शनिवार, 13 जुलाई 2013

आंबेडकर साहब का मुख्य उद्धेश (मिशन) क्या था?

 बाबासाहब आंबेडकरने फुल (आर्थिक जनतंत्र, एक व्यक्ति - एक मूल्य) के उद्धेश (मिशन) से देशसेवा की थी, मगर संविधान सभा में वर्णवादी कांग्रेसी नेताओ ने उनके हातो में सिर्फ फुल की पखडंडी (राजकीय जनतंत्र, एक व्यक्ति - एक मत) ही सौंप दिया. मनुवादी कांग्रेसियों के कारण ही देश का संविधान पूंजीवादी बना. 
संविधान का मसौदा किसने बनाया? यह जितना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उसे क़ानूनी स्वरुप प्रदान करनेवाले 'संविधान सभा' का है. मनुवादी कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों के 'बहुमतो' के कारण भारत का 'संविधान मनुवादी' बना, न कि अम्बेडकरवादी बना, उसी का नतीजा है की, देश में बहुसंख्यक लोग भिकारी, लाचार, गरीब और चोर, बदमाश है.

जो देशवासी मित्रजन, जनतंत्र में विश्वास करते है, उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर के फुल (उद्देश) को प्राप्त करने के लिए जनान्दोलन करना जरुरी है, उसी में सबका फायदा है.
अन्यथा हजारो सालो तक चिल्लाते रहे, तो भी कोई राजनेता या भगवान हमारे उत्थान के लिए आगे नही आएगा. जैसे हमारे पुरखे गरीबी में जिए, हम गरीबी में जी रहे है और वैसे ही हमारे बाल-बच्चे भी गरीबी में ही जियेंगे. सोचो और उचित क्रांतिकारी जनान्दोलन के तयार हो जाओ.

देश को ईमानदार राजनेता चाहिए, बेईमान नहीं. जाती से कोई ब्राह्मण नही होता और न जाती से मराठा... गुणों से कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण होता है और गुणों से ही कोई व्यक्ति मराठा, महार, चमार... जिनके गुण अच्छे है, वे लोग ही अच्छे है, जो सिर्फ अपने अवगुणों से सिर्फ गाली गलौच करते है, वे हिंच है, जिसका दूसरा नाम हिन्दू, हिन् है, वे भी हिन् है और उनके देवी देवता भी हिन् ही है... संत कबीर कहते है, ऐसी वाणी बोलिए कोई न बोले झूट, और ऐसी करनी करिए, कोई न बोले उठ... 

बामसेफ/बीएसपी के पास न गुण उचित है, और न उनके कार्य... इसलिए ४० साल के लंम्बे अन्तराल के बाद भी वे कुछ भी हासिल नहीं कर सके... क्या जातिवाद को बढ़ावा देना यंही उनकी महान उपलब्धि है?

धर्मनिरपेक्ष = सर्वधर्म समभाव नहीं होता, पर यही अर्थ कांग्रेस पार्टी लेती है और खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती, जो गैरप्रचार है. उसका सही अर्थ है = धर्म की अपेक्षा/जरुरी नही. क्योंकि उसमे इंसानों का ईश्वर से रिश्ता बताया जाता है, जो अवैज्ञानिक सोच है... बुद्धिज़्म को हमने निति = धम्म माना है, न की रिलिजन, धर्म... बुद्धिज़्म को धर्म में सम्मिलित करना गल्त है, क्योंकि उसमे ईश्वर के साथ इंसानों के रिश्ते को नकारा है. धर्म वे है जो ईश्वर, आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक, राशी-भविष्य, पाप-पुण्य, पूजा, कर्मकाण्ड, यह अगर महायानी विचारो में पायी भी जाती है तो वे बुद्ध की शिक्षा नहीं है, वह ब्राह्मणवाद की घुसपेठ है... यह गलत धारणा प्रथम संस्कृत में और बाद में पाली में भी आयी है... पर उसे न आंबेडकर साहब ने स्वीकार किया और न मै भी मानता हूँ..

शिक्षा देने का सरकारी उद्धेश यह है की लोगों को सरकारी दफ्तरों में काम करनेवाले उत्तम कर्मचारी मिले. कुल जनसँख्या के केवल १५% नोकरिया होती है और से प्राप्त करने के लिए १००% जनता दौड़ रहे है, उसमे सिर्फ १५% लोगो को ही अवसर मिलेगा. बाकि ८५% भारतीयों के शिक्षा लेने का क्या फायदा रहा है?

अभी कम्पूटर का जमाना आया, उसमे हजारो लोगों के कार्यो को करने के लिए एक ही साफ्टवेअर काफी है. फिर सरकारी दफ्तरों में ईमानदारी से भी १५% नोकरियो के अवसर कैसे क्या मिलेंगे? मांग कम और सप्लाय ज्यादा तो क्या होगा? तनखा कम. तो क्या कम मेहनताना में महंगाई के साथ यारी बनाकर जीवन को सुखमय जिया जा सकता है?

देश में उचित योजना की कमी है. जिसके वजह से समस्याए हल होने के बजाए और भी बढ़ते जा रही है. राष्ट्रिय ईमानदारी के अभाव में राष्ट्रिय हितो के बजाए स्वार्थ उत्पन्न हुआ है. उसे ख़त्म करने का एकमेव और जालिम उपाय है, बुद्धधम्म का स्वीकार करना, स्वागत करना. बुद्ध धम्म अपनाओ देश और दुनिया को सुखमय बनाओ. अमीरी हटाओ, गरीबी हटाओ.

संविधान का मसौदा किसने बनाया? यह जितना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उसे क़ानूनी स्वरुप प्रदान करनेवाले 'संविधान सभा' का है. मनुवादी कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों के 'बहुमतो' के कारण भारत का 'संविधान मनुवादी' बना, न कि अम्बेडकरवादी बना, उसी का नतीजा है की, देश में बहुसंख्यक लोग भिकारी, लाचार, गरीब और चोर, बदमाश है.

जो देशवासी मित्रजन, जनतंत्र में विश्वास करते है, उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर के फुल (उद्देश) को प्राप्त करने के लिए जनान्दोलन करना जरुरी है, उसी में सबका फायदा है.
अन्यथा हजारो सालो तक चिल्लाते रहे, तो भी कोई राजनेता या भगवान हमारे उत्थान के लिए आगे नही आएगा. जैसे हमारे पुरखे गरीबी में जिए, हम गरीबी में जी रहे है और वैसे ही हमारे बाल-बच्चे भी गरीबी में ही जियेंगे. सोचो और उचित क्रांतिकारी जनान्दोलन के तयार हो जाओ.


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