मंगलवार, 18 जून 2013

सिन्धु सभ्यता का अंत और विकास


धुनिक संसार को काफी खतरनाक समस्याओं ने चपेट में लिया है, उसमे कुछ प्राकृतिक है तो कुछ मानव निर्मित. व्यक्ति ने पहले अपने समश्याओं को सुलझाने का कार्य किया और प्राकृतिक समस्याए बड़ते गयी. अभी मानव के पास दो प्रकार की समाश्याए है. दोनों प्रकार के समश्याओं से निपटने के लिए उचित शक्ति की जरुरत होती है. एक दुसरे के सहयोग के विना कोई वैश्विक समस्याए हल नही होगी. इसलिए वैज्ञानिक और सामाजिक विचारवंत सोच रहे है की कौनसी विचारधारा इस दोनों प्रकार के समश्याओं से राहत दे सकती? ज्यादातर देशों का बुद्ध की ओर रुख है. करीब डेड सौ देशों में बौद्ध फ़ैल चुके है. धर्मो का युग ख़त्म हो रहा और “धम्म” का युग आ रहा है. इव्होल्युसन यानि नैसर्गिक परिवर्तन और रिव्होलुशन यानि मानवी परिवर्तन, जिसे हम “क्रांति” कहते है. विश्व में सिन्धु सभ्यता भी एक महानतम् क्रांति रही है. उसके बाद विश्वव्यापी “धम्म” क्रांति का “जनतांत्रिक” दौर सुरु हुआ.

      
धम्मक्रांति को जानने के पहले सिन्धु सभ्यता और धम्म क्रांति के बिच का फासला भी ठीक से जानना जरुरी है. उसका सफ़र कैसे रहा? इस विषय पर आने से यह पता चलता है की, भारत में हिन्दू धर्म के पहले “सिन्धु सभ्यताका दौर रहा, जिसके सबुत “हड़प्पा” और “मोहनजोदड़ो” शहरों के उत्खनन से साबित हुए है. वह प्राकृतिक आपदाओ में पूर्णतः लुप्त हुयी. बाद में सिन्धु नदी के तट पर विकसित हुए सभ्यता को “हिन्दू सभ्यता” कहा जाने लगा. हिन्दू सभ्यता ही हिन्दू धर्म है, जो वेदों को प्रमाण मानते है. तथा उसपर पर विश्वास करते है, वह हिन्दू है. भारत में वैदिक सभ्यता का विकास हुआ. करीब एक हजार साल तक उसका प्राचीन भारत पर असर रहा. वैदिक सभ्यता का मुख्य आधार यज्ञ पूजा रहा. जो ईश्वर को खुश करने के लिए की जाती थी. जिस घटना का कोई कारण पता नही होता उसे लोग भगवान की कृति समझते थे. ठीक उसी ढंग से प्राचीन काल के भारतीय जनता के दिमागों में खेल चालू था. जो श्रम करके अपनी उपजीविका करते थे उसे श्रमण कहा जाता था और जो श्रम करने से डरते थे, जो सिर्फ दिमागी कार्य ही करना चाहते थे, ऐसे आलसी लोगों को ब्रह्म (ज्ञानी) ब्राम्हण कहते थे.
      
