी प्रतित्य समु त्पाद है। अनेक करणो से कार्य या घटना का होना है। एक कारण से कोई भी घटना नही घटती। यह १२ अँगो से युक्त है। सुरूवत है अज्ञान से अंत है ज़रा-मरण (व्याधि से मरण)। ज़रा मरण का कारण अज्ञान है जो इसे नही जानते वे दुखी होते है।

ईश्वर, आत्मा और नित्य (सनातन) यह ब्राह्मण धर्म की निव है, इसे मानना यानी अज्ञान को गले लगाना है, इसके जगह हमने हमारे माँ -बाप को मानना चाहिए, उन्होंने हमें जन्म दिया, लालन पालन किया, ४ महाभूत क़ुदरत के गुणों का परिणाम है। इसमें ईश्वर आत्मा या पूजा पाठ का कोई महत्व नही है। जो लोग इस अज्ञान में फँसते है उसे विवेक नही होता, वे तर्क नही कर सकते, वे दूसरे के ग़ुलाम होते है, ग़ुलाम शोषित होते है, वे अधिक दुःख पाते है।

जो व्यक्ति सम्यक् दर्शन पाता है वह ही सम्यक् संकल्प कर सकते है, यह संकल्प बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय होना ज़रूरी है। जो संकल्प किया उसके प्राप्ति के लिए सम्यक् वाणी / संवाद करना चाहिए, हम हमारे वाणी द्वारा संकल्प को नही बताए तो दूसरे व्यक्ति का सहयोग नही पा सकते और बिना सहयोग से बहुजन हित-सुख नही कर सकते। सम्यक् वाणी के अनुसार आगे हमारे कार्य का करना है। वाणी-कथनी और करनी में अंतर नही होना चाहिए, तो ही हमारी कृति बहुजन हित-सुख प्राप्ति लायक़ रहती है।

सम्यक् कार्य के का उद्धेश भी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय है यह हमारे कार्य से दिखाई देना चाहिए, कार्य ने ख़ुद जताना चाहिए, इतना वह पारदर्शी होना चाहिए तो ही समय सम्यक् आजीविका कर सकते है, समाज में लोग आपकी दिन चर्या को देखते है और वह आदर्श के पात्र है, बहुजन हित-सुख प्राप्ति लायक़ है तो लोग उसे नवाजते है और उसके उपासक बनते है, प्रचार करते है। कारवाँ बनते जाता है।

सम्यक् आजीविका पर निर्भर हमारा सम्यक् व्यायाम है, व्यायाम यानी आदत, कोई भी कार्य हम लगातार २१ दिन तक नही करते वह आदत में तब्दील नही होती जो कार्य आदत में तब्दील नही होता उसे जल्द ही भुला जा सकता है, सम्यक् व्यायाम यानी बहुजन हित-सुख प्राप्ति के उद्धेश को हासिल करने के लिए बारंबार प्रयास करे जबतक उद्धेश की प्राप्ति नही होते उसे करते जाए। सतत प्रयास से लक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।

सम्यक् व्यायाम पर निर्भर सम्यक् स्मृति है। उद्धेश के अनुरूप कार्य को करने के लिए याददास्त मज़बूत करना ज़रूरी है, नही तो किया गया व्यायाम ग़लत उद्धेश के पूर्ति में लग जाएगा, बाद में पता चलेगा की इसी कारण से हमारा उद्धेश पूरा नही हो चुका। बहुजन हित-सुख प्राप्ति के कार्य को पूरा करने की बात हमेशा दिमाग़ में संजोए रखे तो ही हम सम्यक् समाधि = उद्धेश पूर्ति कर सकते है।

जबतक सही ढंग से सम्यक् स्मृति नही करे तबतक सम्यक् समाधि प्राप्त करना सम्भव नही है। सम्यक् समाधि यानी लक्ष को पाना है। बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय के लक्ष प्राप्त करना है। बौद्धों ने बहुजन हित-सुख के लक्ष को सामने रखते हुए कार्य किए तो उन्हें सुख -संतुष्टि, आनंद ज़रूर मिलेगा, कर भला_ हो भला। सहकारीता का सिद्धांत हमेशा याद रखे, आज हम दूसरों को सहयोग देंगे तो कल उनसे मिलने की सम्भावना अधिक होती है_ सहयोग देना-सहयग लेना ही नैतिक सुखमय जीवन मार्ग है।

आर्य अष्टांगिक मार्ग पहले पर दूसरा, दूसरे पर तीसरा इसी ढंग से परावलंबी है, खुला नही है, एक दूसरे से जुड़ा है। इसे पालन करने से सुख मिल सकता है, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय का उद्धेश पूरा हो सकता है तो पाँच शील और विपस्सना की हमें क्या ज़रूरत है? बुद्धिझम को पलिद करने के दृष्टि से दृष्ट महायानी भिक्षुओं ने यह सब मिलावट करने की कोसिस की जिस वजह से धम्म बोध होने में कठिनाए आती है। परंतु आगे मिलावट से सावधानी नही बरते तो सुख के बजाए दुःख ज़रूर मिलेगा।

भगवान = ईश्वर है, बुद्ध अनिश्वरवादी थे, परंतु ओशो रजनीश ने बुद्ध को और ख़ुद को भी भगवान मानने से कोई कसर नही छोड़ी, वे भी महायानी विचारों के चंगुल में फँसे जिस वजह से "बहुजन हिताय_बहुजन सुखाय" का लक्ष प्राप्ति के मार्ग से वे भटक गए। कल्याणकारी बुद्ध को भोगवादी बनाया और वैसा प्रचार किया। बुद्ध किसी भी दृष्टि से भगवान साबित नही होते, अगर किसे लगता है तो वे साबित ज़रूर कर सकते है। राजानंद मेश्राम_७३०४८३८१२३ rajanandm.blogspot.com

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