भारत में वंशवाद प्रचार करने के लिए बामसेफ के जातिवादी लोगों ने "मुलनिवाशी' संकल्पना को बढ़ावा दिया. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 'शुद्र पहले आर्य' यह सिद्ध करने के लिए "who were the shudras?" ग्रन्थ की निर्मिती करके हिन्दुधर्म के ठेकेदारों के विचारों को ख़त्म किया की वे विदेशी नही तो भारतीय है, उन्होंने बहुत बड़ी कोई भी जंग नही लढी थी. जो बताया जा रहा है की आर्य वंश यह महान है.
ब्राह्मण विदेशी है यह एक केवल कोरी कल्पना है. बाबासाहब के विचारों को झुटलाने के लिए किसी भी देशी-विदेशी सामाजिक संशोधक कभी सामने नही आए मगर जो लोग बाबासाहब की हमेशा जय जयकार करने में लगे थे उन्ही में से एक वामन मेश्राम ने बाबासाहब को झूट साबित करने के लिए बाल गंगाधर तिलक के विचारों का समर्थन किया और कहा की आर्य सिर्फ ब्राह्मण है और वे विदेश से भारत आए है.
आर्य यह विदेशी है तो देशी कोण है? तो आर्य/ब्राहमण को छोड़कर सभी देशी है, यानि मुलनिवाशी है. उन्होंने मुलनिवाशीयों को जीता और भारत में अपना शासन स्थापित किया. उसके माध्यम से भारत में वर्ण व्यवस्था बनाई गई, उसके जरिए मुलनिवाशियों हमेशा के लिए गुलाम बनाया गया, उस आर्य/ब्राह्मण लोगों के गुलामी से मुक्त होने के लिए भारतीय ब्राह्मण के अलावा अन्य लोगों ने "मुलनिवाशी" के जरिए एक होना चाहिए इस सोच से "मुलनिवाशी संघ" को गठित किया गया.
मुलनिवाशी की संकल्पना सिद्ध करने के लिए आर्यों को विदेशी ठहराने के लिए उन्होंने "DNA TEST" का सहारा लिया. इसके जरिए भारत के सभी जाती वर्गों के खून का नमूना लेकर यह साबित करने का कार्य किया गया की भारतिय मुलनिवाशी/पिछड़े जातियों के खून से आर्यों का खून अलग है इसलिए उन्होंने भारत देश छोड़कर विदेश में जाना चाहिए.
भारत में वर्णव्यवस्था होते हुए, इतना अनाचार था की ब्राह्मणों को किसी भी जाती/वर्ण के स्त्रियों के साथ योनाचार करने की खुली छुट थी, उनके हर जाती में अनौरश संतति पैदा हुयी जिसे अलग अलग नामों से संबोधित किया गया. वर्ण शंकर से भारत की कोई भी जाती पवित्र/शुद्ध नही रही, सभी जातिया पलीद हुयी है.
हो सकता है की कही अन्य जातियों में अभी भी ब्राह्मणों के अनौरस संतानों के वंशज जीवित हो. ऐसे में ब्राह्मण - अब्राह्मण सिद्ध करने के लिए सही मापदंड सिर्फ "DNA TEST" ही सहाय्यक होगी यह सोच कर उनके सहारे बाबासाहब को झूट और तिलक को सही साबित करने के लिए प्रयास जारी किया गया. सन १९५३ में "DNA TEST" का संशोधन वाट्सन और क्रिक इन्होने किया. क्लोनिंक के द्वारा मिलनेवाले कोशिकाओं का संशोधन करने के लिए इस टेस्ट का प्रयोग किया गया. कोशिकाए पुरानी रहने के बावजूद भी उनके द्वारा निर्मित हुआ शरीर और उनके अंग नए रहते है. क्या नए अंगो के जरिए उनके पुराने इतिहास का पता चल सकता है की यह अंग इस-इस प्रदेश का है?
विश्व के सभी मानव प्राणियों में ९९.९ % समानता होती है ऐसा संसोधन "DNA TEST" के जरिए साबित किया गया है. इसका मतलब मानवों में केवल ०.१ % विसमताए है. यह अंतर नगण्य है इसलिए विश्व के सभी मानव प्राणी आपस में भाई-बहन ही साबित होते है. आर्य शब्द को बाबासाहब वंश मानने के बजाए उसे एक उपाधि मानते है. जिसका अर्थ सिर्फ "श्रेष्ट" होता है.