भारतीय विख्यात इतिहास तज्ञ, नवल ‘वियोगी’ लिखते है, “पूर्व पाषाण युग के अंत में ईसा पूर्व- १०,००० के लगबग असभ्य मनुष्य के मस्तिष्क में विचित्र विकास हुआ और उसने नवीन पाषाण युग में प्रवेश किया....इसा पूर्व ६ सहस्त्राब्दी के मध्य में इसने कृषि करना सिखा...तथा उसी के साथ पशुपालन भी सुरु किया...मिट्टी के बरतन भी बनाने लगा...इसा पूर्व ५ वी सहस्त्राब्दी के लगबग ताम्ब्र युग का प्रारम्भ हुआ...सिन्धु सभ्यता भी इसी युग के परिवार की सभ्यताओ मे से एक है. इसी युग की तिन प्राचीनम सभ्यताओं में “दजला फरात” नदी के किनारे “मेसोपोटामिया”, “नील के किनारे “मिश्र” तथा “सिन्धु नदी” के किनारे “हड़प्पा” ने जन्म लिया और खूब फली-फुली....मोहनजोदड़ो का शब्दार्थ ही “मुर्दों का टीला” है ...इसमें सबसे ऊँचा “स्तूप टीला” है. उसकी ऊंचाई ७० फुट है...सन १८५६ में मुल्तान-लाहोर रेल्वे लाईन १०० मील के हिस्से के निर्माण का काम करनेवाली अंग्रेज कंपनी के ठेकेदार “जेम्स विलियम वर्टन” ने ...सब से पहले यह पाया...की उपलब्ध वस्तुए १५००-२५०० इसा पूर्व की है.” (सिन्धु-घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शुद्र और वणिक, सन- १९८५, भूमिका)     
      
डॉ. भारत पाटणकर लिखते है, “इन्द्र इस ॠग्वेदीय नायक को “पुरम्दर” – शहरों को तोडनेवाला कहते है.... ‘हरियुपिया’ (हरप्पा) नगरी पर हल्ला करके उसे नष्ट करने का सबूत ॠग्वेद (६.२७.५) में (वधिदिन्द्रो वरशिखस्य शेषो अभ्यावर्तिने चायमानाय शिक्षन् | वृचिवतो युद्धरियूपीयांयोहन्पूर्व अर्धेभियसापरो दर्त ||) आया है.... जो सिन्धु सभ्यता के निर्माता थे, उनके शहरों को लुटा और उसे “दस्यु” (दास) कहा... “पनी”, व्यापारी (वाणी) भी उनका नाम था. (हिन्दू की सिन्धु? सुगावा प्रकाशन, सन- १९९३).... डॉ. कुलकर्णी लिखते है, “ॠग्वेद में कुल १०२८ सूक्ते, उसे लगबग ३९० ॠषिओं ने लिखी. उसमे से कुछ सूक्ते महिलाओं ने भी लिखी है.” (दैनिक लोकमत, नागपुर, २६ अप्रैल २००७) .... वेदों कृतियाँ के बारे में इतिहास तज्ञ, प्रा. मा. म. देशमुख लिखते है, “१९ वे शतक में लगबग २०० साल पहले ब्राह्मणों ने वेदों का गठन किया होगा.” (बौद्ध धर्म आणि शिवधर्म, जुलाई- २००७, पृष्ट-७)
      
वैदिक धर्म का दूसरा नाम हिन्दू धर्म है. इस काल में समाज जितने वाले व्यक्ति या टोलियों को “आर्य” (श्रेष्ट) कहा जाता था. आर्य कौन थे? इसका साक्षात्कार सन १९४६ में, विश्व विख्यात प्रगाड़ विद्वान् डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपने "हूँ वेअर द शुद्राज?" संशोधन पर ग्रन्थ के ‘७ वे अध्याय’ मे दिया है, "यह सिद्ध हो चूका है की, शुद्र अनार्य नही है. तो वे क्या थे? उसका उत्तर है १. शुद्र आर्य है. २. शुद्र क्षत्रिय है. ३. शूद्रों का स्थान क्षत्रियों मे उच्च था, क्योंकि प्राचीन काल मे कई तेजस्वी और बलशाली राजा शुद्र थे. यह मत इतना अनोखा है की इसे लोग मानने कों तयार न होंगे. अतेव, अब प्रमाणों की जाँच की जाए. प्रमाण महाभारत, शान्ति पर्व, (६०, ३८-४०) मे है.”

निसर्ग निर्मित भूकंप, भूचाल मे जैसे हालत बस्तियों की होती है, उसी प्रकार जमींन की उथल-पुथल हुयी है. ठीक वैसे ही प्रकार का परिणाम खुदाई में पाया गया. खुद डॉ. बाबासाहब अम्बेडकरने भी स्वीकार किया है की सिंधु संस्कृति पर किसी ने भी हमला नही किया और ना उनके पुक्ता सबूत मिले है. मनगढ़ंत वेदों को प्रमाण मानकर वर्ण,  जाती और धर्म के चाहनेवाले सिन्धु संस्कृति पर हमला होने का दावा रहे है, हम वेदों का भी विचार करे तो सुरु मे वेद तीन ही थे. चौथा वर्ण बाद मे बना. इसका मतलब वेद हमेशा विकशित होते गए,  वेद का मतलब वेध या निचोड़ है.

हरप्पा-मोहनजोदड़ो का व्यापार दूर-दराज के टोलियों के साथ होता था. अपने पास की चीजे वे दूर-दूर तक बेचते थे और उदर की खास चीजे  खरीद कर लाते थे. विभिन्न जगहों पर अपने फायदे के लिए विभिन्न जंगली जानवरों को पालतू बनाया गया था. कुछ जगहों पर गायों को तो कुछ जगहों मे भैसों को. सामानों के वहन के लिए कुछ जगहों मे घोड़े तो कुछ जगहों मे गदों का इस्तेमाल होता था. भारी कामो को करने के लिए हाथिओं का भी प्रयोग होता था. उस समय मानव और निसर्ग इनमे ही संघर्ष होता था. मानव निसर्ग को डरकर उन्हें अपने से महान समझने लगा और उनके जरिए होने वाले उत्पाद के लिए याचना करने लगा जहाँ से प्रार्थना का उदय हुआ. बादमे टोलियों के मुखिया, राजाओं की भी प्रार्थना होने लगी.

प्रार्थना ने आगे धर्मों का रूप धारण कर लिया. आगे वह दोहराते जाने पर संस्कार होते गए और संस्कार ही संस्कृति, सभ्यता, परंपरा से धर्म. लोग चाहते थे की टोलियों का मुखिया, राजा भी धर्मों के अनुसार अपना शासन चलाए. जो राजा धर्म के अनुसार प्रजा पर शासन करता था उन्हें प्रजा भी पूजा करती थी.  आदर के साथ उनके आदेशों का पालन किया जाता था. प्रजा का रक्षण करना यही राजाओं का धर्म होता था. निसर्ग निर्मित भूकंप, भूचाल मे जैसे हालत बस्तियों की होती है, उसी प्रकार जमींन की उथल-पुथल हुयी है. ठीक वैसे ही प्रकार का परिणाम खुदाई में पाया गया. खुद डॉ. बाबासाहब आम्बेडकरने भी स्वीकार किया है की सिंधु संस्कृति पर किसीने भी हमला नही किया था और ना उनके पुक्ता सबूत मिल चुके है. मनगढ़ंत वेदों को प्रमाण मानकर वर्ण, जाती और धर्म के चाहनेवाले सिन्धु संस्कृति पर हमला होने का दावा रहे है, हम वेदों का भी विचार करे तो सुरु मे वेद तीन ही थे. चौथा वर्ण बाद मे बना. इसका मतलब वेद हमेशा विकसित होते गए, वेद का मतलब वेध या निचोड़ है.
      
