भारत पर हिन्दुधर्म के वर्ण, जाती, पंथ और भाषा का प्रभाव रहा है. चार वर्णों का धर्म रहा है. अतिशूद्र यह शूद्रों से पतित समझा जाता रहा है. जिसका सबसे ज्यादा शोषण किया गया, उन्हें मानवीय अधिकारों से वंचित किया गया. भारत मे अंग्रेजों के पहले कही विदेशी लोग आये लेकिन उन्होंने अतिशूद्र यानि अछुत वर्ग को मानवीय अधिकार देने के बारे मे कभी विचार नही किया. बाबासाहब आम्बेडकर के प्रयास से अंग्रेजों ने उन्हें अपने विचार रखने के लिए मौका दिया. उन्हें उनके मानवीय अधिकार देने के लिए बाबासाहब ने अथक प्रयास किए.
अछूतों को मागासवर्गीय जाती का दर्जा मिला. इस जातिओं के लोगों को स्पर्श करने को भी अकुशल समझा जाने लगा. अपने ही (हिन्दुधर्म) बांधव के साथ सौतेले ढंग से व्यवहार किया गया. यह व्यवहार किसी को भी अनुचित और अपमानित करने जैसा प्रतीत होता है. “पूना समझौते” का परिणाम यह हुआ की भारत मे अछुतता पालन करना कानूनन गुनाह समझने जाने लगा. अछूतों के लिए एम् के गाँधीने “हरिजन” शब्दों का प्रयोग किया था. अछुत, हरिजन और गरीब है. उन्हें अब नया शब्द मिला जिसका नाम “दलित” है. यह विशिष्ट जातियों के समूह को संबोधित करने के लिए प्रयोग मे आनेवाला शब्द है. “जातीया” हिन्दुधर्म मे पायी जाती है. हिंदुधर्म का पालन करनेवाले एक तबके को “दलित” समझते थे और अब भी समझ रहे है.
जिन्होंने हिन्दुधर्म त्याग किया उन्होंने हिन्दुधर्मो मे पायी जानेवाली जातियों का भी त्याग किया. उन्हें अब अछुत, एस.सी., मागासवर्गीय जाती, दलित कहने का सवाल ही नही उठता. जो लोग बौद्ध बने है वे न अब अछुत रहे है, न मागासवर्गीय जाती और न दलित. वे सिर्फ बौद्ध है और बौद्धों मे जातीया नही होती. फिर उन्हंु दलित कैसे कह सकते? बौद्ध दलित नही है और न उन्हें दलित कहना चाहिए. बौद्धों को “दलित” कहना उनका उपहास और अपमान है. बौद्धों ने खुद को “दलित” कहकर खुद का अपमान नही करना चाहिए. अब तो कानूनने भी स्वीकार किया की “दलित” यह अपमानित करनेवाला शब्द है. उन्हें किसी के लिए प्रयोंग करनेपर आपत्ति हो शकती है. Untouchable यानि अछुत और Depressed यानि दलित, इन दोनों शब्दों का अर्थ समान है जिसका अर्थ है गरीब. बाबासाहब आम्बेडकर ने सुरु मे “डिप्रेस क्लास” शब्दों का प्रयोग किया और उनके लिए संघटन भी बनाया था.
मगर बाद मे उन्हें बौद्धधम्म मे परिवर्तित कर दलित, दलितपन और दलित्दरी से निजात दिलाई.
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर के प्रयाससे जो लोग बौद्ध बने मगर धम्म का पर्याप्त ज्ञान न होने के वजह से वे भटक गए. वे जातिगत धर्महिंदु को छोड़ने के बाद भी खुद को और जनता को “दलितस” या अनुसूचित जातियों के बंधनों मे बांधना चाहते है. जातियों के आधारपर आरक्षण लागु हुआ है, उसीके माध्यम से लोग नोकरिया करने लगे इसलिए वे धम्म को भूलकर जातियों को अपनाना भलाई समझ बैठे. अब कोनसे जाती का कोण है यह उस व्यक्ति के उपनाम को जानकर बता सकते है मगर धम्म मे “मध्यम मार्ग” क्या है? प्रतित्य सम्मुत्पाद क्या है? यह नही जानते.
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर के प्रयाससे जो लोग बौद्ध बने मगर धम्म का पर्याप्त ज्ञान न होने के वजह से वे भटक गए. वे जातिगत धर्महिंदु को छोड़ने के बाद भी खुद को और जनता को “दलितस” या अनुसूचित जातियों के बंधनों मे बांधना चाहते है. जातियों के आधारपर आरक्षण लागु हुआ है, उसीके माध्यम से लोग नोकरिया करने लगे इसलिए वे धम्म को भूलकर जातियों को अपनाना भलाई समझ बैठे. अब कोनसे जाती का कोण है यह उस व्यक्ति के उपनाम को जानकर बता सकते है मगर धम्म मे “मध्यम मार्ग” क्या है? प्रतित्य सम्मुत्पाद क्या है? यह नही जानते.
