
(कांशीराम के हस्ताक्षर....) पुत्र स्वर्गीय हरी सिंह, राष्ट्रिय अध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी व् सांसद (राज्य सभा), १२ गुरुद्वारा, रकाब गंज रोड, नही दिल्ली – ११०००१
(कुंवारी मायावती द्वारा प्रकाशित एवं वितरित पुस्तिका तथा कांशीराम की हत्या या मौत? लेखक सुरेन्द्र कुमार, देल्ही द्वारा प्रकाशित किताब से साभार...)
============ कुछ बुद्धिजीवी, बुनियादी सवाल ============

२. कांशीराम ने बौद्ध धम्म स्वीकार करने की घोसना की थी पर उसे उसने अपने जीते जी नही पूरी की थी पर मायावती ने उसे पूरी करना चाहिए, इसकी भी ख्वाइस क्यों नही की थी?
३. मायावती के अस्थियो को अपने अस्थियों के पास ही दफ़नाने के बारे ने मायावती के रिश्तेदारों से अपील करने की क्या जरुरत थी? क्या उनके अस्थियों में जान होती है? यानि मरने के बाद भी उनमे नया जन्म होता है और उसमे भी मायावती उनके ही साथ में रहे ऐसी भावना तो अंधश्रद्धा के आलावा और क्या है?

५. कांशीराम ने खुद को “स्वर्गीय” हरि सिंह का पुत्र बताया है, लिखा भी है, तो क्या वह “स्वर्ग” और “नर्क” के हिन्दू खोखले विचारों पर भरोसा करते थे, यह साबित नही होता? क्या यह विचार बुद्ध के धम्म विचारों से प्रभावित है या हिन्दुधर्म के? अगर वे हिन्दुधर्म के विचारों से प्रभावित थे तो उन्होंने धम्माचरण किया था यह बाते कैसे क्या साबित होती है? कांशीराम वादे और इरादे इनमे जमीन-आसमान का अंतर था तथा वे खोखले थे यह बाते साबित होती है. उम्मीद है की कांशीराम भक्त यह साबित करने की कोशिस करे की कांशीराम हिन्दू विचारों से नही तो बुद्धधम्म से प्रभावित थे, तथा धम्म की उनकी परिभाषा क्या थी?
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