गौतम बुद्ध के माध्यम मार्ग को भी "आर्य अष्टांगिक मार्ग" यानि "श्रेष्ट अष्टांगिक मार्ग" कहा गया है जिसे "The Buddha And His Dhamma" इस धम्म ग्रन्थ में "NOBLE EIGHT FOLD PATH" कहा गया है. अगर आर्य यह शब्द केवल ब्राह्मण/वंश के सन्दर्भ में होता तो उसका प्रयोग बुद्ध के विचारों को प्रसारित करने के लिए क्यों किया होता?
आर्य का अर्थ वंश न लेकर "श्रेष्ट" इसी अर्थ से लेना चाहिए. अन्यथा बुद्ध के विचारों को भी विदेशी कहकर अछुत समझने की भुल करने से "बुद्धमय भारत" का अम्बेडकरी सपना पूरा कैसे होगा? क्या भारत में ही सभी जनता सर्वगुण सम्पन्न है? विदेशों में कोई बुद्धिमान नही हुए है? फिर देशी-विदेशी इस मनुवादी भेदभाव के विचारों का प्रचार करना हम कब छोड़ेंगे?
वामन मेश्राम को भी उनकी भुल ख्याल में आयी की "मूलनिवासी" के संकल्पना के जरिए भारत में हम कामयाब नही हो सकते इसलिए उन्होंने "भारत मुक्ति मोर्चा" यह अपने नए संघटन का नाम रहा और मुलनिवाशी संघटन के सभी कार्यकर्ताओं को इसमें सम्मिलित किया. जो मूलनिवासी संघ के लोग है वे ही भारत मुक्ति मोर्चा के कार्य को आगे बढ़ाने का कार्य करते है.
अभी उन्होंने "जनसत्ता पार्टी" गठित की है जिसमे भी मुलनिवाशी का नाम नजर नही आया है. इन सभी करवटों को देखते हुए यही नजर आता है की वामन मेश्राम ने सभी बामसेफ/बीएसपी के जनता को मुर्ख बनाने का कार्य किया था और वे बन भी गए थे जिसका प्रतिफल वे आपस में अभिवादन करने के लिए "जयभीम" के जगह "जय मुलनिवाशी" कहते थे.
तानाशाह वामन मेश्राम ही सबसे ज्यादा मुर्ख है, जिसके पास दूर-दृष्टी का सदा ही अभाव रहा है. वह बौद्धिक दृष्टी से काफी कमजोर है. क्या कोई कुप-मंडूक व्यक्ति जनता को सही दिशा निर्देश दे सकता है? जो डॉ. बाबासाहब आंबेडकर से भी ज्यादा असरदार है? राजकीय सत्ता के अंधकार में चलनेवाला व्यक्ति जो हमेशा जाति/वर्ण/वंश वाद का प्रचार रहा है क्या वह भारत में बंधुभाव फ़ैलाने के लिए सही नेता बन सकता है?
वंशवादी विचार भारतीय जनतंत्र के भाईचारा नामक नैतिक मूल्यों को हानी करता है, राष्ट्रिय गरिमा के लिए हानिकारक है, जो देशप्रेमी है उन्होंने इस वंशवादी मुलनिवाशी संकल्पना का यथा शिग्र त्याग करके भारत में नफ़रत फ़ैलाने के बजाए भाईचारा बढ़ाने में मदत करे. जो सच्चे अम्बेडकरी है वे इस वंशवादी विचारों से अपनी मुक्ति करे अन्यथा बाबासाहब को भी दुसरे लोग वंशवादी समजकर परहेज करते रहेंगे, जिसका बहुत बड़ा नुकसान देश के सामान्य गरीब जनता का होगा.
अगर हम जनतंत्र को चाहते है तो मुलनिवाशी. वंशवादी विचारों का डटकर विरोध करे और भारत में शांति और सद्भावना फ़ैलाने के लिए सहयोग करे.
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