सोमवार, 18 मई 2020

असत्य विपस्सना विधि


जो व्यक्ति एकबार वीपस्सी होता है उसे नए लोगों के लिए फ़ार्म भरकर भेजने का काम दिया जाता है, १० दिन खुले हवा का आनंद उसे ख़ुशी देता है, बाद में उसे पूछा जाए की तुमने क्या सिखा तो वह कहता है, बताया नही जा सकता यह ख़ुद अनुभव करना पड़ता है, यह बेचारा चला जाता, अनुभव लेता पर बुद्ध और उनके धम्म के उद्धेश के बारे में वह कुछ भी नही जनता, और किसी को समझा सकता है।

विपस्सना विधि यह बुद्ध के पहले की विधि है ऐसा गोयंका का कहना था, इसका मतलब यह बुद्ध ने इजात नही की थी, तो यह बुद्ध धम्म का अंग कैसे हो सकती है? जो बुद्ध धम्म का अंग नही उसे बुद्ध के साथ क्यू जोड़ा जाता? इसकी महिमा बढ़ाने ने के लिए यह कहा जाता है की बुद्ध होने के पहले बुद्ध ने इसी ज्ञान/विधि का उपयोग किया इसलिए उन्हें ज्ञान/बोधि प्राप्ति हुयी थी, अगर यह विधि उन्होंने की थी इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, है की नही विपस्सना महान?

यह विधि अगर महान है तो बुद्ध के पहले और बाद में कही लोगों ने इसका अनुभव लिया और दिया भी तो वे व्यक्ति बुद्ध के माफ़िक़ कोई नया ज्ञान/रास्था क्यूँ नही तलास कर सके? गोयंका एक मारवाड़ी आदमी था, उन्हें मालूम था की कुछ समय फ़्री दिया जाए तो जो लेने आएँगे वे दान भी देंगे, आश्रम चलते जाएगा, और वैसा ही हुआ।अगर उन्हें बुद्ध धम्म प्रचार की इच्छा थी तो उन्होंने बुद्ध धम्म की दीक्षा क्यू नही ली थी?

गोयनका महायानी सम्प्रदाय का प्रचार कर रहे थे, उनकी यही परम्परा वे चला रहे थे, महायानी पंथ के विचार बुद्ध है(धम्म विचारों) को विष्णु अवतारी पुरुष साबित करते है, बाबा साहब अम्बेडकर ने धम्म दीक्षा तो दिया पर बौद्धों को सिखाए नही, वे शिख ने के पहले ही उन्हें महायानी मायाजाल में फँसाया जाए तो बुद्धमय भारत का सपना सपना ही रहेगा, कभी पूरा नही होगा_इसकी रिपोर्टिंग देने के लिए वे हमेशा "संघ बिल्डिंग"के सम्पर्क में रहे। आख़िर क्यू?

बुद्ध धम्म का उद्धेश "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय" था की "व्यक्तिगत हिताय-व्यक्तिगत सुखाय" बुद्ध धम्म वर्ण-जाती व्यवस्था को पर्याय था, एक क्रांतिकार्य है_परंतु क्रांति को विपस्सना के माध्यम बुझाने का घिनौना कार्य सत्य नारायण गोयनका ने किया, जो ब्राह्मण वादी कार्य है। महायान बुद्धयान है और विपस्सना बुद्धयान है। सच का एक दिन विजय होता है_ज़रूर होगा।

नागपुर का धर्मांतर वर्ण-जाती संस्था पर एक ज़बर दस्त प्रहार था, एक सामाजिक/सांस्कृतिक क्रांति थी, उसे ख़त्म करने के लिए सत्यनारायण गोयनका ने प्रति-क्रांति में तब्दील करने का कार्य किया, वह मरने के बाद भी उसके ख़िलाफ़ लिखा जाते रहेगा।

विपस्सना विधि -वैज्ञानिक विधि है, आलार - कालाम के आश्रम में गौतम बुद्ध ने उसे परखा और उसे फ़िज़ूल विधि समज कर उसे छोड़ दिया_ उसमें प्राणायाम सिखाया जाता है, रेचक-कुंभक-पूरक प्रक्रिया होती है। निसर्ग़ नियमों के ख़िलाफ़ जाने का राश्ता दिखाने वाली विधि वैज्ञानिक कैसे हो सकती? कुंभक में दम रोखकर रखना पड़ता है_उसके बाद चित्त एकाग्र होता है, जब चित्त एकाग्र हो तो ही ज्ञान प्राप्ति होती है,ऐसी उनकी धरना है।जो सरासर ग़लत है। दम को रोखने से शरीर पर बुरा असर होता है, सेहत के लिए हानिकारक है, उसपर पाबंधि लगनी चाहिए। गोयनका मास्टर है और हम विध्यार्थी है, हाँ हाँ हाँ। अच्छी मज़ाक़ करते हो, करो।

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