शुक्रवार, 21 जून 2013

जातिवादी पिछड़े और उनकी जातिवादी राजनीती

बामसेफ यह पिछड़े जातियों के कर्मचारियों का संघटन है मगर अचंबे की बाते यह है की इसका प्रेसिडेंट गैर-कर्मचारी रहे है, जो राजनीती के लिए कार्य करते रहे. सुरु मे आर.पी.आय. के साथ लड़ाई करने के लिए बामसेफ के तहत कार्य किया और बीएसपी को पैदा किया.


वामन मेश्राम भी बामसेफ का गैर-कर्मचारी था जो सामाजिक परिवर्तन के नामपर राजकीय कार्य करते रहा और अब "भारत मुक्ति मोर्चा"उसी के लिए खोल बैठा.

"बिसपी" मे भी और एक कार्यकर्ता के रूप मे काम करने वाला कर्मचारी था जिसे भ्रष्टाचार के आरोप मे नौकरी से निकाला गया वह है विजय मानकर जो "एम्बस" के तहत राजकीय सत्ता लेने के लिए अपनी राजकीय पार्टी बनाने पर तुला है.

उदित राज भी कांशीराम के कार्य से प्रभावित रहे है जिन्होंने अब "जस्टिस पार्टी" बनाई है, जो जातिगत विचारधारा पर खड़ी है. बाबासाहब के नामपर काफी लोग मलाई खाना चाहते है मगर उनके आरपिआय का कार्य करने से कतराते रहे है.

रामविलास पासवान भी जातियों के नामपर वोट बटोरते रहे है जो बामसेफ के विचारों से प्रभावित होकर राजनीती मे कार्य करना सुरु किया, कांशीराम ने उन्हें उचित तवज्जो न देने के कारण वे भी अलग ढंग से कार्य सुरु किया. मगर अब भी वे "आरपीआय" से काफी दूर है. 

इससे यह स्पष्ट है की बामसेफ सामाजिक परिवर्तन के नामपर जनता से चंदा वसूल कर रही थी मगर समाज परिवर्तन कुछ भी नही किया है, अगर किया होता तो ५० साल मे भारत से जातिप्रथा का अन्त हुआ होता. बामसेफ यह देश मे जनता को गुमराह करने का कार्य करती है.

कांशीराम, मायावती, वामन मेश्राम, रामविलास पासवान, उदित राज, विजय मानकर और मराठा सेवा संघ के पुरुषोत्तम खेडेकर यह गैर-आर.पी.आय. के लोग नही है? जो बाबासाहब के आर.पी.आय. से भी पंगा लेने पर उतारू थे और है.

क्या आधे हिंदु और आधे बुद्धिस्ट विचारधारा को अपनानाने वाले लोग बाबासाहब के धम्म विचारों का प्रचार करने के हक़दार है? क्या वे केवल राजनीती के लिए धम्म विचारों की भी क़ुरबानी नही दे पाएंगे? क्या ऐसे स्वार्थी लोगों से अम्बेडकरी स्वप्न्पुर्ती की अपेक्षा पूरी होगी?


इस संघटन का अम्बेडकरी विचारधाराओ पर भरोसा नही है, अगर उनका भरोसा होता तो वे बाबासाहब के धम्म आंदोलन और पूना समझौतों को बेबुनियादी नही कहे होते, यह लोग बाबासाहब को कन्फुज व्यक्ति भी कहने को आगे पिच नही देख रहे है. 

मेरा यह निश्चित मत है की बामसेफ और बीएसपी हिन्दुधर्म के सिद्धांतों पर कार्य कर रहे है, जो जाती, वर्ण, वंश को पुनर्जीवित करना चाहते है, उन्हें बाबासाहब का नाम लेना नही है, उन्हें जयभीम कहने को शर्म लगती है इसलिए वे जय-मूल्निवाशी कहने लगे है. मुलनिवाशी संकल्पना भी बाबासाहब के विचारों से कोसो दूर है, 

बुद्धिजीवी लोगों ने इन सब बातों का विचार करके देश मे शान्ति के लिय कार्य करना चाहिए. जो लोग बाबासाहब को अपना मार्गदर्शक मानते है, वे बाबासाहब के राजकीय पार्टी मे काम करने से क्यों कतराते है? मुह मे भीम और बगल मे छुरी.

जाती जैसा ही वंश है जो भेदभाव करते है और करवाते है, जातिया जातियों से नहीं मिट सकती, वंशवाद यह वंशवाद से नहीं मिट शकता, तलवार का मुकाबला तलवार से नही हो सकता, नफरत को नफरत से नही जित सकते, नफरत को प्रार और बुद्धिसे ही जीता जा सकता है. हिंदुओं को यह बाते समझाए तो वे समझ सकते है, मगर नफरत के साथ समझाया जाए तो कदापि जाती/वर्ण/वंश नही मिट पायेगा, प्रयास करनेवाले मिट जायेंगे पर यह भेदभाव नहीं मिटेगा. || वैर जिन्कावे प्रेमाने, युद्धाने वाढते युद्ध ||

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