सम्यक सम्बुद्ध यह बुद्धिवादी, ज्ञानवादी लोग थे. ज्ञानी को सम्मान और अज्ञानी को अपमान, ऐसा भी भेदभाव वे नही किया करते थे. बुद्धी कम-ज्यादा रह सकती है, मगर उनके विचार स्वार्थ निरपेक्ष, "बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय", कल्याणकारी जरुर हो. समाज में बेईमान और अज्ञानी लोग हमेशा रहेंगे, उनसे किसका पलड़ा भारी है? यह देखना जरुरी है. कपटी लोगों से कैसे बर्ताव करे? इसका ज्ञान होना चाहिए. न हमने किसी को डराना है और न किसी से डरना है. न हमने किसी को लूटना है और न किसी को लुटने देना है. न हमने किसी का शोषण करना है और न शोषण को बर्दास्त करना है. बुद्ध न हिन्दू धर्म को डरे और न उसे डराया, बस उसे जागृत किया की सुख का मार्ग क्या है?
गौतम बुद्ध के बाद धम्म दान करने का कार्य भिक्षु संघ ने किया, उनमे विविध वर्णों के भिक्षु रहे. ब्राह्मण बनाम गैर-ब्राह्मण यानि महायानी बनाम हिनयानी गुट सुरु से रहे है. सम्राट अशोक पर भी उनका प्रभाव रहा है. वे किसी भी गुटबाजी को महत्व नही देते थे. भले ही उन्होंने धम्म को स्वीकार किया और उसे राजाश्रय दिया हो पर उनके विचारों पर सभी धर्म और पंथों का प्रभाव रहा. उसके वजह से वे “सर्वधर्म समभावी” बने थे. उनका मकसद मरने के बाद उन्हें भी स्वर्ग में सुखमय जीवन पाना था. यह बाते उनके शिला लेखों के अध्ययन से पता चलता है.
महायानियो के “विमान वत्थु” का उनपर भारी प्रभाव रहा. सम्राट अशोक के पहले ही धम्म को पलीद किया गया था. जिसके वजह से उन्हें सही धम्म समझना सम्भव नही हुआ. उनके धम्म सोच में काफी संभ्रम रहे, जो उनके शिलालेखों से प्रतीत होते है. इसी लिए धम्म को नए ढंग से गठित करने की जरूरत गिरी. फिर भी धम्म को शुद्ध स्वरुप में नही बिठाया गया. छद्म भिक्षुओं का चीवर उतारने का कार्य हुआ. केवल चीवर उतरने या चढ़ाने से कोई विशेष असर नही होता. जैसे गृहस्थों को धम्म सिखाने की जरूरत होती है वैसे ही भिक्षुओ को भी सही धम्म ज्ञान करने की जरूरत होती है.
हम पाठक को पाठ्यक्रम दे और शिक्षक को वैसा ही रखे तो क्या होगा? जरूरत दोनों को ज्ञान देने की थी और दोनों की परीक्षा लेने की थी. श्रामनेर को ही लोगों ने भिक्षु समजा और उनसे ज्ञान हासिल किया. उसमे कितना तथ्य था यह भिक्षु को ही पता. अपने पुत्र “महेन्द्र” तथा पुत्री “संघमित्रा” को संघ में दान भी दिया. उन्हें उस समय जो धम्म लगा वह उन्होंने बड़े तन्मयता के साथ फ़ैलाने का कार्य किया. पुरे संसार में बुद्ध के नाम पर जो धम्म बताया गया वह पलीद होने से धम्म को सही ढंग से नही परोसा गया. उसी वजह से विश्व में लोग बौद्ध तो बने, मगर बुद्ध अनुयायी नही, तो पंथ अनुयायी बने.
बुद्ध ने अपने संघटनों मे ब्राह्मण लोगों को भी सम्मिलित किया था, इसका मतलब यह नही होता की अन्य लोग नही थे. अपेक्षित व्यवस्था का उद्धेश क्या है? यह महत्वपूर्ण है. उसके अनुकूल अगर कोई कार्य नही करे, तो उन्हें बाहर निकालने का रास्ता मिल ही जाएगा. उन्हें निकालने के लिए प्रयास करने की जरूरत ही नही है. बुरे लोग अच्छे लोगों से दूर ही भागते है तथा वे बुरे लोगों की अलग टोली बनाते रहते है. चोरों को संघटन मे स्थान नही है, ऐसी बाते लिखने की जरुरत नही. नियम ही ऐसे बनाए और दिखाए की वे उसे पढकर ही आपसे और आपके संघटन से दूर चले जाए. बाबासाहब ने किसे भी गुमराह करने की कोशिश नही की और न हमने करनी चाहिए. कुछ अपने नाम, संपत्ति और ईच्छाओ को पूर्ण करने के लिए दूसरों को गुमराह करते आए है. गुमराहों के संपर्क मे हम रहे तो हम भी गुम हो सकते है. हम जागृत रहे और औरों को जागृत करे.
मानव प्राणी अगर बुरा कर्म करते है तो वह नर्क मे जाता है और अच्छे कर्म करता है तो वह स्वर्ग मे जाता है. ऐसी हमने धारणा बनाई है क्योंकि वह हमारे शास्त्रों मे या धर्म ग्रंथो मे लिखी है. क्या, बिना लिखे कोई भी धर्मग्रन्थ बना है? दुनिया मे जितने भी धर्मग्रन्थ है उसे मानवों ने ही लिखा है. लेकिन हम ईश्वर का नाम सामने करते है. क्या सच कों झूट और झूट कों सच कहना गलत नही है? जिन मानवों ने धर्मग्रन्थ लिखे है, न उन्होंने “स्वर्ग” कों देखा और न “नर्क” कों देखा है.
बिना देखे “नर्क” की कल्पना करके सही और गलत धारणा बनाना और उनपर विश्वास करना कितने प्रतिशत उचित है? हमें नर्क की शिक्षा से डराया जाता है और हम डर के मारे धर्मग्रंथों का पालन करते है. न किसी ने आत्मा देखा, न किसी ने ईश्वर कों देखा और न किसी ने स्वर्ग-नर्क कों देखा है. किन्तु जनता कों लूटने के लिए उन्हें बेवकूफ बनाया जाता है. अज्ञानी गरीब जनता लुटते जाती और सरकार चुपचाप देखते रहती, जिसका परिणाम जो भी होगा उसे ईश्वर के हातों मे सोंपती है. जो लोग भगवान भरोसे है उनका और उनके देश का भविष्य अंधकारमय है,
मानव प्राणियों कों ही नर्क का डर दिखाया जाता है? किसी अन्य प्राणियों कों क्यों नही? क्योंकी हम उन्हें नही समझा सकते. पुरे संसार मे एक ही भगवान है, जिसका नाम ‘खुदा’ है? ईश्वरवादी की ऐसी सोच रही, “खुदा ने सजीव और निर्जीव हमारे लिए बनाए है. हम उनके मालिक है और वे हमारे नोकर है. हम अगर ईश्वर के आदेशों का पालन नही करते है तो नर्क मे जाना पड़ेगा”, इस डर से निजात मिलनी चाहिए इसलिए मंदिर, मज्जिद, चर्चों का निर्माण किया गया है. यह जनता कों ठगने के केंद्र है. यह सामाजिक शोषण करने के लिए मदत करते है, गुनाहगार है, उन्हें उचित शिक्षा मिलनी चाहिए.
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