हमारे पडोसी देशों मे हमेशा आपस मे झगडे होते रहे है, नतीजा वे हतियारों के खरेदी मे वे गरीब और लाचार हुए है. क्या हम भी उनके जैसे होने चाहिए? क्या हमारा देश भी वैसा ही गरीब होना चाहिए? चाइना को युद्ध, तो हमें बुद्ध चाहिए. युद्ध से युद्ध नही जीता जा सकता. बुद्ध से युद्ध को जीता जा सकता है. इसी कारण डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर ने हमें युद्ध के बदले बुद्ध का हथियार दिया है. वह हर प्रकार के शत्रुओं से मुकाबला करने के काबिल है. बस उसे चलाते आना चाहिए.
राजनीति मे “एक व्यक्ति, एक मत” को मान्यता मिली है और हम समान हो गए लेकिन हमारे सामाजिक और आर्थिक विषमता की वजह से सामाजिक तथा आर्थिक जीवन मे “एक व्यक्ति – एक मूल्य” यह तत्त्व अस्विकार कर रहे है. लोग ऐसे विपरीत परिस्थिति मे कबतक जीवित रह सकते और कितने दिन तक? कबतक सामाजिक तथा आर्थिक जीवन मे समानता को पालते रहेंगे? यदि समानता का हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन से नकारते रहे, तो राजकीय लोकतंत्र के भविष्य को खतरा जरुर होगा. इसलिए अभी शिग्रतिशिग्र इस विसमतामय जीवन का अंत करना होगा, अन्यथा जो लोग विषमता के शिकार है, वे बहुत कष्ट एवं परिश्रम से खड़े हुए इस राजनितिक लोकतंत्र का ढांचा ध्वस्त करेंगे.
बाबासाहब आंबेडकर के प्रेरणा से जो बौद्ध हुए और बुद्धिमान भी बने है, उन लोगों का यह रुख होना चाहिए की, न केवल बौद्धों के लिए बल्कि सभी मानव प्राणियों के समाज में आर्थिक समता भी लाने के लिए उचित प्रयास करे. केवल शैक्षणिक, राजकीय, सांस्कृतिक समानता रहने से समाज समतामय नही हो पाएगा. इसलिए समाज का आर्थिक अंग भी समतामय होना चाहिए तभी भी ममता आएगी. जिस समाज में ममता नही वह समाज चाहे फिर हिन्दुओं का हो, मुस्लिमों का हो, शिखों का हो, ईसाईयों का हो या बौध्दों का लम्बे समय तक इकठ्ठा नही रह सकता. बौद्धों के इतिहासों में सिर्फ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें बुद्ध और उनके धम्म की गरिमा सही ढंग से समझी थी. जिसे हमने पुरे विश्व में उसे फैलाए और बुद्ध, बाबासाहब आंबेडकर के समतामय क्रांति को शान्ति के उद्धेश से जनजन तक ले जाने का प्रयास करे.

वैज्ञानिकों का कहना रहा है की नए ज़माने में कोई भी धर्म नही टिक पाएगा क्योंकी उनके विचारधारा में विज्ञान का अभाव है. हर धर्म आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य, पुँजा-पाठ के आधी हो चूका है, जो विज्ञान के कसौटी पर नही उतरता. इसलिए उनका दौर अब जा रहा है. धर्म के ठेकेदार मुल्हा, पुरोहित, पंडित, पोप का जमाना निकल रहा है और जल्द ही उन्हें अफ़सोस करने के सिवाय कुछ भी बाकि नही रहेगा. हर धर्म ईश्वर, आत्मा से इंसानी रिश्ता रखता है, अगर ईश्वर का अस्तित्व वे साबित नही कर सके तो, उनके धर्म उपासक भी उनका साथ छोड़कर, नए वैज्ञानिक विचारों से लेंस व्यक्तियों से अपना लगाव रखेंगे. एक व्यक्ति ही व्यक्ति के कार्य में मदत के लिए आ सकता, न की भगवान. धम्म यह इन्सान ने इंसानों के लिए बनाया है, किसी भगवान ने नही, जो अन्ध विचारों का पालन करे. धम्म को वैज्ञानिक साबित करना बौद्धों का प्रथम कर्तव्य है. फिर प्रचार करना उतना ही आसान और गतिशील होगा.
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने मुम्बई के अलावा बुद्धधम्म दीक्षा समारोह नागपुर में लिया. वह भारत का मध्यवर्ती स्थान होने से वहां पर पुरे भारत के लोग जरुर इकठ्ठा होगे, उन्हें आने जाने में असुविधा कम होगी. पर अफ़सोस की बात यह रही की महाराष्ट्र के महार जातियों के अलावा और कोई खास दुसरे जगहों से जनता सम्मिलित नही हो सकी. नागपुर यह धम्म प्रचार और प्रसार का महान केंद्र बने यह उनकी आशा रही थी. मगर यहाँ पर अभी तक सही मायने में धम्म प्रचार का कार्य सुरु नही हो सका. दीक्षा भूमि पर हर साल गिराह के दिन “दिनांक १४ अक्टूम्बर” को देश विदेश से लोग इकठ्ठा होते है. पर सिर्फ माथा टेकने के लिए ही. बहुत कम लोग होते है की जो किताबों को खरीदते है. और उसे लगाव से पढ़कर धम्म कार्य को बढ़ाने में सहयोग देते है. इसी वजह अभी अर्ध शतक पार होंने पर भी भारत धम्ममय नही हो सका तो विश्व धम्ममय कब होगा?
डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर का देहान्त नई देल्ही में दिनांक- ६ दिसम्बर १९५६ के पहटिया के करीब चार बजे हुआ. उसके पहले उन्होंने “द बुद्ध एंड हिज धम्म” ग्रन्थ के “प्रास्ताविक” (प्रिफेस) में कुछ दुरुस्तिया की थी, वह बाजु के टेबल पर ही मौजूद थी. “द बुद्ध एंड हिज धम्म” बाबासाहब आंबेडकर के मृत्यु उपरान्त “पीपल एज्युकेशन सोसायटी, मुंबई” द्वारा उसका विमोचन हुआ. पर वह “प्रस्तावना” (प्रस्ताविक, प्रिफेस) जातिवादी अम्बेडकरी अनुयायिओं ने प्रकाशित नही होने दी. जिस वजह से लोगों ने धम्म को समझने के लिए “द बुद्ध एंड हिज धम्म” को पढ़ा लेकिन उन्हें सही ढंग से जानने का मौका नहीं मिला. उसके बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी उसका विमोचन हुआ लेकिन उसमे भी जातिवादी अम्बेडकरी लोगों ने शेंद मारी. क्या यह धम्म प्रचार का सही तरीका है? क्या ऐसे जातिवादी व्यक्ति बाबासाहब के “आर्थिक जनतंत्र” को समझ के काबिल है?
विश्वव्यापी स्थर पर “शुद्ध धम्म सूत्रों” का संकलन करना होगा. धम्मक्रांति का जनतांत्रिक कार्य “धम्मचारी” ही बखूबी ढंग से कर सकते. आधुनिक सोशल मिडिया और आधुनिक तन्त्रज्ञान साथ में है, जो सदियों का काम वर्षों में और बर्षों का काम मिनटों में करने को तयार है. बस! अब धम्मचारीयों ने सामने होकर संघटित ढंग से कार्य करने की जरुरत है. तो ही डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर का सर्वांगीन समता मूलक धम्मक्रांति का आन्दोलन कामयाब होगा. तथा महकरुनिक तथागत बुद्ध का “विश्व की पुनर्रचना” करने का उद्धेश पूरा होगा. जिस उद्धेश से बाबासाहब अम्बेडकर ने धम्म दीक्षा नागपुर में दी थी, वह उनका “बुद्धमय विश्व” बनाने का सपना साकार होगा. इस धम्म क्रान्तिकारी कार्य की नए तरीके से शुरुवात करना जरुरी है. इन्तजार काफ़ी हुआ, अब उचित प्रयास बाकी है. इसके लिए "आर्थिक जनतंत्र जनांदोलन" की निहायत जरुरत है. उसके शिवाय "धम्मक्रांति का जनतांत्रिक सफ़र" अधुरा है.
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