शनिवार, 12 सितंबर 2020

नकली "मानवंदना" से कोई फ़ायदा नही होगा !



भीमा कोरेगाव (महाराष्ट्र) का महार क्रांति स्तम्भ अंग्रेजोने बनवाया था जिसकी ऊंचाई ७० फिट है. अंग्रेज के खिलाफ पेशवा ऐसा एह संघर्ष, युद्ध था. अंग्रेजो के खिलाफ महार लड़कर उसे पराजित करना चाहते थे मगर उन्होंने कहाँ था की 'हमारे महार जाती के लोगों पर जो अनन्वित अत्याचार जारी है, हमें गाँव के बहार रखा जाता है तथा हमें कोई भी उपजीविका का साधन नही है, हम सदा से मानसम्मान से वंचित है तो क्या आप हमारे मांगो को पूरा करने के लिए तयार है ?' तो पेशवा ने कहा "नही"
फिर अंग्रेजो को कहा की हम पेशवा के खिलाफ जंग में लढाई लढना चाहते है. हम उसमे शहीद होने के लिए भी तयार है मगर हमारे महार जातिओं के लोकों को आपके राज्य में मन-सम्मान मिलेगा? क्या हमारे लोगों को जीने के लिए नोकरिया मिलेगी? क्या हमारे जातियों के साथ अछुत जैसा व्यवहार किया जाता है, उससे निजात मिलेगी? पेशवाई ने हमारे जाती के लोगों पर जो कही सालों से अनन्वित अत्याचार किए है उससे निजात दिलवाने के लिए तयार है तो हम इस युद्ध में मर भी जाए तो हम हमारे जातियों के हितों के लिए हमारी कुर्बानी समझेंगे. अंग्रेजोने महारों को आश्वासन दिया की उनकी सभी मांगे पूरी की जाएगी.
पूना के पेशवा शोषित शासन के खिलाफ यानि भारतियों के खिलाफ लढाई में शहीद होने को महार तयार हुए. क्या इस कार्य को देश भक्ति का कार्य कहा जा सकता है? कोई भी कहेगा की यह कार्य देशद्रोह से प्रेरित था. देश यह एक भौगोलिक सीमा से युक्त होता है. देश सर्वश्रेष्ट नही होता. देश यह इंसानों का बनाया हुआ एक इलाका है. उस इलाके में जो लोग है उसके रक्षा, सुरक्षा, पालन-पोषण की जिम्मेवारी उसके मुखिया होती है. अगर वह अपने जिम्मेवारी से मुह मोड़ लेता है तो उपेक्षित जनता ने क्या करना चाहिए? अपने उपर हुए अन्याय के खिलाप आवाज उठानी चाहिए. लेकिन कोई न्यायमूर्ति तो होना जो कहे की यह न्याय है?
अपने देश के अन्याय ग्रस्त लोगों को अन्याय से मुक्ति दिलाना यह कोई देशद्रोही कार्य नही है तो देशभक्ति का कार्य है. अंग्रेजो के लिए यह लढाई नही थी तो यह अछुत प्रथा को मिटाने जंग थी. जिस पेशवा के सामने अंग्रेज घुटने टेकने जा रहे थे उन्हें हिम्मत दिलाई की हम पेशवाई को अब और समय तक नही सह सकते. हम हमारे महार जातियों को उनके गुलामी से मुक्त करना चाहते है, इसलिए आप हमें युद्ध उचित युद्ध सामुग्री प्रदान करे. आप हमारे साथ रहे, हम आपके साथ है. दोनों मिलकर पेशवाई का जमकर मुकाबला करते है. अंग्रेज तयार हुए. अंग्रेजोने महार जाती के लोगों पर भरोसा किया.
