बुद्ध धम्म में मुख्यतः दो पंथ प्रमुख है, महायान और हीनयान. दोनों पंथों की विचारधारा भिन्न है, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर इन्होने दिनांक- १४ अप्रैल १९५६ को धम्म दीक्षा दिया था, उसमे उन्होंने न हीनयान की वकालत की थी और न महायान की. पर अब आंबेडकर अनुयायी ज्यादात्र महायान के चंगुल में दिन ब दिन फंसे जा रहे है.
"जय भीम" को अभिवादन में अपनाने के बजाए अब वे "ॐ मनी पद्मे हूँ" कहने लगे है, बुद्ध पौर्णिमा के अवसरपर उसको एस्मेस में भी भेजे जा रहे है, तब बड़े चिंता की बात है. बुद्ध की धम्मक्रांति सफल हुयी या विफल? अगर "ॐ मनी पद्मे हूँ" को बौद्ध लोग जब प्रचारित कर रहे है तो वे महायानी विचारों के चंगुल में फंस गए ऐसा निश्चित ही प्रतीत होता है. महायान यह मंत्र, तंत्र की तथा अवतार को स्थान देता है. पूजापाठ द्वारा आशीर्वाद दिलाने में भरोसा दिलाता है.
हिन्दू धर्म में "ॐ" को ईश्वर का निर्माता कहते है. महायानी भी ॐ को मानते है. यह ॐ उनके पास क्या बुद्ध से आया है? अगर यही सही है तो "हिनयानी" भिक्षु उनका विरोध क्यों करते है? वे उसे क्यों नही मानते? बुद्धिज़्म को भ्रमित करने के लिए महायानी भिक्षुओं ने काफी प्रयास किया, उशिक नतीजा है की भारत में बुद्धिज़्म विलुप्त हुआ. तिबेटी लोग महायानी है, अर्थात हिन्दू है, बौद्ध नही. हिन्दुधर्म के विचारों को अमल में लानेवाले बुद्धिस्ट कैसे क्या कहा जा सकता? हिन्दुधर्म के कोकशास्त्र में "मणि" को "शिश्न" और "पद्मे" को "योनि" कहा गया है,"ओ भगवान, शिश्न योनि में है" इस अर्थ के "ॐ मनी पद्मे हूँ" को अभिवादन में वापर करना बुद्ध की शिक थी? क्या वह आंबेडकर साहब की शिक थी?
पद्मासन पर बैठे बुद्ध, पद्म यानि पाँव, पालथी मरकर बैठे बुद्ध. क्या आसन से ज्ञान प्राप्त होता है? अगर ऐसा ही होता तो बुद्ध को "आर्य अष्टांगिक मार्ग" समझाने की क्या जरुरत थी? न कमल से बुद्ध को कोई सम्भन्ध है और न पद्मासन से.. क्या कोई व्यक्ति कमल के फुल पर बैठ सकता है? बुद्ध को कमल पर बैठने का मतलब यही है की उन्हें अलौकिक शक्ति सम्पन्न बतातना है, ईश्वरीय अवतारी पुरुष बताना है. क्या इससे बुद्ध का अनात्मवाद और अनीश्वरवाद के सिद्धांतों का खत्म होते हुए नजर नहीं आता?
क्या भंते आनंद कौसल्यायन महायानी नहीं थे? भंते सुरई ससाई, भंते संघरक्षित मानके, संघ रक्षित महास्थविर (त्रैलोक्य बौद्ध महासंघ) महायानी लोग नहीं है? ओशो रजनीश और सत्यनारायण गोयनका यह महायानी विचारों के उपासक नहीं है? क्या महायान बुद्धयान है? महायान हिन्दुधर्म के आलावा और कुछ भी नहीं है. तिबेटी लामा यह अवतारवादी विचारों का प्रतिफल है. बुद्ध के पहले भी बुद्ध हुए, बुद्ध पहले के जन्म में बोद्धिसत्व थे, यह विचार क्या वैज्ञानिक सोच को साबित करते है? क्या महायान के नामपर अवैज्ञानिक व् तर्कसंगत सोच को छोड़ देना चाहिए? बोद्धिसत्व क्या है? बुद्ध होने के पहले जन्म की अवस्था."दस पारमिता" को जो पूरा करेगा वह बोद्धिसत्व बनेगा, जो दस जन्म तक बोद्धिसत्व के नियमों का अर्थात १० पारामिताओं का पालन करगा वही व्यक्ति "बुद्ध" बनेगा, यह सोच क्या वैज्ञानिक है? तर्कविसंगत सोच के साथ अगर भिक्षु भी रहे तो वह विचार धम्म विचार होने के लिए पर्याप्त नहीं है.
मुल्कराज आनंद यह एक जानेमाने साहित्यिक है, उन्होंने आंबेडकर साहब की मुलाखत की थी, उसमे बाबासाहब ने "ॐ मणि पद्मे" को अभिवादन के रूप में बौद्धों ने अपनाना चाहिए, ऐसा उद्बोध किया था, ऐसी बाते उन्होंने "१९९०" में प्रकाशित की थी. उन्होंने बाबासाहब आंबेडकर के "अन्हीलेसन आप कास्ट" इस ग्रन्थ को प्रकाशित किया था, उसी के साथ उन्होंने आंबेडकर साहब के साथ उनकी जो वर्तालाफ़ हुयी थी उसे भी छापा था. पर मुल्कराज आनंद के इस महायानी विचारों का धम्मानुयाई स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि अगर बाबासाहब "ॐ मणि पद्मे" को स्वीकार करते तो उन्होंने दीक्षाभूमि समारोह में सार्वजानिक रूप से उसकी घोसना करते, पर उन्होंने एशिया नहीं किया. मुल्कराज आनंद जैसे ही ओशो रजनीश भी रहे है, बुद्ध विचारों में घालमेल करके धम्म क्रांति को भ्रमित करने का कार्य करेंगे, उनके अनुयायी भी महायान को ही सही धम्म होने का दावा करेंगे, उसके लिए डॉ. भाऊ लोखंडे जैसे कुछ छद्म अम्बेडकरी भी सहयोग देंगे. कदम कदम पर महायानी, हिन्दू घाट लगाकर बैठे है, अगर अम्बेडकरी बेफिक्र रहे तो धम्म का अंत होना तय है.
महाराष्ट्र सरकार ने "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर : राइटिंग एंड स्पीचेस" के व्यालुम- १६ के पृष्ट- 743 पर भी "ॐ मणि पद्मे हूँ" को स्थान मिला है. आखिर क्यों? अम्बेडकरी धम्म क्रांति को भ्रमित करने के प्रयास महायानियों द्वारा हमेशा हुए है, उसने ही बुद्ध को भगवान, भगवंत, लार्ड बनाया. जो विचारवंत महायानी विचारों को "धम्म" समझकर प्रचारित कर रहे है, वे प्रतिक्रांति के हिमायती है, उनसे क्रांतिकारी अम्बेडकरी अनुयायियों ने दुरी बने रखना जरुरी है. नहीं तो धम्म्प्रचार के नामपर हिन्दुधर्म को गले लगाने का कार्य होगा, धम्म के जगह पर धर्म का विजय होगा.
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