बुधवार, 19 जून 2013

सांसदीय मंदिर को जलाना ही चाहिए!

डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर भारतीय संविधान के बारे में क्या कहते है, "मेरे (राज्यसभा भाषणतारीख- १९/०२/१९५५. जनता- ०२/०४/१९५५) हिसाब से पूरी नुकसान भरपाई देना और न देकर जनता को हानि पहुँचाना यह दोनों नीतिया त्याज्य है. मेरे कहने के मुताबिक नुकसान का मुहावजा पार्लमेंट ने ही बहुमतों से कानूनन तय करना उचित रहेगा. फ़िलहाल सामने लाया गया यह बिल मेरे मुताबिक बहुत ही चिल्लर जैसा है. मेरी ऐसी दरखास्त है की इस ढंग से लोगों के मुलभुत हकों पर दबाव बिना डाले सरकार ने पार्लमेंट को ही नुकसान मुहावजा तय करने का हमेशा के लिए अधिकार दे देना चाहिए. ऐसा करने के लिए सरकार ने जमीन का कब्ज़ा लेने वाले चालू कानून को रद्द करके एक उचित ऐसा कानून ही बनाना चाहिए.

संविधान मे बारम्बार सुधार करते रहना कभीभी उचित नही रहेगा. ऐसा करने से अनिश्चिता पैदा होकर  सामाजिक मूल्यों को नुकसान पहुँचता है. भारतीय संविधान की "धारा नं. ३१" यह घटना समिति के ड्रापटिंग कमिटी ने तयार नही की थी. नुकसान मुहावजा विषय के बारे मे कांग्रेस के तिन गुटो के मतभेदिय समझौते का परिणाम यानि धारा नं. ३१ है. सरदार पटेल इन्हें लैंड अक्बिझिशन कानून के तहत पूरा नुकसान मुहावजा और अन्य समाधान के लिए १५% जादा रूप से नुकसान मुहावजा देना पसंद था. पंडित नेहरू कांग्रेस के तिन गुटीय मतभेदिय समझौते को पूरी करने के चिंताओं से परेशांन थे. कांग्रेस के त्रि-दलीय संघर्ष संविधान बनाते वक्त चालू थे.

धारा नं. ३१ अगर घुमावदार होने के बावजूद भी सार्वजानिक हितों के लिए संपत्ति सरकार के पास रखने के बारे मे काफी लचीली थी. यह बिल चिल्लर होने के कारण इतना महत्वपूर्ण नही है. संविधान यह विश्मयकारी ढंग से ईश्वर के लिए बनाया गया अति सुन्दर मंदिर था. लेकिन ईश्वर की प्रतिस्थापना होने के पहले ही उसपर दानवों ने कब्ज़ा कर लिया है. इसलिए हमें उसे जलाकर नष्ट करना यही कार्य बाकि है. (बिच मे ही आयु. बी.के.पी. सिंह ने बाबासाहब को पूछा, संविधान जलाने के बजाय दानवों को ही क्यों न हटाया जाय?) शैतानों को हटाना अब असम्भव है. शतपत ब्राह्मण पढ़ने पर आपको ऐसा दिखेगा की सुरों को असुर यह हमेशा पराजित करते हुए आये है.

इस बिल के अनुसार नुकसान मुहावजा न देने के पीछे का उद्देश मुझे समझ मे नही आ रहा है. जिस ढंग से रशिया जैसे देश मे हर एक नागरिक को नोकरी की गारंटी; जीवनोपयोगी आवश्यकताए, मनोरंजन के साधन और रहने के लिए मकाने आदि बातों की गारंटी दिए जा रही है, उसी के जैसी सरकार ने जबाबदारी लेने के बाद मे ही नुकसान मुहावजा न देने का कानून अमल मे लाना चाहिए. उसके बाद ही लोकसभा कानून के तहत दिया जा रहा नुकसान मुहावाजे के पीछे का उद्देश मै स्वीकार कर सकता हूँ. अगर कानून के तहत नुकसान मुहावजा देने के विषय मे बिल लाया गया तो हर एक को अपना विचार दिल खोलकर रखने का मौका मिलेगा. इस ढंग से पास हुआ कानून सर्वसम्मत कानून समझा जायेगा. अगर कानून की कुछ तत्व बहुमतों से लोकसभा को अस्वीकार रहेगी तो उस तत्वों को लोकसभा बदल भी सकती है.

मेरा सरकार को ऐसा सुझाव है की, इस ढंग से सामान्य बिल पास होने पर जनता को सुख-दुःख नही होगा. क्योंकी उससे जनता का फायदा या नुकसान नही होता. उसके बजाए लोकसभा को ही हमेशा के लिए नुकसान मुहावजा देने का हक देना ही अच्छा रहेगा. जिस समय संविधान बनाया जा रहा था उस समय कांग्रेस पक्ष जनता के मुलभुत हकों को अलंकार के जैसे देख रहा था, लेकिन कांग्रेस की प्रवृत्ति बदलने के कारण जब जब मुलभुत हकों के बारे मे समश्याए खड़ी होती है तब तब जनता उसके तरफ लोहदंड के समान देखती है.

(डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर ने मुलभुत हक" इतने लचीले नही बनाए थे. उन सब पर उचित निर्बंध लगाए गए थे. इसलिए बाबासाहब को ""धारा नं. ३१" के लिए जबाबदार नही मान सकते. भारतीय संविधान के शिल्पकार, भारत रत्न डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर इस धारा की ओर संविधान की "काली धारा" के रूप मे देखते थे.)

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