अंग्रेजो के तरफ से महार जाती के लोगों ने जंग में सहयोग दिया तो पेशवाई की ओर से मराठे लोग थे. शिवाजी महाराज के लिए भी महारों और मराठो ने मिलकर हिन्दवी स्वराज्य बनाया मगर महारों के जीवन में क्या आया? मराठे पेशवा को सही समज रहे थे क्योंकि वे ब्राह्मण थे. समाज में मराठे ही महारों को गावों के बहार रहने पर मजबूर किया करते थे. इसलिए यह जंग पेशवा विरुद्ध अंग्रेज ऐसी समजने की किसी ने भुल नही करनी चाहिए. यह शुद्ध बनाम अछुत ऐसी जंग रही है. अछुत प्रथा को पेशवा के जरिए जीवित रखने का कु-कार्य मराठों ने किया था, क्या महारों पर अत्याचार करने के लिए हर जगह पर पेशवा आते थे?
था जीवा (महार) इसलिए बचा शिवा (मराठा) ऐसी मराठी में एक कहावत प्रचलित है. शिवा का मतलब शिवाजी महाराज है. जो क्षत्रिय नही तो एक मराठा थे. इसलिए उनका राज्यभिषेक करने को महाराष्ट्रियन ब्राह्मण तयार नही थे.
मराठों का शासन स्थापन करने के लिए महारों ने अपने जीवन की कुर्बानी दी, मुस्लिम लोगों का पराजय हुआ. हिन्दवी स्वराज्य स्थापित हुआ. लेकिन उसका मुहवाजा महार जाती को क्या मिला? महार जाती के लोगों के बलपर शिवाजी मुस्लिम शासन से जीते थे. मगर एक भी महारों के बहादुरी का निशान शिवाजी ने नही बनाया.
महार अंग्रेजो के जरिए पेशवा तथा मराठों के खिलाफ जंग में शहीद हुए तो उन्होंने महार क्रांति विजय क्रांति स्तम्भ बनाया. जो महारों के बहादुरी का निशान है. इस जंग में पेशवा का ही नही तो पेशवाई का भी अंत हुआ. मगर उससे भी बड़ी जित यह हुयी की महार इस युद्ध में मराठों को मारने में पीछे नही रहे. मराठों ने महारों के सामने हत्यार डाल दिए, इस जंग में यह सिद्ध हुआ की महार यह केवल ब्राह्मणों से ही ज्यादा होसियार और बलवान नही है तो वे मराठों से भी ज्यादा योद्धा और युद्ध में ज्यादा निष्णात है.
पेशवा काल में केवल महार जाती पर ही अन्याय अत्याचार नही होते थे तो चमार जाती पर भी मराठों ने अन्याय अत्याचार किया है. लेकिन किसी चमार जाती के व्यक्ति ने उसके खिलाफ आवाज नही उठाई. शाहू महाराज एक चमार घराने का राजा रहे, उन्होंने अंग्रेजो से दोस्ती की मगर अपने लिए, न की किसी अछूत जातियों के लिए. उन्होंने अपने शासन के पुरे सूत्र, ब्राह्मणों के हवाले किया था. क्या इसे हम अन्याय के खिलाफ बहादुरी का नमुना कह सकते है? एक कायर राजा ब्राह्मणों के तथा अंग्रेजों के सामने घुटने टेकता है, उसे हमने बहादुरी कहना चाहिए?
बाबासाहब के हातों में न शासन था और न प्रशाशन फिर भी उन्होंने अपने महार जाती के बलबूते देश के अन्याय ग्रस्त लोगों के लिए न्याय दिलवाया. उन्होंने यह भेदभाव नही किया की यह महार है, यह चमार है, यह मराठा है, यह ब्राह्मण है, यह वैश्य है. उन्होंने वैश्य मोहनदास गाँधी के येरवडा जेल में प्राण बचाया. मराठा जोतीराव फुले को अपने गुरु जैसा चाहा, मगर जेधे-जवलकर जो फुले के शिष्य थे महारों को हिन्दुधर्म के अन्याय के खिलाफ चलनेवाले जंग में कहा गायब हो गए थे? व्यक्ति दोषी नही होते तो व्यक्ति के विचार में दोष होता है, मगर फुले अनुयायी ब्राह्मण (व्यक्ति) को दोषी समजते रहे और बाबासाहब के मानवमुक्ति के आन्दोलन से दूर रहे.