ईश्वर का आदेश ब्राम्हण को मिला की तुम ब्रम्हा के मुख से पैदा हुए हो, तुम्हे सभी लोगों को भी सिखाना है की ईश्वर का आशीष पाकर अगला सुखमय जीवन कैसे पाया जा सकता है? इन्द्र यह वैदिक लोगों की देवता रही थी, उस समय निसर्ग को ही देवता माना जाता था, सूर्य, चाँद, पेड़, हवा, पानी भी उनके देवता थे. इन्ही नैसर्गिक देवताओं के हलचल को वे प्रकोप मानते थे. उसे हटाने के लिए ही वे यज्ञ पूजा किया करते थे. इन्द्र देव को वश करने का इसे ही एक कामयाब इलाज समझा जाता था. सिन्धु सभ्यता ही ही हिन्दू सभ्यता रही है. हड़प्पा जैसे प्राचीन कुछ शहरों को विनाश कोई नैसर्गिक आपदा ने किया है जिसे हम भूचाल कहते है. इन्द्र महान देवता होने से यह उनकी ही हरकत समझे जाती रही. उसे ही रिझाने का प्रयास होते रहा. पर निसर्ग किसी की पूजा का कोई महत्व नही रखता. वह अपने नियमों से चलता है. इसलिए पूजापाठ व्यर्थ है यह समझने वाला एक अलग गुट रहा था. जो उसे हमेशा विरोध करते रहा.

पुराने ज़माने मे लोग कैसे रहा करते थे? सिन्धु सभ्यता का विनाश आज से क़रीब पांच हजार साल पहले से होना सुरु हुआ. वेद बहुत समय बाद लिखे गए. उसमे सत्य और तथ्य कितने हो सकते है? इसका सभी जानकर लोगों को पता है. ढाई हजार साल पहले के घटनाओं के बारे मे अगर कोई व्यक्ति वर्णन लिखता है तो उसपर शतप्रतिशत भरोसा कैसे किया जा सकता? कही, सुनाई कहानी को क्या सही ऐतिहासिक घटना का वर्णन कह सकते है? क्या उसमे कुछ तथ्य हो  सकता है?

अगर हम माने की सिंधु संस्कृति पर विदेशी हमला हुआ, तो उनके पुक्ता सबूत क्या है? कितने लोगों ने हमला किया था? युद्ध मे कोनसे हत्यारों का प्रयोग हुआ? कितने लोग उसमे मारे गए? और कितने जिन्दा रहे? जीतनेवाले लोगों ने उस जगहों पर अपनी बस्ती बनायीं या दूसरी जगह पर वे चले गए? जब देशों की सीमाए ही नही थी तो उस देश के लोगों ने इस देश को पराजित किया, ऐसा कहना कितना वास्तव है? भारत मे घोड़े कैसे आए? सिंधु संकृति को नष्ट करने के लिए आर्य घोड़ों पर बैठ कर आये थे. क्या वे लोगों को मारने लगे और यहाँ के लोग देखते ही रहे? सिंधु सभ्यता का विनाश कितने दिन तक जारी था? कितने समय तक युद्ध चला?

श्रमण और ब्राह्मण ऐसी दो सभ्यताओ का सम्मिश्रण हिन्दू सभ्यताओ में रहा है. श्रमण एक जगह बस्ती बनाकर बैठ गए. खेती में फसल उगाना उनका मुख्य कार्य रहा. उन्होंने शारीरिक कार्यों को ज्यादा महत्व दिया. मात्र श्रमण सभ्यता के शारीरिक कार्यों को ब्राह्मणों ने नीच कर्म करार दिया. ब्रह्म को ईश्वर मनानेवाले ब्राह्मण गुराखी थे. वे चरवाए थे. घुमन्तक थे. पशु पालन उनका मुख्य उद्धेश रहा. ज्यादातर वे जानवरों के दूध, मांस, मटन खा-पीकर गुजारा करते थे. गो-पालन के साथ चोरी, चपेटी, डकैती करने के लिए भटकते रहे. उसी वजह से श्रमण अरु ब्राह्मण में हमेशा टोली युद्ध, झगड़े होते थे. जिसका वर्णन बाद में उनके धर्म ग्रन्थ में लिखा गया. ब्राह्मण बाद में उन्होंने भक्तिभाव को धर्म बनाया. पूजापाठ सुरु किया. उसके लिए काफी मनगढ़ंत कहानियां लिखी. वे बौद्धिक कार्य को महान मानने लगे. ज्ञान को उन्होंने पाना धंदा बनाया. ॠग्वेद यह उनका पवित्र ग्रन्थ रहा है. उसके अनुसार ‘आर्य’ वे लोग है, जो जीते जाते है और अनार्य वे लोग है, जो पराजित होते है. विजयी को ‘आर्य’ की उपाधि, सम्मान में दी जाती थी. ‘मेहनत करे मुर्गा और अंडा खाए फ़क़ीर’ जैसी अवस्था आलसी ब्राह्मणों ने इजात की थी.
      
