___ ठेविले अनंते तैसेचि राहवे, चित्ति असु दयावे समाधान (?)
"ओम् मनी पद्मे हूँ" यह अवलौकितेश्वर सम्प्रदाय के त्रीजाँग रिंगपोचे (१९०१-१९८१) द्वारा बनाया गया "मंत्र" है। टिबेट महायानी देश है, महायान को दूसरे बौद्ध धम्म संगिति से "निष्कासित" किया गया, बाद में महान सम्राट अशोक ने उनके चिवर उतारकर घर/गृहस्ती करने भेजा था, इनपर यह आरोप लगाया जाता रहा की बुद्ध विचारों को तोडमरोडकर पेश किया जाना, बुद्ध विचारों से विपरीत प्रचार करना।
तिबेटी लोग बौद्ध होने के बावजूद ईश्वर भक्ति करते है, आत्मा-परमात्मा पर विश्वास करते है, देव-असूर, आकास-पाताल, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म आदि हिंदू मानसिकता से लिप्त विचारों का पालन होते रहा है, यह लोग बुद्ध को ईश्वर का अवतार मानते है, हिंदू भी विष्णु का अवतार मानते है। इतना ही नही तो बुद्ध धम्म को हिंदू धर्म की एक शाखा भी मानते है।
तिबेटी लोग "लामा" को धर्मगुरु के रुपमे पूजते है, भले ही उसमें गुण/अवगुण हो। उसे भी ईश्वर ने हमारे मार्गदर्शन के लिए भेजा है, वे हमारे भगवान, ईश्वर है और हम उनके भक्त। "ओम् मनी पद्मे हूँ" यह वाक्य संकृत भाषा में है। महायानी साहित्य ज़्यादातर संकृत में ही पाया जाता है। इसका संकृत में जो अर्थ होता है उसे यहाँ पर लिखना यानी गाली लिखने जैसा ही है इसलिए मै नही लिख रहा।
सवाल यह है की डाक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने धर्मांतर किया, बौद्ध बने और औरोंको भी दीक्षित किया, उन्हें पूछा गया की किस पंथ का स्वीकार किया जा रहा है तो उन्होंने पंथ होने पर ही संदेह जताया, बाद में २ पथों से हटकर है माना और "नवयान" कह सकने को अनुमति दी। पर उनके लेखन-साहित्य में "ओम् मनी पद्मे हूँ" जब पाया गया तो तो यह साबित हो चुका है की उन्होंने थेरवाद को बिना विरोध किए महायानी विचार अपनाए, जो अंध:श्रद्धा को बढ़ावा देते नज़र आते है।
एक तरफ़ कार्ल मार्क्स विज्ञान की तलवार लेकर खड़े है जिससे धार्मिकता/अंध:श्रद्धा को अफ़ीम कहकर जड़ से काटना चाहते है। अंध:भक्ति भाव के ज़रिए विज्ञान के तलवार को तोड़ा जा सकता है? फिर "द बुद्ध एंड हिज़ धम्म" और "बौद्ध पूजा पाठ" किताबों में बुद्ध विचारों में मिलावट क्यूँ ?
क्या ऐसे अंध:भक्ति भाव (दैव वादी) मंत्रिक विचारों को साथ में लेकर ग़रीब लोगों की पीड़ा से मुक्ति दिलायी जा सकती है? और कट्टर आम्बेडकरी कहते है की धम्म ग्रंथ की मीमांसा नही करनी चाहिए, आप बताए मित्रों, मीमांसा करनी चाहिए या नही?
धम्म को पलिद करने के कारनामे__! ओम् = ईश्वर का उगमस्थान - योनि, मणि = गोलाकार अंग - लिंग, पद्मे = पाँवों के - बीच, हूँ = है।ओम् मणि पद्मे हूँ = योनि में लिंग है। यह महायानी भिक्षुओं की करतूत है। ज्ञान प्राप्ति उपाय (?)
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