बाबासाहब आंबेडकर ने महारों को हिन्दू धर्म के नही तो मराठों के अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए बौद्ध धम्म दिया. हिन्दू धर्म के अनुसार मराठे ही महारों पर राज करते रहे. मगर धर्म ही छोड़ दिया तो वे अब महारों पर राज कैसे कर सकते है? मराठा हमेशा ब्राह्मणों के वश में रहे. उनके गुलामी को हमेशा अलंकार समजते रहे. उनके लिए भारतीय संविधान में बाबासाहबने धारा-३४० को स्थापित किया जिससे काका कालेलकर तथा बादमे मंडल आयोग के जरिए आज केंद्र में २७% प्रतिशत आरक्षण रामविलास पासवान ने दिलाया.
मराठे पेशवा के साथ रहकर जंग में पराजित हुए मगर मुस्लिमों के जैसा ही उनका रवय्या रहा. हम हारे हुए तो क्या हुआ, फिर भी हमारी लाल है. यह मराठों की मुजोरी है के वे महारों से पराजित होने पर भी उसे मानने से इंकार करते है. इस मुजोरी का एक नमूना है, "शिव सेना" की स्थापना. उसमे भी उनका ठाकरे ने अपमान करना सुरु किया तो उन्होंने "मराठा महासंघ" बनाया, आगे चलकर वे "शिवधर्म" को अंजाम देते है. मगर बौद्ध बनने से वे डरते है. महारों ने बुद्ध को और उनके धम्म को अपनाया इसलिए वह पलीद हुआ है. ऐसा पलीद धम्म हम अपनाने से हम भी पलीद हो जाएंगे. क्या हम हमारे घरों में किसी ब्राह्मणों के जरिए सत्यनारायण की कथा रखने के लायक रहेंगे? ईश्वर हमें मुक्ति कैसे देगा? इस अंधश्रद्धा तथा मुसलमानी मुजोरी के कारण वे धम्म के जगह पर धर्म को अपने उद्धार का एक जरिया समज बैठे है.
जो आज के बौद्ध भीमा-कोरेगाव को जाकर मानवंदना देते है उन्होंने क्या बहादुरी करने की प्रेरणा अपने पूर्वजों से ली है? मराठों को बौद्ध बनाए बगैर वे अगर मानवंदना देते है तो यह उन महान बलिदानी पूर्वजों के साथ खेल खेलने का कार्य कर रहे है. बहादुरी की प्रेरणा लेने पर भी यह बौद्ध अपनी बहादुरी क्यों नही साबित करते? बुद्ध धम्म ५६ साल से अपनाने के बाद भी वे अपने पड़ोस के मराठों को दोस्त बनाने में पराजित हुए है. मराठों के गुरुर को ख़त्म करने में वे अभीतक कामयाब नही हुए है. बुद्ध धम्म होते हुए भी मराठों को वे बौद्ध बनाने के लिए नाकाम हुए है. जबतक शिवधर्म के लोगों को बुद्ध धम्म की दीक्षा दिलाने में वे कामयाब नही होते तबतक उनका भीमा-कोरेगाव में जाकर मानवंदना देना मेरे नजर से एक दिखावटी वंदना है. तथा जो बहादुर नही है और नही बनना भी चाहते उन्होंने यह वंदना करने का नाटक नही करना चाहिए.
महाराष्ट्र के बौद्धों के पूर्वज महान थे मगर उनके अनुयायी नालायक निकले जो अपने ही परिवार के सुखों के लिए कुर्बानी देने के कार्य को महान समजकर बैठे है.

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