जिन्हें जाती/वंशवादी विचारधारा से प्रेरणा मिली है वे आम्बेडकरिज्म को जानने के काबिल नही है, ऐसे ही एक महागर्विष्ठ व्यक्ति विजय मानकर का कहना है जो बहुत हास्यास्पद है, वह यह है,"अम्बेडकराईट लोग कभी फेल नही हो सकते. 'आम्बेडकराईट नेतृत्व' से अच्छा नेतृत्व देश और दुनिया मे नही हो सकता. अब २१ वी सदी यह 'आम्बेडकराईट्स' की और "आम्बेडकरिज्म" की होगी".
आम्बेडकरी विचारधाराम जाती/धर्म/वर्ण/वर्ग/भाषा/वंश और लिंग के आधारपर भेदभाव को नही मानता. फिर भी कुछ लोग जनता को गुमराह करने के लिए बाबासाहब अम्बेडकर को ही जाती/वर्ण/वंश वादी सिद्ध करने पर तुले है, उनके बुद्धी पर बढ़ी हंशी आती है. बाबासाहब ने ब्राह्मण और ब्राह्मणी विचारों मे भेद किया और भेदभावपूर्ण विचारों का डटकर आलोचना की थी, मगर यह जातिवादी लोग व्यक्ति विरोध के लिए संघटन चला रहे है और ब्राह्मणवाद को मदत कर रहे है.
क्या जो लोग आम्बेडकरी है वह कभी फेल नही हुए है? खापर्डे, कांशीराम, मायावती और उनकी बामसेफ/बीएसपी क्या पास हुयी है? अगर वे आम्बेडकरी होने का दावा करने पर भी फेल हुए नही होते तो वामन मेश्राम को "भारत मुक्ति मोर्चा" और विजय मानकर को "AIMBSCS" बनाने की क्या जरुरत होती?
आठवले, कवाडे, खोब्रागडे, गवई और प्रकास यह सब मिलकर आर.पी.आय. को जित दिलाने मे कामयाब नही हुए है, तो हम कैसे माने की विजय मानकर का कथन सही है? जो लोग धम्म के आधार पर अपना संघटन बनाने के बजाए धर्म/जाती/वंश के आधारपर बनाते है वे आम्बेडकरी विचारवंत कैसे हो सकते?
जनता को बाबासाहब के नामपर गुमराह करना और अपनी राजनीती चलाना यह आजकी फैसन है जिसके शिकार काफी अम्बेडकरी जनता हुयी है जिसमे विजय मानकर भी है.
"लोका सांगे ब्रह्म ज्ञान, आपण असे कोरडे पाशान" ऐसी मराठी में कहावत है. बाबासाहाब का आंदोलन चलाने के बजाए जो खुद का आंदोलन चलाते है वह छद्म अम्बेडकरी है. जनता ने ऐसे छद्म नेताओं को पहचान ने की काबिलियत निर्माण करना जरुरी है, अन्यथा आर्थिक रूप से जो प्रताड़ित हुआ वर्ग है वह हमेशा पछताते रहेगा.
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