बुधवार, 26 जून 2013

स्वर्गीय कांशीराम का वसीयतनामा



मेरी ख्वाइस है की कुमारी मायावती दीर्घायु होकर उस मिशन के लिए काम करती रहे जिसके लिए वह समर्पित है. लेकिन हर व्यक्ति को एक दिन मरना है. एक दिन मै भी मृत्यु को प्राप्त हो जावुंगा और एक दिन उसको भी मर जाना है. मै यह ख्वाइस रखता हूँ की की मृत्यु के उपरांत कुमारी मायावती की अस्थिया गंगा-यमुना नही के हवाले न की जाए बल्कि मेरे अस्थियों के पास ही आधी बहुजन समाज प्रेरणा केंद्र, ११ सरदार पटेल मार्ग, नई दिल्ली तथा आधी लखनऊ के ५, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर स्थित बहुजन समाज प्रेरणा केंद्र में रखी जाय.....मै उम्मीद करता हूँ की मायावती, उनके माता-पिता, भाई-बहन एवं सगे सम्बन्धी, बहुजन समाज पार्टी एव बहुजन समाज के लोग मेरी इश ख्वाइस को पूरा करेंगे.”

(कांशीराम के हस्ताक्षर....) पुत्र स्वर्गीय हरी सिंह, राष्ट्रिय अध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी व् सांसद (राज्य सभा), १२ गुरुद्वारा, रकाब गंज रोड, नही दिल्ली – ११०००१ 

(कुंवारी मायावती द्वारा प्रकाशित एवं वितरित पुस्तिका तथा कांशीराम की हत्या या मौत? लेखक सुरेन्द्र कुमार, देल्ही द्वारा प्रकाशित किताब से साभार...)

============ कुछ बुद्धिजीवी, बुनियादी सवाल ============
१. कांशीराम के वसीयतनामे के मुताबिक मायावती ने लखनऊ में सरकारी धन का दुरूपयोग करके “दलित प्रेरणा स्थल” बनाया. कांशीराम और मायावती के नजर में बहुजन का मतलब दलित होता है, यह बात साबित हो चुकी है? क्या बहुजन में जिन ८५% पिछड़े और धार्मिक अल्पसंख्यांक यानि बौद्ध, शिख, इसाई, मुस्लिम तथा अन्य मागासवर्गीय (ओबीसी) खुद को “दलित” मानते है? अगर वे खुद को दलित नहीं मानते तो उनके लिए लखनऊ स्थित “दलित प्रेरणा स्थल” प्रेरणा का स्थान कैसे हो सकता है?

२. कांशीराम ने बौद्ध धम्म स्वीकार करने की घोसना की थी पर उसे उसने अपने जीते जी नही पूरी की थी पर मायावती ने उसे पूरी करना चाहिए, इसकी भी ख्वाइस क्यों नही की थी?

३. मायावती के अस्थियो को अपने अस्थियों के पास ही दफ़नाने के बारे ने मायावती के रिश्तेदारों से अपील करने की क्या जरुरत थी? क्या उनके अस्थियों में जान होती है? यानि मरने के बाद भी उनमे नया जन्म होता है और उसमे भी मायावती उनके ही साथ में रहे ऐसी भावना तो अंधश्रद्धा के आलावा और क्या है?

४. मायावती ने कांशीराम के मनीषा को पूरा करने के लिए ही “दलित प्रेरणा स्थल” बनाया है, जिसमे कांशीराम के करीब ही मायावती के मूर्तियों को भी साथ-साथ स्थापित भी किया है. मायावती को शायद उनके रिश्तेदारों पर भरोसा नही रहा होगा की वे कांशीराम के करीब ही उनके अस्थियों को कहीं दफ़नाने में सहयोग न दे. इसलिए अपने जीते जी कुंवारी मायावती ने कांशीराम की ख्वाइस पूरी कर दी.

५. कांशीराम ने खुद को “स्वर्गीय” हरि सिंह का पुत्र बताया है, लिखा भी है, तो क्या वह “स्वर्ग” और “नर्क” के हिन्दू खोखले विचारों पर भरोसा करते थे, यह साबित नही होता? क्या यह विचार बुद्ध के धम्म विचारों से प्रभावित है या हिन्दुधर्म के? अगर वे हिन्दुधर्म के विचारों से प्रभावित थे तो उन्होंने धम्माचरण किया था यह बाते कैसे क्या साबित होती है? कांशीराम वादे और इरादे इनमे जमीन-आसमान का अंतर था तथा वे खोखले थे यह बाते साबित होती है. उम्मीद है की कांशीराम भक्त यह साबित करने की कोशिस करे की कांशीराम हिन्दू विचारों से नही तो बुद्धधम्म से प्रभावित थे, तथा धम्म की उनकी परिभाषा क्या थी?

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