शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

बाबासाहब अम्बेडकर और बुद्धधम्म



बु
द्ध कहते है की जो लोग ईश्वरने हमें बनाया और उन्होंने ही दुनिया बनायी है वे अज्ञानी है। दुनिया/विश्व प्रतित्य सम्मुत्पन्न है, यानी कारणो से कार्य होते है, बिना कारण कोई भी चीज़ उत्पन्न नही होती। ईश्वर उत्पन्न होने के कुछ भी कारण उपलब्द नही है, तो ईश्वर कैसे क्या उत्पन्न हुआ? जिसके कारण नही है वह चीज़ नही है, बुद्ध आगे कहते है, सभी जीव प्रतित्य सम्मुत्पन्न है यानी सभी जीव कारणों से विकसित हुए है, यानी एक जीव दूसरे जीव से विकसित हुए है।
महात्मा फुले ईश्वर का अस्तित्व मान्य करते है और उसे वे "निर्मिक" (निर्माता) नाम से सम्बोधित करते थे। ईश्वर का स्वीकार यानी अज्ञान का स्वीकार करना है। क्यूँकि अज्ञान से हानि होती है, ईश्वर-आत्मा-पुनर्जन्म-स्वर्ग-नर्क से किसी भी मानव की तरक़्क़ी नही हुयी है। अंध श्रद्धा फैलाने का कार्य है, जिसे महात्मा फुले ने भी किया है। उसी के कारण जेधे-जवलकर हिंदू बनकर जन्मे और हिंदू बनकर ही मरे, उनका जातिवाद ने कभी भी पीछा नही छोड़ा।
जेधे-जवलकर ने भीमराव अम्बेडकर साहब को कहा था की हम आपके चवदार तालाब पानी सत्याग्रह में सामिल होना चाहते है, आप अगर ब्राह्मणो को अपने संघटन से हटा देते है तो__! बाबा साहब ने कहा की, "मैं ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ नही हूँ, उनके भेदभाव के विचारों के ख़िलाफ़ हु, ब्राह्मण मेरे संघटन में ज़रूर रहेंगे। मैं व्यक्ति विरोधी नही हूँ, बुरे विचारों के विरोध में हु।"
जेधे-जवलकर कौन थे? यह दोनो लोग महात्मा फुले के बाद उनके सत्यसोधक आंदोलन के पुरोधा थे। यह लोग ईश्वर का तो शोध नही लगा सके लेकिंन इंसानो में जातियों को धुँड़ने में कामयाब हुए थे। महात्मा फुले का ब्राह्मणो के ख़िलाफ़ जो आंदोलन चला उसमें काफ़ी ख़ामियाँ थी, जिसके चलते वे ब्राह्मणवादी बने रहे, ब्राह्मणवाद के शिकार बने रहे, जो ब्राह्मणवाद से अपनी मुक्ति नही कर सके वे लोग अब विज्ञानवाद और तरक़्क़ी की बात करने लगे है, उनके बातो में क्या दम है, यह समझ में ही आया है।
महात्मा जोतिराव फुले (हिंदू धर्म के अनुसार शूद्र जाती में जन्मे और शूद्र जाती में ही मरे, उनके पहले बुद्ध विचार महाराष्ट्र में थे पर वे उनसे दूरी बनाए रखे, आख़िर क्यू?) ब्राह्मणी पोथी-पुराणो का एक ओर विरोध करना और दूसरी ओर ईश्वर/निर्मिक को अपनाना, पूरे किए पर पानी डालना है, और यह काम ख़ुद महात्मा फुले ने किया था।
बामसेफ के लोगों ने ओबिसी के वोटों पर गंदी नज़र लगाकर महात्मा फुले के अवगुणो पर फुले बरसाने का कार्य किया, इसका प्रतिफल यह हुआ की जो लोग हिंदूधर्म/ब्राह्मणवाद से खपा हुए वे शिवधर्म में अटके रहे, बौद्ध नही बन सके। इसके लिए बामसेफ की जातिवादी सोच ज़िम्मेवार रही। बामसेफ ने हमेशा बुद्ध को एक धार्मिक पुरुष के रूप में देखा और दूरी बनाए रखी। "द बुद्ध और धम्म" में बाबा साहब बुद्ध को धार्मिक पुरुष के रूप में स्वीकार नही करते पर यह बामसेफ के बेफ़क़ूफ लोग बुद्ध को धर्म संस्थापक मानते है।
बामसेफ के बेवक़ूफ़ी से भी भारत वर्ष में अज्ञानी, अज्ञैज्ञानिक जातिवादी, अंध श्रद्धा प्रसारक लोगों को बाबा साहब के लाइन में खड़े किए, क्यूँ की उनके जातिवादी लोग इनके वोट वाली चंगुल में फँस जाए। सत्ता प्राप्ति के लालच ने बामसेफ को सामाजिक जातिवादी ब्राह्मणी सोच को फैलाने के लिए उकसाया। समाज जागृति के नामपर समाज द्रोही कार्य किया।
बुद्ध धम्म में प्रतित्य सम्मुत्पाद का सिद्धांत है उसमें __ "अविज्ञा से _ शोक/विलाफ/दुःख" होता है कहा गया। महात्मा जोतीराव फुले ने "विद्या बिना ___अनर्थ हुआ" यह विचार बुद्ध धम्म से उठाए थे, बामसेफ के निर्बुद्ध अनुयानी उसी चीज़ पर गर्व करते दिखाई दे रहे है।
एकमात्र बुद्ध धम्म है जो जीवन के हर रास्तों पर "बहुजन हित और सुख" की बात करता है, जितने जल्दी हो सकता है उतने जल्दी भारत बौद्धमय बने, तो ही भारत का भविष्य उज्वल होगा। जातिवादी, अंध:श्रद्धा प्रसारक सभी लोगों के विचारों का त्याग करना होगा। विज्ञान को बहुजन हित-सुख प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाना होगा। केवल मेरे जाती में यह (महात्मा) पैदा हुआ था इसलिए उनके दुर्गुनों को मै हमेशा ढोते रहूँगा, यह विचारधारा अब छोड़नी पड़ेगी, तो ही हम सच्चे अम्बेडकरवादी, धम्म प्रचारक हो सकते है।
स्पष्ट है, बहुजन (जातिरहित) हित और सुख प्राप्ति के लिए बाबा साहब अम्बेडकर ने महात्मा फुले, पेरियार रामासामी नाइकर, नारायण गुरु, संत रविदास, संत कबीर, संत घासिदास, या कार्ल मार्क्स का साथ नही लिया, केवल और केवल बुद्धधम्म का ही साथ लिया। यह बात जितने जल्दी हम समझ सकते है उतना ही अच्छा, भारत हिंदूधर्म घोसित होने के पहले ही समझ लिए तो और अच्छा, नही तो न धम्म बचेगा, न बुद्ध और न अम्बेडकर के बुत, तबाही होने के पहले संभल जाना ज़रूरी है।
धम्म प्रचार करना और उसका पालन करना ही सच्ची अम्बेडकर जयंती है, जय भीम-जय भारत।

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