बाबासाहब आंबेडकर अछुत जाती मे जन्मे मगर जातिविहीन बौद्ध धम्म मे जिए और मर भी गए, वे खुद को दलित कहना ना पसंद करते थे और ना उन्होंने दलित कहनेवालों को गौरवान्वित किया. जो लोग बाबासाहब के जनता को अनुसूचित जाती मे हमेशा देखना चाहते है वे जातिओं के समर्थक है, जातियों के आधारपर हमेशा उन्हें आरक्षण मिलते रहना चाहिए यही उनकी सोच है. जातिओं के आधारपर बामसेफ और बीएसपी संघटन बने, जबतक जातीय रहेगी तबतक उनका अस्तित्व रहेगा बाद मे उनका अस्तित्व नष्ट हो जायेगा. बामसेफ यह हिंदु जातियों का संघटन है, चाहे कुछ जातिओं के लोगोंने धर्मांतर भी किया क्यों न हो, वे उनको हमेशा याद दिलाना चाहते है की तुम्हारे पुरखे नीच जातियों के थे इसलिए तुम भी जातियों के जरिए नीच हो. जो व्यक्ति अपनी नीचता त्यागना चाहता है उसे जबरदस्ती से नीच कहना और नीचता का अहसास करा देना अनुचित कार्य है,जो हमेशा बामसेफ/बीएसपी करते आयी है.
बामसेफने कभी बौद्ध धम्म का प्रचार नही किया और न धर्मांतर के लिए प्रयास किया है. बौद्ध धम्म के प्रचार से जाती नष्ट होने पर जातिगत आरक्षण नष्ट होगा तो बामसेफ/बीएसपी का अस्तित्व कैसे रहेगा? इसी चिंता के साथ वे हमेशा बौद्ध धम्म और बाबासाहब आम्बेडकरके धम्माव्ल्म्बी आर.पी.आय. को कोसने का कार्य किया.
“समता सैनिक दल” के द्वारा कार्य करने के बजाए “बामसेफ वालिंटियर फ़ोर्स” का गठन किया. बामसेफ और बीएसपीने बाबासाहब आम्बेडकर के विचारों का अन्वयार्थ निकालकर उसे गलत ढंग से पेश किया. बामसेफ/बीएसपी हमेशा जातिवादी विचारों का समर्थन करते रही है. जातिगत विचार बाबासाहब आम्बेडकर के विचारानुरूप कदापि नही थे और न रह सकते. बाबासाहब किसी भी जातियों के व्यक्तियों का विरोध नही करते थे बल्कि जातीयवाद के वे कड़े विरोधक थे. मगर बामसेफ/बीएसपी यह केवल विचारों के ही नही तो व्यक्तियों के भी विरोधक रहे है. वे विचार और व्यक्ति मे अंतर नही मानते, जब की बाबासाहब आम्बेडकर व्यक्ति और विचारों मे अंतर मानते थे.
बामसेफ/बीएसपी के लोग बाबासाहब आम्बेडकर के विचार जानने के काबिल नही है, और न ही उनके विचारों को मानते है. बाबासाहब के हर संघटनो को उनका विरोध रहा है. उनके कार्यों को भी विरोध रहा है, उनके उपदेशों पर भी अमल करने के बजाए उन्हें पलीद करने मे वे गौरव महसूस करते है. संघटन मे व्यक्तिपूजा का बाबासाहबने जमकर विरोध किया फिर भी बामसेफ/बीएसपी के माध्यम से कांशीराम, मायावती, वामन मेश्राम को हीरो बनाया, जो तानाशाही कर रहे है और बाबासाहब को भी तानाशाही के समर्थक के रूप मे देखते है इतना ही नही तो वे बाबासाहब को भी तानाशाही समझने मे कोई कसर नही छोड़ते. अगर बाबासाहबने तानाशाही का इस्तेमाल करके संघठन चलाया है तो हमने क्यों नही चलाना चाहिए? यह उनका स्पष्ट उत्तर रहा है. जो लोग “जय भीम” के अभिवादन को पर्यायी “जय मुलनिवाशी” देते है क्या वे आम्बेडकरी विचारक या प्रसंशक हो सकते है? बामसेफ/बीएसपी के लोग हिंदुधर्म के जाती, वंश और वर्ण से प्रभाबित है, वे उसे प्रचारित करते आये है और उनके समर्थक है, जो हमेशा बौद्ध धम्म के विरोधक रहे है.
धम्म विचारों के साथ आम्बेडकरवाद है. आम्बेडकरी विचारों से धम्म विचार निकालने पर जो सिल्लक रहता है वह हिंदुधर्म है. जो लोग धम्म को छोडकर बाबासाहब आम्बेडकर को मानने का दावा करते है, वे झूटे है, ढोंगी है, अवसरवादी है, छद्म आम्बेडकरी है. उनपर किसी भी सच्चे बुद्धिस्ट व्यक्तिने विश्वास नही करना चाहिए. बामसेफ/बीएसपी के नए दो चेले “बहुजन मुक्ति मोर्चा” और “एम्बस” जातियों को मजबूत बनाने के लिए आगे आ रहे है, जिनसे आम्बेडकरी विचारों को तहस नहस करने का प्रयास किया जायेगा, आम्बेडकरी जनताने सजग रहकर धम्म की रक्षा करनी चाहिए, अन्यथा बड़े प्रयास से दीक्षाभूमि मे बोया गया नवयानी धम्मवृक्ष मुरझा जाएगा.
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