शनिवार, 15 जून 2013

जाती जोड़ो अभियान और तानाशाही माया

भारत में केवल १% बौद्ध है.... तो बामसेफ और बीएसपी के सरकारी कर्मचारियों ने बुद्ध के धम्म क्रांति में कितना सहयोग दिया है? अम्बेडकरवाद का महत्वपूर्ण अंग बुद्धिज़्म है, जिसे भारत में फ़ैलाने का कार्य बाबासाहब अम्बेडकर ने अपने आंगपर लिया था परन्तु उनका जयघोष करनेवाले बामसेफ, बीएसपी के सरकारी कर्मचारी बेईमान निकले.


देश में बुद्धिज़्म को बढ़ावा देने के बजाए जातिभेदभाव बढाने के लिए कार्य कर रहे है. उसी का नतीजा है आज सबसे ज्यादा जातिवादी हिंसाचार बीएसपी का बोलबाला होते हुए भी हो रहे है. तो प्रश्न यह उठता है की बीएसपी सिर्फ जातिवादी सत्ता चाहती है या जातिभेदभाव को ख़त्म भी करना चाहती है.?

पिछड़े सरकारी कर्मचारियों के दम पर बनी बीएसपी पार्टी जातियों को बरक़रार रखते हुए केवल सत्ता चाहती है, यह भी एक जातिवादी राजनीती है, उसे बौद्ध धम्म प्रचार के अंग से जोड़ना बेवकूफी के आलावा और कुछ भी नहीं है. जातिगत पिछड़े वर्ग के सरकारी या निजी कर्मचारियों ने यह साबित करना चाहिए की उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर के धम्म प्रचार में सहयोग दिया है, अगर दिया है तो कोनसा है?

केवल अपना परिवार चंगा करना और जाती के नामपर लोगों को भड़काकर वोट मांगने के शिवाय किया ही क्या है? यह धम्म प्रचार का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं हो सकता, क्या बुद्ध-अम्बेडकर साहब की मुर्तिया रास्तों पर खडी करना ही धम्म प्रचार है? लोगों को अम्बेडकर या बुद्ध की तस्वीर या मुर्तिया दिखाकर जातिवाद के विषमतावादी कीड़े को कतम कर सकते है?

स्पष्ट है बामसेफ, बीएसपी अम्बेडकरवादी पार्टी नही है तथा वह बौद्ध लोगों की हिमायती भी नही है, वह केवल जातियों के दमपर दुसरे जातियों से खुद को ऊँचा साबित करना चाहती है, जातिवाद के आधारपर कोई भी व्यक्ति ऊँचा नहीं हो सकता, चाहे वह ब्राह्मण हो या चमार, जातियों को अगर विदेश में जाकर बेचो तो नगण्य मूल्य मिलेगा, क्या राजनीती के आधारपर धम्म प्रचार करना संभव है?

अगर ऐसा ही होता तो हिन्दू धर्म को माननेवाले कांग्रेस के पास कहीं बरसों से सत्ता है पर वे भारत को बौद्ध, जैन, मुस्लिम और इसाई मुक्त कर सके? सत्ता के डर से न धम्म का प्रचार संभव है और न कोई भी धर्म प्रचार, इसलिए सत्ता आनेपर हम सबकुछ करेंगे का नारा बेबुनियाद के विचारों पर खड़ा है.

उत्तर प्रदेश में ९ साल तक बीएसपी की सत्ता रही फिर भी वहां के जातिवाद को वह ख़त्म नही कर सकी तो उनके हाथ में देश की सत्ता देनेपर वह कैसे कर पायेगी ? इसका प्रारूप उन्होंने जनता को समझाना चाहिए, न की जोर जबरन या हिंदूइस्म के डर को बताकर राजनीती नही करनी चाहिए. अगर बीएसपी बौद्ध विचारों की पार्टी होती तो उन्होंने अपने मंत्रियों को धम्म शिक्षा दी होती जिससे वे भ्रस्टाचार के शिकार नहीं होते.

बीएसपी के करीब ९०% मंत्री भ्रष्ट्राचार में लिप्त होनें का आरोप यही बात सिद्ध करता है, की बीएसपी बुद्धिज़्म का नही तो हिंदूइस्म का प्रचार करती है. मायावती के मूर्तियों का जब विरोध किया जाता है तब बीएसपी के नुमैन्दे यह तर्क देते है की जब कांग्रेस-बीजेपी करती है तो उनका विरोध क्यों नही किया जाता?

दूसरी पार्टी अगर गलत करती है तो उसका विरोध करना चाहिए या उनका अनुकरण? बीएसपी दुसरे पार्टियों के दुर्गुणों का अनुकरण करके सही, उचित, योग्य साबित नही हो सकती. चाहे कोई भी पार्टी रहे अगर दुर्गुणों का समर्थन और अनुकरण करती है तो वह जनतंत्र के लिए खतरा पैदा करती है. उसमे बीएसपी भी दूध की धूलि नही है, जो भारतीय बौद्ध है, जो अम्बेडकरी प्रेरणा से बौद्ध विचारों को अपनाने का दावा करते है, उनका क्या फर्ज है?

