शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन



महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन (केदारनाथ पांडे, 9 April 1893, आझमगड, उत्तर प्रदेश) एक ब्राह्मण परिवार से थे जिन्होंने ने बुद्धिझम को अपनाया, यह एक बड़ा क्रांतिकारी क़दम था, वे बौद्ध भिक्षु बने, दुनिया घूमे, इसलिए उन्हें घूमंतु भी कहते है।

उन्होंने वोल्गा से गंगा किताब लिखी, वह ज़िंदा ऐतिहासिक प्रवास वर्णन है, उससे यह पता चलता है की वे मार्क्स वाद के गुण गाने लगे, लोगों ने उन्हें मार्क्सवादी भी कहना सुरु किया। मार्क्स वाद हिंसा विचार से लिप्त है, उसमें नीति का अभाव है,

बुद्ध अहिंसा/हिंसा दोनो को इस्तेमाल करने की इजाज़त देता है, यह संकृत पंडित होने से महायानी बुद्धिझम का उन्होंने अधिक अध्ययन किया जिनका उनपर काफ़ी प्रभाव था। धम्म से हिंदूधर्म का गंदा पानी अलग करने के लिए विशेष प्रयास नही किया।

ख़ैर कुछ भी हो, बाबा साहब अम्बेडकर बुद्धिस्ट भिक्षुओं पर नज़र गड़ाए थे। इसलिए उन्हें डर लगा था की भारत में अगर बुद्ध धम्म का प्रचार नही किया गया तो यह देश साम्यवाद का सिकार होगा, तानाशाही आएगी, जनतंत्र ख़त्म होगा,।

जागतिक बौद्ध सम्मेलन, काठमांडू, नेपाल के भिक्षुओं के सामने कहा, अगर भारत में साम्यवाद फैला तो उसके लिए ज़िम्मेवार सिर्फ़ भगवे वस्त्र धारी भिक्षु (अप्रत्यक्ष निशाना महापण्डित राहुल साँस्कृत्ययन पर था) होंगे।

बुद्ध या कार्लमार्क्स ? विषय पर विस्तृत भाषण दिया और बुद्ध के सामने मार्क्स एक बच्चा बताया।भारत में धम्म स्वीकार करने के लिए नागपुर में धर्मांतर समारोह की तयारी सुरु थी पर बाबा साहब अम्बेडकर ने भारत के न राहुल साँस्कृत्यायन, न आनंद कौसल्यायन और न धर्मानंद कोसम्भी को याद किया। आख़िर क्यों ? यह एक संशोधन का विषय है।

नागपुर धर्मांतर समारोह के लिए विदेशी भिक्षुओं (चन्द्रमणि) को याद किया और बुलाया।लेकिन नागपुर धर्मांतर के बारे में राहुल सांकृत्यायन ने कहा था, "डाक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने भारत में बुद्धधम्म का ऐसा मज़बूत झंडा गाड़ दिया की इसके बाद उसे कोई भी उखाड़ नही पाएँगे।”

अपने अंतिम दिनो में राहुल जी को बहुत बड़ी मानसिक बीमारी हुई, १९६१ में याददास्त चली गयी। ऐसे में ही दार्जिलिंग में उनका १४ एप्रिल १९६३ को दुखद मृत्यु हुआ।

कुछ भी हो उनके परिवर्तन शील विचार और आचार के लिए वे बुद्धिजीवी लोगों के राजा बने रहेंगे, उन्होंने काफ़ी पाली साहित्य को हिंदी भाषा में अनुवाद किया और १३८ किताबें लिखी भी, यह बड़े गर्व की बात है, दुनिया उन्हें हमेशा याद रखेगी, उनके जन्मदिन पर मेरी ढेर सुभकामनाए। (राजानंद मेश्राम)

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