बौद्ध लोगों का विनाश ध्यान, समाधी वाली बुद्ध मूर्तियों को फूलमालाए चढ़ावा चंधने से नहीं तो डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जैसी किताबे पढने से ही होगा.
भारत मूर्तिपूजा से जबतक मुक्त नहीं होगा, तबतक देश में अंधश्रद्धा फैलते रहेगी. पूजापाठ व्यक्ति के कार्यकुशलता को घटाती है, बढाती नही. चाहे फिर वह किसी भी धर्म या धम्म में हो, उससे मुक्ति पाने में ही जनकल्याण है, पत्थरों को इंसानों से अधिक महत्व देना, उसकी परवरिश करना एक कुपमंडुक प्रकारका कार्य है, जो बौद्ध लोगो में भी पाया जाता है. उसे धम्म नही कहा जा सकता, वह धर्म विचार है, अवैज्ञानिक और तर्कविहीन विचारधारा है. उसका पालन करना न उनके लिए फायदेमंद है और न धम्म प्रचार के लिए प्रेरणादायी है.
बुद्ध धम्म पत्थरों का धम्म विचार नहीं है, वह इंसानों के विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन लानेवाले विचार है. कुछ हिन्दू लोगों ने बुद्ध के विचारों को मात देने के लिए, उनका दिमाग भटकाने के लिए बुद्ध मूर्तियों की निर्मिती की, उनकी विधिवत स्थापना की और उसे पूजन सुरु किया. उससे लोग मूर्तियों में धम्म को खोजने लगे. हिन्दू आर बौद्ध विचारों में क्या फर्क रहा?
हफिज जालंधरी ने सही कहा है, "गल्त समझे यह बुद्धिमान गौतम के बषारत को, बलाए-बुत-प्रस्ती ने किया बर्बाद भारत को."
आतंकी विचारधारा धार्मिक विचारों की उपज है. हिन्दू और मुस्लिम धर्म के धर्म मतों की जाँच होनी चाहिए. धर्म चिकित्सा और उनके मुल्ल्ला/संतों के मतों की चिकिस्ता जबतक नही होती, तबतक कुंठित मनोवृत्ति को नही रोक सकते. यही मनोदशा आगे प्रज्ञासिंग ठाकुर बनाती है तो किसे अजमल कसाब ... धर्म चिकित्सा से ही आतंकी मनोदशा को रोक सकते, सरकारने धर्ममतों में खोज करके गल्त विचारों पर रोख लगानी चाहिए. जो धर्ममत राष्ट्रिय भावनाओ को ख़त्म करने के लिए नुकसानदायी उन्हें निकलकर फेक देना चाहिए. सलमान रश्दी ने "कुरान" पर टिपण्णी की तो वह सही साबित हो रही है. सैतानी कार्यवाही यह छद्म धर्म विचारों की देन है, जो पुरे विश्व के जनतंत्र पर हमला है. भारत के मुस्लिम क्या तोफ है, जिसे डरकर कांग्रेस देश के जनतंत्र के लिए खतरो को देश में पल रही है? धर्मगुरु जीते और राजनेता हार गए...!
मुल्ला, मौलवी, संत, भन्ते जमीन पर बोझ है... इनका कार्य है की जनता को वैचारिक रूप से लोगों को सुधारे पर वे सब के सब नाकाम साबित होते हुए दिखाई दे रहे है...
आतंकी विचारधारा धार्मिक विचारों की उपज है. हिन्दू और मुस्लिम धर्म के धर्म मतों की जाँच होनी चाहिए. धर्म चिकित्सा और उनके मुल्ल्ला/संतों के मतों की चिकिस्ता जबतक नही होती, तबतक कुंठित मनोवृत्ति को नही रोक सकते. यही मनोदशा आगे प्रज्ञासिंग ठाकुर बनाती है तो किसे अजमल कसाब ... धर्म चिकित्सा से ही आतंकी मनोदशा को रोक सकते, सरकारने धर्ममतों में खोज करके गल्त विचारों पर रोख लगानी चाहिए. जो धर्ममत राष्ट्रिय भावनाओ को ख़त्म करने के लिए नुकसानदायी उन्हें निकलकर फेक देना चाहिए. सलमान रश्दी ने "कुरान" पर टिपण्णी की तो वह सही साबित हो रही है. सैतानी कार्यवाही यह छद्म धर्म विचारों की देन है, जो पुरे विश्व के जनतंत्र पर हमला है. भारत के मुस्लिम क्या तोफ है, जिसे डरकर कांग्रेस देश के जनतंत्र के लिए खतरो को देश में पल रही है? धर्मगुरु जीते और राजनेता हार गए...!
मुल्ला, मौलवी, संत, भन्ते जमीन पर बोझ है... इनका कार्य है की जनता को वैचारिक रूप से लोगों को सुधारे पर वे सब के सब नाकाम साबित होते हुए दिखाई दे रहे है...
मुल्ला, मौलवी, संत, भन्ते जमीन पर बोझ है.
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