क्या राजनीती पाने के लिए धम्म विचारों की क़ुरबानी देना चाहिए? अगर राजनीती जीवन का एक अभिन्न अंग है तो क्या उस अंग में बुद्धिज़्म के विचार होना अनुचित है? राजनिति में धम्म विचार क्या जनतंत्र के लिए खतरा है? अगर वह जनतंत्र को फायदेमंद है तो उसे जनतांत्रिक लोगों ने दूर रखने की कौनसी जरुरत है?

जनतंत्र ही धम्म है और धम्म ही जनतंत्र है. जो धम्मधारी लोग या राजनीती में धम्म विचारों का विरोध करते है वे धम्म विरोधक है, उनके जरिए सत्ता भी आए तो वह धम्म प्रचार करेंगे इसकी कोई भी शास्वती नही है. मायावती के अंग अंग में हिन्दुधर्म का जातिवाद कुटकुट कर भरा है, जो बुद्धिज़्म का हिस्सा नही है, उनके जरिए धम्म प्रचार का सपना देखना मुर्खता के अलावा और क्या हो सकता?

2 टिप्‍पणियां:

  1. राजानंद मेश्राम आप गद्दार बुद्धिस्ट चाहते हो या शिक्षित बुद्धिस्ट अर्थात बफादार......और बफादार बुद्धिस्ट अभी बहुत ही कम हैं. आप माने या न माने इसीलिये महान बौद्ध उपासिका बहिन मायावती जी जल्द ही बुद्धिस्ट क्रांती नहीं करना चाहती है, अभी करोडो को बुद्धिस्ट बनाने की तयारी चल रही है. (ज्ञात हो की बाबासाहब द्वारा हिंदू धर्म को छोड़ने की घोषणा के बाद 21 साल बाद क्रांती की गई) .जिस दिन ये पकाकर बफादार बुद्धिस्ट बन जायगे, उस दिन ये बहुत बड़ा....बदलाव होगा....भारत की जमीन पर, ठीक वैसा ही जैसा की बाबा साहेब के समय पर भू-चाल आ गया था मनुवादियों में .......राजानंद ऐसी ही तयारी चल रही है अभी...टुकड़े-टुकड़े में कितने ही बुद्धिस्ट बन जाएँ, मनुवादियों को कोई फर्क नहीं पड़ने बाला है, जिस दिन संख्या करोडो में होगी उस दिन ही आपके मनुवादि को खून आंसू रोने होंगे. खास बात यह है की आपका सरनेम भी पुरी तरह से हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर आधारीत है जो अभी तक बौद्ध संस्कृति के नाम पर नहीं हुआ, इसलिये आप भी गद्दार बुद्धिस्टों में गिने जाते हो.. .जय भीम, जय प्रबुद्ध भारत......

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  2. ख-या बहन मायावतीजीं युगाची सुरुवात 2007 सालच्या विधानसभा निवडणुकानंतरच झाली. बहन मायावतीजींने आपल्या कनखर पद्दतीने प्रशासनात बदल घड़ऊन व जातियावादाच्या चौकटी मोडीत काढत उत्तर प्रदेशात फुले-आंबेडकरवाद रुजविन्यास सुरुवात केली. आंबेडकरवाद रुजविन्यासोबतच सर्वसमाजाचा मुख्यमंत्री असी आपली प्रतिमाही निर्माण केली. बुद्धिबळाच्या खेळातील घोडयाना कसी मत द्यायची याचे डावपेच बाघितले की बहन मायावतीजींला कूटनीतीला सलाम करावेसे वाटते. बहन मायावतीजींच्या कनखरापनामुळे अनेक नेते व शासकीय कर्मचारी चरचरा कापतात . बहन मायावतीजीं ह्या अत्यंत मुत्सद्देगिरिने बहुजन समाज पक्षाला वाढवित आहेत. सरकार स्थापन करण्यासाठी कोनाचिही मदत घ्यावी लागली तरी तिने कधीही आपल्या तत्वासी काडीमोड केल्याचे दिसत नाहीं. उलट कोनाचाही विरोध असला तरी आपल्या तत्वाना पुढे रेटण्याचेच कार्य केले. मग तो भाजपा व संघाने विरोध केलेला रामसामी पेरियार मेळावा असो की विविध उपक्रमाना बहुजन महापुरुषांची नावे देण्याचा निर्णय असो. 7 लाख भूमिहीनाना सरकारी जमीनीचा कब्जा देने असो वा बुध्द -फुले-शाहू- आंबेडकर-रमाबाई- सावित्रीबाई यांच्या नावाने जिल्हे, विद्यपिठे व वसाहती बनवीणे असो वा स्वत:सकट बहुजन नायकांचे पुतळे उभारण्याचा निर्णय असो. अयोध्येतील मस्जिद-मंदिर वादाबाबत सर्वोच्च न्यायालयाच्या निर्णयानंतर संपूर्ण देशात तनाव निर्माण झाला होता परंतु बहन मायावतीजींने खंबीरपने भाजपा-बजरंग दल व संघ यांचे उत्तर प्रदेशात अराजक माजविण्याचे प्रयत्न हाणुन पाडले. शत्रुच्या दबावासमोर मान झुकवायची नाही हा खंबीरपणा केवळ अन केवळ बहन मायावतीजीं मध्येच बघायला मिळतों

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