असंघटित जनता विकास से कोसो दूर है, अर्थंजन के लिए स्वाभिमान को बेचा जा रहा है, अनैतिकता काफी हद तक बढ़ चुकी है. यह बड़े शर्म की बाते है. नेताओं के सहारे हमने जीने की आदत छोडनी होगी. वे को ब्रेन पोलियो से ग्रस्थ है. उनके ब्रेन से चलने पर हमें बद से बदतर जीवन मिला है. महंगाई हमें खतम करनेपर तुली है, बेरोजगार हथ्बल है.
भारत मे अलग अलग स्तरपर कार्य करनेवाले काफी संघटन है, किसी को सही दिशा मिली है तो धन और शक्ति का अभाव है, जिस वजह से असरदार कार्य नजर नही आता. राजकीय, सामाजिक, सांकृतिक और आर्थिक क्षेत्र मे आमूलाग्र परिवर्तन और दिशा निर्देशन की जरुरत है, जनता ने संयुक्त रूप से सुनियोजित ढंग से कार्य करना जरुरी है.
महंगाई के चलते ८०% जनता ने २०/- रोजमजुरी मे कबतक जीना चाहिए?
केवल राजकीय जनतंत्र तबतक कुछ फायदे का नही, जबतक वह सामाजिक और आर्थिक जनतंत्र मे तब्दील नही होता. चले हम सब अपनी जाती/धर्म/वंश की सीमाओं को भूलकर जनकल्याण मे आंदोलन करे. यही उचित समय है, कही देर न हो जाए.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें