क़ुरान न को प्रमाण मानना यानी ग्रंथ प्रमाण मानना। ग्रंथ का रचयिता कोई इंसान है, भगवान/अल्ला नही है। भारत में अंध श्रद्धा फैलना यह अंध:श्रद्धा प्रतिबंधक क़ानून अवमान है, जेल हो सकती है।
नमाज़ पड़ना यानी व्यायाम करना है पर ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है कहना और उसे साबित नही करना, ग़लत अफ़वा फैलाना है, इसी वजह से तो कही देशों में मुस्लिमों के रिवाजों पर पाबंधि लगी है___
जितने कट्टर हिंदू है, उतने ही कट्टर मुस्लिम है, दोनो विज्ञान के ख़िलाफ़ है, उसे पैरों तले दबाने की बात करते है, जो की सरासर ग़लत है, इस विज्ञान युग में "सिद्ध"करके नही दिखाया जाएगा तो वह विचार कालातीत हो जाएगा, उसे जंग लग जाएगा, ख़त्म होगा।
हिंदू/मुस्लिम विचार जनतंत्रिक नही है, जनतंत्र के ख़िलाफ़ है, यह लोग सिर्फ़ अपने धर्मों के लोगों के साथ ही भाईचारा रखना चाहते है, जो ग़ैर धर्मिय होते है, उनका तिरस्कार/द्वेष किया जाता है, इसमें भाईचारा ख़त्म होता है, भाईचारे के अभाव में जनतंत्र जीवित नही रह सकता, जनतंत्र की हत्या होती है, जो धर्म या उनके अनुयायी जनतांत्रिक मूल्यों की हत्या करते है उनपर देश-द्रोह का मुक़दमा बन सकता है।
गौतम बुद्ध कहते आए है की भगवान/अल्ला ईश्वर नही है, न उन्होंने धरती या संसार को पैदा किया, संसार प्रतित्य समुत्पन्न यानी कार्यकारण /उत्क्रांत सिद्धांत से उत्पन्न हुआ, अगर उसने सबकुछ बनाया है तो क्यू? क्या मजबूरी थी?
ईश्वर / अल्ला है तो उसने अपने सभी पुत्रों को एक समान क्यूँ नही किया? किसी को ग़रीब, किसी को अमीर क्यूँ किया? अब कोरोना वाइरस आया तो मज्जिदों के दरवाज़े क्यू बंद किए गए? अंध/:श्रद्धा फैलाना बंद करे। क़ुरान पथविहीन रेगिस्थान है।
वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और मनुश्मृति में अस्पृश्यता, जाती भेदभाव, वर्ण भेदभाव के अलावा कुछ भी नही है। जनतंत्र के लिए किसी भी प्रकार का भेदभाव क्यू न हो हानिकारक ही है, त्याज्य है।
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