शुक्रवार, 21 जून 2013

छीन लेना ही बलात्कार है!






छीन लेना ही बलात्कार है. हर चीज चिनकर नही ली जाती है, मांगना कोई चोरी नही, जिसे हम बुरा कह सकते है. छीन कर लेना गुंडा गर्दी है, जो हम नही करना चाहते और न किसी ने करना चाहिए. जो चिज मांगकर ही मिल सकती है उसे पाने के लिए छिनने की बाते हम क्यों करे? 



छीन लेना यह जनतांत्रिक तानाशाही विचार है. आज जो सत्ता में बैठे है तो हम जनतंत्र के साथ तानाशाही से पेश आना चाहते है, अगर कल हमारे होतो में शासन होने पर दुसरे भी छिनने का तानाशाही कदम उठा सकते है.



छिनने के तानाशाही रवय्ये को छोड़कर मांगने के जनतांत्रिक रास्तो का ही कदम अपनाते रहना सही है. जो चीज मांगकर ही नही मिलती और देनेवाले घमंडी अन्याय करने पर तुले होते है तभी ही हमने बगावत करना चाहिए. जनतंत्र में ज्यादा लोगों ने अपनी मांग सरकार के सामने रही तो वह आज नही तो कल जरुर पूरी होगी. उसके लिए जरुरी होता है की हम उस मांग का पीछा कितने समय तक करते रहते है.


हर मांग के लिए पर्याप्त समय और प्रयास की जरुरी होती है. उसकी अगर पूर्ति हो जाए तो कोई भी मांग अधूरी नही रह सकती, वह जरुर पूरी होगी. दुनिया में ऐसा कोई कार्य नही है की जिसके कारणों की पर्याप्त समय में पूर्ति करने के बाद भी वह पूरा नही हो सकता. इसलिए सर्वागीण हितो की मांग करो, उसके लिए उचित समय दो, प्रयास हमेशा जारी रखो तो "मांग" के ही जनतांत्रिक रास्तो से मांग पूरी होगी.

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