बाद में गो-पालन को छोड़कर भक्ति मार्ग से अर्थार्जन करना यह ब्राह्मणों का मुख्य “पुरोहित’ धंदा रहा. ब्राम्हण लोग पुजारी का कार्य करते थे. उनका मुख्य कार्य रहा था “यज्ञ” करना, करवाना, यज्ञ में जीवित हानि, हिंसा होती थी तथा ब्राम्हणों को बहुत बड़ी दक्षिणा प्राप्त होती रही. आर्यों में चोरी करना, डाका डालना, योन उत्पीडन, हिंसा करना, नशा करना और समाज में अफवाओं के जरिए अराजकता फैलाना उनका महत्वपूर्ण कार्य रहा. ब्राह्मणों ने यज्ञ पूजा के जरिए अपने बुरे सभ्यता को अन्य वर्ग पर थोंपा. जो यज्ञ विरोधी थे, उसे बहिष्कृत किया जाता था. उसमे श्रमण लोगों को बहिष्कृत किया जाता था. ब्राह्मणों ने यज्ञ संस्कृति का प्रभाव अन्य श्रमण वर्गों पर भी डाला. उसे अर्थार्जन करने का शक्तिशाली साधन बनाया. जो लोग तर्क संगत विचार करते थे, वे ब्राह्मणों के चंगुल से दूर रहे. तथा जो तर्क नही कर पाते थे, वे हिन्दू (ब्राहमण) व्यवस्था के शिकार हुए, उन्होंने वर्ण व्यवस्था को चलाने के लिए एक निति बनायीं थी जो ‘साम, दाम, दण्ड और भेद’ के नाम से परिचित है. इसी निति के वजह से वे कही जगहों में विजयी हुए. इसका मतलब वे हमेशा विजयी रहे, ऐसा नही था. इसलिए केवल ब्राम्हणों को ही “आर्य” या “विजयी” कहना मुर्खता है. अन्य वर्ग के लोग भी छोटे-बड़े झगड़ों में विजयी होते रहे. उन्होंने भी अपनी संपत्ति संघर्ष द्वारा ही बरक़रार रखी थी.


श्रमण सभ्यता के जरिए जैन विचारधारा कार्यरत रही, जिसके २४ वे तीर्थकार ‘भगवान महावीर’ रहे. उन्होंने यज्ञ विरोधी काफी कार्य किया. इनका कार्यकाल गौतम बुद्ध के समकालिन रहा, वे बुद्ध से उम्र में बड़े थे. हिंसा, योन उत्पीडन, चोरी, डकैती, नशा और झूठ बोलना यह यज्ञ सभ्यता के परिणाम रहे है, जिसके विरोध में ही “अहिंसा परमो धर्म” तत्व का प्रचलन सुरु हुआ. तथा हिंसा, योन उत्पीडन, चोरी, डकैती, नशा और झूठ बोलने को विरोध किया. सबसे पहले भारत में पंचशील की निर्मिती जैन धर्म ने की. उसका जोरदार प्रचार किया. फिर भी हिन्दुधर्म से जनता का शोषण नही रुका. उसके कारण जैन विचारधारा में रहे है. उसमे ईश्वर पूजा भी एक कारण रहा है.

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