सोमवार, 20 अप्रैल 2020

                                                                   व्यक्ति नही, विचार देखो
                                                                  ==============
त्रिपिटक भिक्षुओं की रचना है जिसमें काफ़ी घुसपेठ हुयी है फिर भी उसी के आधार पर "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" लिखा गया, जो ग़लतियाँ त्रिपिटक में रही है वही ग़लतियाँ नए ग्रंथ में भी रही है। जो व्यक्ति इसे इंकार करता है वह यह क्यूँ नही बताता की इस ग्रंथ में संदर्भ क्यू नही दिए गए? क्या ऐतिहासिक ग्रंथ में संदर्भो का होना ग़लत है?
ख़ुद बाबा साहब अम्बेडकर ने यह बात स्वीकार की है की वे बुद्ध धम्म के संशोधक नही है, फिर भी उन्हें संशोधक समजकर उनके "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" को संशोधन पर ग्रंथ क्यू समझा जा रहा
अगर हम हिंदू धर्म ग्रंथो की चिकित्सा करते है तो हमारे धम्म ग्रंथ की चिकित्सा किसी ने की है तो उसका हमने आदर करना चाहिए, न की अपमान।
अगर बुद्ध विचार विज्ञान को पूरक है तो मुझे यह बताओ, जातक कथा विज्ञान पर निर्भर है क्या? न होते हुए भी "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" में क्यू है? उसी के ज़रिए पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, १० पारामिता, बोधिसत्व, अरहत__ शब्दों को प्रवेश मिला।
बुद्ध होने के लिए बोधिसत्व की परीक्षा पूर्वजन्म में पास होना ज़रूरी है, तो क्या बाबा साहब अम्बेडकर का पूर्वजन्म चन्द्रमणि भिक्षु को पता था? जिसके कारण उन्हें "बोधिसत्व" की उपाधि बहाल की गयी। आलोचक तो ज़रूर पूछेंगे, उसके व्यक्तिपूजक आम्बेडकरी लोगों के पास क्या जवाब है? की पूछने वालों को सिर्फ़ मूर्ति दिखाने का कार्य करेंगे?
जात न पूछो साधु को पूछ लीजिए ज्ञान, क़ीमत करो तलवार की पड़ा रहन दो म्यान यह कबीर साहब की वाणी है। उन्होंने जात पूछकर क़ीमत करनेवाले ब्राह्मणो उत्तर दिया।
"मै" कहता हूँ इसलिए इसे सही नही मानना, उसे बहुजनो के (हित और विज्ञान) के कसौटी पर घिसकर देखना अगर खरी उतरती है तो उसे स्वीकारना यह बुद्ध वचन है.
इसलिए मेरा इतना ही कहना है की हम किसे माने ? व्यक्ति को मानने की बात किसने की है? ख़ुद अम्बेडकर/बुद्ध भी विचारों को मानने पर ज़ोर देते है। - rajanandm.blogspot.com

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